ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 101/ मन्त्र 4
ऋषिः - बुधः सौम्यः
देवता - विश्वे देवा ऋत्विजो वा
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
सीरा॑ युञ्जन्ति क॒वयो॑ यु॒गा वि त॑न्वते॒ पृथ॑क् । धीरा॑ दे॒वेषु॑ सुम्न॒या ॥
स्वर सहित पद पाठसीरा॑ । यु॒ञ्ज॒न्ति॒ । क॒वयः॑ । यु॒गा । वि । त॒न्व॒ते॒ । पृथ॑क् । धीराः॑ । दे॒वेषु॑ । सु॒म्न॒ऽया ॥
स्वर रहित मन्त्र
सीरा युञ्जन्ति कवयो युगा वि तन्वते पृथक् । धीरा देवेषु सुम्नया ॥
स्वर रहित पद पाठसीरा । युञ्जन्ति । कवयः । युगा । वि । तन्वते । पृथक् । धीराः । देवेषु । सुम्नऽया ॥ १०.१०१.४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 101; मन्त्र » 4
अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
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अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(कवयः) कृषि कलाकार-किसान (सीरा) हल आदियों को (युञ्जन्ति) बैलों में जोड़ते हैं (युगा) जोतों-चरम साधनों-चरम पट्टियों को पृथक् पृथक् (वि तन्वते) बैलों से वितानित करते है-बाँधते हैं (धीराः) बुद्धिमान् वैज्ञानिक लोग (सुम्नया) स्वेच्छा से (देवेषु) विद्युत्-मेघ वायुवों के मन को युक्त करते हैं, खेती अच्छी सम्पन्न हो, इसके उपायों का चिन्तन करते हैं ॥४॥
भावार्थ
खेती करने में कुशल किसान हलादियों को बैलों के साथ जोड़कर चर्मपट्टियों से बाँधकर खेती जोतें, वे बुद्धिमान् वर्षा के निमित्त वायु में मेघादि देवों के योग का चिन्तन खेती सम्पन्न होने के निमित्त करें, बोने और काटने में इनका ध्यान रखें ॥४॥
विषय
धीरत्व की प्राप्ति
पदार्थ
[१] (कवयः) = ज्ञानी पुरुष (सीराः युञ्जन्ति) = नाड़ियों को निरुद्ध प्राणों से युक्त करते हैं भिन्न-भिन्न नाड़ियों में प्राणों का निरोध करते हैं । (युगा) = योगांगों को (पृथक्) = एक-एक करके (वितन्वते) = विशेषरूप से विस्तृत करते हैं । [२] इस प्रकार योग का अभ्यास करते हुए ये (देवेषु) = देवों के विषय में (सुम्नया) = स्तुति के द्वारा [praise] (धीराः) = ज्ञान में रमण करनेवाले होते हैं। सुम्न का अर्थ fowone व protection भी है, कृपा तथा रक्षण। देवों की कृपा व देवरक्षण से ये ज्ञानी बन जाते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम विविध नाड़ियों में प्राणनिरोध करें। योगांगों के अनुष्ठान में तत्पर हों । देव- स्तवन के द्वारा ज्ञानी बनें।
विषय
हलादि द्वारा क्षेत्रकर्षण के तुल्य देहगत नाड़ियों द्वारा योग-साधना का उपदेश।
भावार्थ
(कवयः) क्रान्तदर्शी विद्वान् लोग (सीरा युञ्जन्ति) खेत जोतने के साधन हल आदि को जोतते हैं (युगा वि तन्वते) नाना युगों को पृथक् २ करते हैं। (धीराः) कर्म और ज्ञान वाले विद्वान् जन (देवेषु) ज्ञानप्रद विद्वानों के बीच (सुम्नया) सुख प्राप्त करने के लिये नाना कर्म करते हैं। अध्यात्म में—वे नाना योगाङ्गों का अनुष्ठान करते, नाड़ियों में चित्त को लगाते और देवों, इन्द्रियों में सुषुम्ना नाड़ी द्वारा अभ्यास करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्बुधः सौम्यः॥ देवता—विश्वेदेवा ऋत्विजो वा॥ छन्दः– १, ११ निचृत् त्रिष्टुप्। २, ८ त्रिष्टुप्। ३, १० विराट् त्रिष्टुप्। ७ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४, ६ गायत्री। ५ बृहती। ९ विराड् जगती। १२ निचृज्जगती॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(कवयः) कृषिवलाः-कृषकाः-(सीरा युञ्जन्ति) सीराणि हलादीनि योजयन्ति बलिवर्देषु (युगा पृथक् वि तन्वते) योक्त्राणि चर्मसाधनानि पृथक् पृथग्बलीवर्दिषु वितन्वन्ति-बध्नन्ति (धीराः सुम्नया-देवेषु) धीमन्तो वैज्ञानिका लोकेषु स्वेच्छया विद्युन्मेघमरुत्सु मनो युञ्जते यत् कृषिः सम्पन्ना स्यादिति चिन्तयन्ति तदुपायान् ॥४॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Intelligent and enlightened farmers use the plough for production and develop the infrastructure separately in each department, and the wise with peace and vision direct their efforts for development to human values and the divine gifts of nature and environment.
मराठी (1)
भावार्थ
शेती करणाऱ्या कुशल शेतकऱ्यांनी नांगराला बैल जोडून कातड्याच्या पट्टीने बांधून शेती नांगरावी. त्या बुद्धिमान लोकांनी वृष्टीच्या निमित्त वायूमध्ये मेघ इत्यादी देवांच्या योगाचे चिंतन शेती समृद्ध होण्यासाठी करावे. पेरणी व कापणीत चांगले लक्ष द्यावे. ॥४॥
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