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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 39 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 39/ मन्त्र 5
    ऋषिः - घोषा काक्षीवती देवता - अश्विनौ छन्दः - पादनिचृज्ज्गती स्वरः - निषादः

    पु॒रा॒णा वां॑ वी॒र्या॒३॒॑ प्र ब्र॑वा॒ जनेऽथो॑ हासथुर्भि॒षजा॑ मयो॒भुवा॑ । ता वां॒ नु नव्या॒वव॑से करामहे॒ऽयं ना॑सत्या॒ श्रद॒रिर्यथा॒ दध॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु॒रा॒णा । वा॒म् । वी॒र्या॑ । प्र । ब्र॒व॒ । जने॑ । अथो॒ इति॑ । ह॒ । आ॒स॒थुः॒ । भि॒षजा॑ । म॒यः॒ऽभुवा॑ । ता । वा॒म् । नु । नव्यौ॑ । अव॑से । क॒रा॒म॒हे॒ । अ॒यम् । ना॒स॒त्या॒ । श्रत् । अ॒रिः । यथा॑ । दध॑त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुराणा वां वीर्या३ प्र ब्रवा जनेऽथो हासथुर्भिषजा मयोभुवा । ता वां नु नव्याववसे करामहेऽयं नासत्या श्रदरिर्यथा दधत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुराणा । वाम् । वीर्या । प्र । ब्रव । जने । अथो इति । ह । आसथुः । भिषजा । मयःऽभुवा । ता । वाम् । नु । नव्यौ । अवसे । करामहे । अयम् । नासत्या । श्रत् । अरिः । यथा । दधत् ॥ १०.३९.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 39; मन्त्र » 5
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 5
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (नासत्या भिषजा) हे सत्यज्ञानवाले ओषधिचकित्सक और शल्यचिकित्सक ! तथा आग्नेय सोम्य पदार्थो ! रोगनिवारक ! (वाम्) तुम दोनों के (पुराणा वीर्या जने प्र ब्रव) पुरातन कृत्यों को जनसमुदाय में घोषित करते हैं (अथ-उ) और (मयोभुवा ह-आसथुः) कल्याण के भावित करनेवाले अवश्य होओ (ता वां नव्या नु-अवसे करामहे) तुम दोनों की रक्षार्थ प्रशंसा करते हैं (अयम्-अरिः-श्रत्-दधत्) यह तुम्हें प्राप्त करनेवाला, उपयोग करनेवाला जन तुम्हारे प्रति श्रद्धा करता है ॥५॥

    भावार्थ

    ओषधिचिकित्सक और शल्यचिकित्सक तथा आग्नेय सोम्य पदार्थ रोगी को अच्छा करने में समर्थ हों। वे इस कार्य में प्रशंसा के योग्य होते हैं ॥५॥

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    विषय

    श्रत् (=सत्य) का धारण

    पदार्थ

    [१] हे (नासत्या) = नासिका में रहनेवाले अथवा असत्य से रहित प्राणापानों! (अयम्) = यह मैं (वाम्) = आप दोनों के (पुराणा) = सनातन वीर्या शक्तियों को (जने) = लोगों में (प्रब्रवा) = खूब ही कहता हूँ । (अथो) = और (ह) = निश्चय से आप दोनों मयोभुवा कल्याण का भावन करनेवाले (भिषजा) = वैद्य (असथुः) = हो । इन प्राणापानों की साधना से सब रोग दूर होते हैं और कल्याण की प्राप्ति होती है । [२] (ता वाम्) = उन आप दोनों को अवसे रक्षण के लिये (नव्या) = स्तुति के योग्य (करामहे) = करते हैं। हम प्राणापानों का स्तवन करते हैं और वे प्राणापान हमारा रक्षण करते हैं । [३] हे प्राणापानो ! आप ऐसी ही कृपा करो (यथा) = जिससे (अयं अरिः) = यह आपका उपासक (श्रत् दधत्) = सत्य का धारण करनेवाला हो। इस उपासक का शरीर रोगों से रहित होकर नीरोग हो, इसका मन द्वेषादि से रहित होकर प्रेमपूर्ण हो, इसकी बुद्धि तीव्र व सात्त्विक हो । शरीर में रोग ही असत्य है, मन में द्वेष असत्य है और बुद्धि में मन्दता असत्य है। ये रोग द्वेष व मन्दता प्राणसाधना से दूर होती है और इन प्राणों का उपासक सत्य [ श्रत्] को धारण करनेवाला होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्राणापान कल्याण करनेवाले वैद्य हैं। इनका उपासक 'नीरोगता निर्मलता व बुद्धि की तीव्रता' रूप सत्य को धारण करता है ।

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    विषय

    जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों के वैद्यों के तुल्य कर्त्तव्य, रोगों की चिकित्सा करें, वे रक्षा का कार्य करें, सत्य को धारण करें।

    भावार्थ

    हे (अश्विनौ) उत्तम, विद्यासम्पन्न, जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषो ! (वां) तुम दोनों के (पुराणा वीर्या) पूर्व काल के श्रेष्ठ २ वीर-जनोचित कार्यों का मैं (जने) मनुष्यों के बीच (प्र-बव) अच्छी प्रकार कथन करूं। (अथो ह) और आप दोनों (मयः-भुवा) सुख उत्पन्न करने वाले, (भिषजा) रोगों को दूर करने वाले, (आसथुः) होवो। हे (नासत्या) नासिका में विद्यमान प्राणों के समान प्रमुख जनो ! कभी असत्य आचरण न करने हारो ! आप दोनों (नव्यौ) स्तुति योग्य जनों को (नु) शीघ्र ही (अवसे) रक्षार्थ नियुक्त (करामहे) करें। (यथा) जिससे (अयम् अरिः) यह स्वामी मनुष्य (श्रत् दधत्) सत्य को धारण करे। (२) इसी प्रकार प्राण और अपान भी शरीर के सुखप्रद और रोगनाशक हैं, वे दोनों शरीर के रक्षक हैं जिससे स्वामी आत्मा (श्रत्) अन्न को धारण करता है। इति पञ्चदशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    घोषा काक्षीवती ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्द:–१,६,७,११,१३ निचृज्जगती २, ८, ९, १२, जगती। ३ विराड् जगती। ४, ५ पादनिचृज्जगती। १० आर्ची स्वराड् जगती १४ निचृत् त्रिष्टुप्। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (नासत्या भिषजा) हे नासत्यौ सत्यज्ञानवन्तौ-ओषधि-शल्यचिकित्सकौ तद्वज्ज्योतिष्प्रधानरसप्रधानाग्नेयसोम्यपदार्थौ रोगनिवारकौ ! (वाम्) युवयोः (पुराणा वीर्या जने प्रब्रव) पुरातनानि कृत्यानि जनसमुदाये प्रब्रवीमि (अथ-उ)  अथ च (मयोभुवा-ह-आसथुः) कल्याणस्य भावयितारौ हावश्यं भवथः (ता वां नव्यौ नु-अवसे करामहे) तौ युवां स्वरक्षायै स्तुत्यौ कुर्मः (अयम्-अरिः-श्रत्-दधत्) अयं प्रापक उपयोगकर्त्ता जनः श्रद्धां कुर्यात् ॥५॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O physician and surgeon dedicated to truth and goodness of life, your old and ancient deeds I proclaim and praise among people. Be you both harbingers of good health, peace and joy. We celebrate you both as adorable for the sake of health and protection so that this dynamic community may have faith and trust in you.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    औषधीचिकित्सक व शल्यचिकित्सक तसेच आग्नेय सोम्य पदार्थ रोग्याला चांगले करण्यास समर्थ असावेत. ते अशा कार्यामुळे प्रशंसेस पात्र ठरतात. ॥५॥

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