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  • यजुर्वेद - अध्याय 34/ मन्त्र 6
    ऋषिः - शिवसङ्कल्प ऋषिः देवता - मनो देवता छन्दः - स्वराट् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    6

    सु॒षा॒र॒थिरश्वा॑निव॒ यन्म॑नु॒ष्यान्ने॑नी॒यते॒ऽभीशु॑भिर्वा॒जिन॑ऽइव।हृ॒त्प्रति॑ष्ठं॒ यद॑जि॒रं जवि॑ष्ठं॒ तन्मे॒ मनः॑ शि॒वस॑ङ्कल्पमस्तु॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒षा॒र॒थिः। सु॒सा॒र॒थिरिति॑ सुऽसार॒थिः। अश्वा॑नि॒वेत्यश्वा॑न्ऽइव। यत्। म॒नु॒ष्या᳖न्। ने॒नी॒यते॑। अ॒भीशु॑भि॒रित्य॒भीशु॑ऽभिः। वा॒जिन॑ऽइ॒वेति॑ वा॒जिनः॑ऽइव ॥ हृ॒त्प्रति॑ष्ठम्। हृ॒त्प्रतिस्थ॒मिति॑ हृ॒त्ऽप्रति॑स्थम्। यत्। अ॒जि॒रम्। जवि॑ष्ठम्। तत्। मे॒। मनः॑। शि॒वस॑ङ्कल्प॒मिति॑ शि॒वऽस॑ङ्कल्पम्। अ॒स्तु॒ ॥६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुषारथिरश्वानिव यन्मनुष्यान्नेनीयतेऽभीशुभिर्वाजिनऽइव। हृत्प्रतिष्ठँयदजिरञ्जविष्ठन्तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सुषारथिः। सुसारथिरिति सुऽसारथिः। अश्वानिवेत्यश्वान्ऽइव। यत्। मनुष्यान्। नेनीयते। अभीशुभिरित्यभीशुऽभिः। वाजिनऽइवेति वाजिनःऽइव॥ हृत्प्रतिष्ठम्। हृत्प्रतिस्थमिति हृत्ऽप्रतिस्थम्। यत्। अजिरम्। जविष्ठम्। तत्। मे। मनः। शिवसङ्कल्पमिति शिवऽसङ्कल्पम्। अस्तु॥६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 34; मन्त्र » 6
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    पदार्थ -

     पदार्थ = ( इव ) = जिस प्रकार  ( सुसारथिः ) = उत्तम सारथि  ( अश्वान् ) = घोड़ों को चलाता है  ( इव ) = इसी प्रकार  ( यत् ) = जो मन  ( मनुष्यान् ) = मनुष्यों के इन्द्रिय रूपी  ( वाजिनः ) = वेगवान् घोड़ों को  ( अभीशुभिः ) = लगामों द्वारा  ( नेनीयते ) = अनेक मार्गों पर ले जाता है, मन भी इन्द्रियों की अनेक प्रकार की प्रवृत्तिरूपी लगामों द्वारा मनुष्यों को अपने वश में करके अनेक प्रकार के शुभ-अशुभ मार्गों में ले जाता है,  ( हृत्प्रतिष्ठम् ) = जो मन हृदय में स्थित हुआ  ( अजिरम् ) = अजर बूढ़ा नहीं होता।  ( जविष्ठम् ) = बड़ा वेगवान् है।  ( तत् मे मनः ) = वह मेरा मन  ( शिवसङ्कल्पम् अस्तु ) = उत्तम कल्याण कारक संकल्पवाला हो ।

    भावार्थ -

    भावार्थ = रथ का सारथी जैसे घोड़ों को चलाता है, ऐसे ही यह मन इन्द्रियों का संचालक है।  इस मन में सदा शुभ संकल्प होने चाहियें, जैसे उत्तम सारथी, घोड़ों को लगाम द्वारा अपने वश में करता हुआ अभिलषित स्थान को पहुँच जाता है। ऐसे ही मन आदि इन्द्रियों को अपने वश में करता हुआ मुमुक्षु पुरुष, मुक्तिरूपी अभिलषित धाम को पहुँच जाता है। मन भी बड़ा ही बलवान् , बूढ़ा न होनेवाला है, इसको अपने वश में करने के लिए मुमुक्षु पुरुष को बड़ा यत्न करना चाहिये ।

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