अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 9
ऋषिः - अथर्वा
देवता - मरुद्गणः
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - वृष्टि सूक्त
67
आपो॑ वि॒द्युद॒भ्रं व॒र्षं सं वो॑ऽवन्तु सु॒दान॑व॒ उत्सा॑ अजग॒रा उ॒त। म॒रुद्भिः॒ प्रच्यु॑ता मे॒घाः प्राव॑न्तु पृथि॒वीमनु॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआप॑: । वि॒ऽद्युत् । अ॒भ्रम् । व॒र्षम् । सम् । व॒: । अ॒व॒न्तु॒ । सु॒ऽदान॑व: । उत्सा॑: । अ॒ज॒ग॒रा: । उ॒त । म॒रुत्ऽभि॑: । प्रऽच्यु॑ता: । मे॒घा: । प्र । अ॒व॒न्तु॒ । पृ॒थि॒वीम् । अनु॑ ॥१५.९॥
स्वर रहित मन्त्र
आपो विद्युदभ्रं वर्षं सं वोऽवन्तु सुदानव उत्सा अजगरा उत। मरुद्भिः प्रच्युता मेघाः प्रावन्तु पृथिवीमनु ॥
स्वर रहित पद पाठआप: । विऽद्युत् । अभ्रम् । वर्षम् । सम् । व: । अवन्तु । सुऽदानव: । उत्सा: । अजगरा: । उत । मरुत्ऽभि: । प्रऽच्युता: । मेघा: । प्र । अवन्तु । पृथिवीम् । अनु ॥१५.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वृष्टि की प्रार्थना और गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(आपः) जलधारायें, (विद्युत्) बिजुली, (अभ्रम्) जल से भरा मेह (वर्षम्) बरसा और (सुदानवः) महादानी, (अजगराः) अजगर [समान स्थूल आकारवाले] (उत्साः) स्रोते (वः) तुम्हें (उत) अत्यन्त करके (सम्) यथावत् (अवन्तु) तृप्त करें। (मरुद्भिः) पवनों से (प्रच्युताः) चलाये गये (मेघाः) मेह (पृथिवीम्) पृथिवी को (अनु) अनुकूल (प्र) भले प्रकार (अवन्तु) तृप्त करें ॥९॥
भावार्थ
जैसे जल, बिजुली आदि मिलकर जगत् का उपकार करते हैं, वैसे ही मनुष्य परस्पर मिलकर संसार का सुधार करें ॥९॥ मन्त्र ७ व ८ का मिलान करो ॥
टिप्पणी
९−(आपः) जलधाराः (विद्युत्) तडित् (अभ्रम्) उदकपूर्णो मेघः (वर्षम्) वृष्टिजलम् (प्र) प्रकर्षेण। अन्यद् यथा म० ७ ॥
विषय
वृष्टि का वातावरण
पदार्थ
१. हे (सुदानवः) = उत्तम दानशील पुरुषो! (आप:) = मेषस्थ जल, (विद्युत्) = बिजली, (अभ्रम्) = उदकपूर्ण मेघ (वर्षम्) = वृष्टि (उत अजगरा:) = अजगरों के समान प्रतीत होनेवाले (उत्सा:) = जल प्रवाह-ये सब (व:) = तुम्हें (सम् अवन्तु) = सम्यक् रक्षित करें। २. (मरुद्भिः) = वायुओं से (प्रच्युताः मेघा:) = प्रेरित मेघ वृष्टि द्वारा (पृथिवीम् अनुसंयन्तु) = पृथिवी को अनुकूलता से रक्षा करें ।
भावार्थ
अग्निहोत्र में उत्तम आहुतियाँ देनेवाले पुरुषों के लिए वायु-प्रेरित मेघ आदि सम्यक् वृष्टि करनेवाले और उनका रक्षण करनेवाले हों।
भाषार्थ
(सुदानवः) उत्तम जल प्रदान करने वाली मानसून वायुएँ, (आपः) जल (विद्युत्) मेधस विद्युत्, (अभ्रम्) जलभरे मेघ, (उत) तथा (अजगरा: उत्सा:) अजगर समान आकारवाले चश्मे या नदी-नाले (सम्) मिलकर (व:) तुम्हारी (अवन्तु) रक्षा करें। (मरुद्भिः) मानसून वायुओं द्वारा (प्रच्युताः) गिरे (मेघाः) मेघ (पृथिवीम्, अनु) पृथिवी की अनुकूलता में (प्रावन्तु) तुम्हारी प्रकर्षरूप में रक्षा करें, अथवा पृथिवी को संतृप्त करें।
टिप्पणी
[अवन्तु="अव रक्षणगतिकान्तिप्रीतितृप्तिः" आदि (भ्वादिः)। उत्सा:= "उत्सरणाद्वोत्सदनाद्वोत्स्यन्दनाद्वोनत्तेर्वा" (निरुक्त १०।१।९)। 'प्रच्युताः' द्वारा यह सूचित किया है कि मेघ जल से भरे होने से भारी होते है, अतः वे गिर पड़ते हैं, अन्तरिक्षस्थ वायुएँ उनके सामने में असमर्थ हैं।]
विषय
वृष्टि की प्रार्थना।
भावार्थ
(आपः) जल, (विद्युत्) बिजुली, (वर्षं) वर्षा और (अजगराः) अजगर के समान आकार वाले (उत्साः) जलों के पर्वतीय सोते (उत) भी (वः) तुम प्रजाओं की (सं अवन्तु) उत्तम रीति से रक्षा करें (मरुद्भिः प्रच्युताः मेघाः पृथिवीम् अनु प्र-अवन्तु) वायुओं से प्रेरित मेघ पृथिवी की ओर खूब जोर से उमड़ कर आवें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। मरुतः पर्जन्यश्च देवताः। १, २, ५ विराड् जगत्याः। ४ विराट् पुरस्ताद् वृहती । ७, ८, १३, १४ अनुष्टुभः। ९ पथ्या पंक्तिः। १० भुरिजः। १२ पञ्चपदा अनुष्टुप् गर्भा भुरिक्। १५ शङ्कुमती अनुष्टुप्। ३, ६, ११, १६ त्रिष्टुभः। षोडशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Song of Showers
Meaning
O children of the earth, let waters, lightning and thunder, cloud and showers, and the great bounteous floods of water, rains, rivers and seas protect and promote you to prosperity. May the clouds moved by winds promote the produce of the earth.
Translation
O men, may the waters, the lightning, the rain and also the bounteous water-streams, moving like goat-swallowing pythons, please you well. May the rain bearing clouds, driven by stormy winds, flood the earth (with water).
Translation
Let lightning, waters, rain and the coiling-serpent-like torrential pours of rain keep the people safe and the clouds agitated by the winds rush towards earth.
Translation
May waters, lightning, cloud, and rain, big bounteous springs tend you well. Urged by the winds let the clouds drench the earth.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−(आपः) जलधाराः (विद्युत्) तडित् (अभ्रम्) उदकपूर्णो मेघः (वर्षम्) वृष्टिजलम् (प्र) प्रकर्षेण। अन्यद् यथा म० ७ ॥
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