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  • यजुर्वेद - अध्याय 38/ मन्त्र 2
    ऋषिः - आथर्वण ऋषिः देवता - सरस्वती देवता छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः
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    इड॒ऽएह्यदि॑त॒ऽएहि॒ सर॑स्व॒त्येहि॑।असा॒वेह्यसा॒वेह्यसा॒वेहि॑॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इडे॑। एहि॑। अदि॑ते। एहि॑। सर॑स्वति। एहि॑ ॥ असौ॑। एहि॑। असौ॑। एहि॑। असौ॑। एहि॑ ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इडऽएहिऽअदितऽएहि सरस्वत्त्येहि । असावेह्यसावेह्यसावेहि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इडे। एहि। अदिते। एहि। सरस्वति। एहि॥ असौ। एहि। असौ। एहि। असौ। एहि॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 38; मन्त्र » 2
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    भावार्थ -
    (इडे) हे स्तुति योग्य ! उत्तम वाणी से युक्त ! तू (एहि ) आ। हे (अदिते) अखण्डिते ! पृथिवि ! तू (एहि ) प्राप्त हो । हे (सरस्वति) उत्तम विज्ञानों से युक्त ! उत्तम जलधाराओं, तालाबों से युक्त ! पृथिवि ! (एहि ) प्राप्त हो। इसी प्रकार हे (असौ) अमुक अमुक नाम और गुणों 'वाली ! सस्यश्यामले ! शुभ्रज्योत्स्ना फुल्लद्रुमदलशालिनि ! तू (एहि ) मुझे अपने पालक राजा को प्राप्त हो । (२) राजसभा के पक्ष में -हे (इडे)वाणि ! स्तुत्ये ! हे (अदिते) अखण्ड शासन वाली ! हे (सरस्वति) उत्तम ज्ञानवति ! विद्वत्सभे ! (असौ) दशावरे, त्र्यवरे इत्यादि (एहि ) तू प्रातः हो । (३) स्त्रीपक्ष में —हे (इडे) स्तुत्ये, वन्दये ! हे (अदिति) अखण्ड चरित्रे हे ( सरस्वति ) आनन्दप्रदे ! ज्ञानवति ! ( असौ ) हे वरानने ! अखण्डित अनिन्दिताङ्गि ! इत्यादि (एहि ) तु मुझ पति को प्राप्त हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गौः । सरस्वती । निचृद्गायत्री | षड्जः ॥

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