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  • यजुर्वेद - अध्याय 34/ मन्त्र 41
    ऋषिः - सुहोत्र ऋषिः देवता - पूजा देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
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    पूष॒न्तव॑ व्र॒ते व॒यं न रि॑ष्येम॒ कदा॑ च॒न।स्तो॒तार॑स्तऽइ॒ह स्म॑सि॥४१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पूष॑न्। तव॑। व्र॒ते व॒यम्। न। रि॒ष्ये॒म॒। कदा॑। च॒न ॥ स्तो॒तारः॑। ते॒। इ॒ह। स्म॒सि॒ ॥४१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पूषन्तव व्रते वयन्न रिष्येम कदा चन । स्तोतारस्तऽइह स्मसि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पूषन्। तव। व्रते वयम्। न। रिष्येम। कदा। चन॥ स्तोतारः। ते। इह। स्मसि॥४१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 34; मन्त्र » 41
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    पदार्थ -

    पदार्थ  = हे ( पूषन् ) = पुष्टिकारक परमात्मन्! ( तव ) = आपके  ( व्रते ) = नियम में रहते हुए  ( वयम् ) = हम् लोग ( कदाचन ) = कभी भी ( न रिष्येम ) = पीड़ित वा दुःखी न हों ।  ( इह ) = इस जगत् में ( ते ) = आपके  ( स्तोतार: ) = स्तुति करते हुए हम सुखी  ( स्मसि ) = होते हैं।

    भावार्थ -

    भावार्थ = हे सबके पालन पोषण करनेवाले परमात्मन्! आपके अटल सृष्टि नियमों के अनुसार अपना जीवन बनानेवाले हम आपके सेवक, इस लोक वा परलोक में कभी दुःखी नहीं हो सकते, इसलिए आपकी प्रेमपूर्वक स्तुति करनेवाले हम सदा सुखी होते हैं। आप परम पिता हम पर कृपा करें कि हम आपकी श्रद्धा भक्तिपूर्वक उपासना, प्रार्थना और स्तुति नित्य किया करें । 

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