अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 22/ मन्त्र 9
सूक्त - भृग्वङ्गिराः
देवता - तक्मनाशनः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - तक्मनाशन सूक्त
अ॑न्यक्षे॒त्रे न र॑मसे व॒शी सन्मृ॑डयासि नः। अभू॑दु॒ प्रार्थ॑स्त॒क्मा स ग॑मिष्यति॒ बल्हि॑कान् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒न्य॒ऽक्षे॒त्रे । न । र॒म॒से॒ । व॒शी । सन् । मृ॒ड॒य॒सि॒ । न॒: । अभू॑त् । ऊं॒ इति॑ । प्र॒ऽअर्थ॑: । त॒क्मा । स: । ग॒मि॒ष्य॒ति॒ । बल्हि॑कान् ॥२२.९॥
स्वर रहित मन्त्र
अन्यक्षेत्रे न रमसे वशी सन्मृडयासि नः। अभूदु प्रार्थस्तक्मा स गमिष्यति बल्हिकान् ॥
स्वर रहित पद पाठअन्यऽक्षेत्रे । न । रमसे । वशी । सन् । मृडयसि । न: । अभूत् । ऊं इति । प्रऽअर्थ: । तक्मा । स: । गमिष्यति । बल्हिकान् ॥२२.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 22; मन्त्र » 9
विषय - प्रार्थ: तक्मा
पदार्थ -
१. हे तक्मन्! तू (अन्यक्षेत्रे) = इस असाधारण मानव शरीर में [Extra-ordinary] (न रमसे) = क्रीड़ा नहीं करता। (वशी सन्) = वश में हुआ-हुआ-काबू किया हुआ तू (नः मृडयासि) = हमें सुखी करता है। २. (तक्मा) = यह ज्वर (उ) = निश्चय से (प्रार्थः अभूत्) = प्रकृष्ट याचनावाला हुआ, अर्थात् जब इस ज्वर को मानव-शरीर में स्थान न मिला तो यह मानो दीनता से पूछता है कि मैं कहाँ जाऊँ? तो इसे यही उत्तर मिलता है कि तू बल्हिकों के प्रति जा, अत: (स:) = वह ज्वर (बल्हिकान् गमिष्याति) = बहुत बोलनेवाले, हिंसक वृत्तिवाले [मांसाहारी], घरों में घुसे रहनेवाले लोगों को प्राप्त होगा।
भावार्थ -
ज्वर अद्भुत मानव-शरीर में क्रीडा न करता हुआ, हमें सुखी करता है, यह बल्हिकों को ही प्रास होता है।
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