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  • यजुर्वेद - अध्याय 34/ मन्त्र 37
    ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः देवता - भगो देवता छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    उ॒तेदानीं॒ भग॑वन्तः स्यामो॒त प्र॑पि॒त्वऽउ॒त मध्ये॒ऽअह्ना॑म्।उ॒तोदि॑ता मघव॒न्त्सूर्य्य॑स्य व॒यं दे॒वाना॑ सुम॒तौ स्या॑म॥३७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त। इ॒दानी॑म्। भग॑वन्त॒ इति॒ भग॑ऽवन्तः। स्या॒म॒। उ॒त। प्र॒पि॒त्व इति॑ प्रऽपि॒त्वे। उ॒त। मध्ये॑। अह्ना॑म् ॥ उ॒त। उदि॒तेत्युत्ऽइ॑ता। म॒घ॒व॒न्निति॑ मघऽवन्। सूर्य्य॑स्य। व॒यम्। दे॒वाना॑म्। सु॒म॒ताविति॑ सुऽम॒तौ। स्या॒म॒ ॥३७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उतेदानीम्भगवन्तः स्यामोत प्रपित्व उत मध्येऽअह्नाम् । उतोदिता मघवन्सूर्यस्य वयन्देवानाँ सुमतौ स्याम ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत। इदानीम्। भगवन्त इति भगऽवन्तः। स्याम। उत। प्रपित्व इति प्रऽपित्वे। उत। मध्ये। अह्नाम्॥ उत। उदितेत्युत्ऽइता। मघवन्निति मघऽवन्। सूर्य्यस्य। वयम्। देवानाम्। सुमताविति सुऽमतौ। स्याम॥३७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 34; मन्त्र » 37
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    पदार्थ -

    पदार्थ = हे भगवन् ! आपकी कृपा  ( उत ) = और अपने पुरुषार्थ से  ( इदानीम् ) = इसी समय  ( प्रपित्वे ) = पदार्थों की प्राप्ति में  ( उत ) = और  ( अह्नाम्  मध्ये ) = इन दिनों के मध्य में  ( भगवन्तः )  = ऐश्वर्ययुक्त और शक्तिमान्  ( स्याम ) = होवें  ( उत ) = और  ( मघवन् ) = हे परम पूजनीय असंख्य धन दाता प्रभो ! ( सूर्यस्य उदिता ) = सूर्य के उदय काल में  ( देवानाम् ) = पूर्ण विद्वानों की  ( सुमतौ ) = उत्तम बुद्धि वा सम्पत्ति में सकल ऐश्वर्ययुक्त  ( स्याम )  = हम होवें ।

    भावार्थ -

    भावार्थ = हे परम पूज्य असंख्य धन आदि पदार्थदाता प्रभो ! आप हम पर कृपा करें, कि हम आपकी कृपा और अपने पुरुषार्थ से शीघ्र ऐश्वर्ययुक्त और शक्तिमान् होवें । भगवन् ! आपकी पूर्ण कृपा से ही पूर्ण विद्वान् महात्मा सन्त जन मिलते हैं। उनकी कृपा और सदुपदेशों से, हम अपना लोक और परलोक सुधारते हुए, सुखी रह सकते हैं। किसी उत्तम पुरुष का यह सत्य वचन है कि "बिना हरि कृपा मिले नहीं सन्ता" । 

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