ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 33/ मन्त्र 12
ऋषिः - गृत्समदः शौनकः
देवता - रुद्रः
छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
कु॒मा॒रश्चि॑त्पि॒तरं॒ वन्द॑मानं॒ प्रति॑ नानाम रुद्रोप॒यन्त॑म्। भूरे॑र्दा॒तारं॒ सत्प॑तिं गृणीषे स्तु॒तस्त्वं भे॑ष॒जा रा॑स्य॒स्मे॥
स्वर सहित पद पाठकु॒मा॒रः । चि॒त् । पि॒तर॒म् । वन्द॑मानम् । प्रति॑ । न॒ना॒म॒ । रु॒द्र॒ । उ॒प॒ऽयन्त॑म् । भूरेः॑ । दा॒तार॑म् । सत्ऽप॑तिम् । गृ॒णी॒षे॒ । स्तु॒तः । त्वम् । भे॒ष॒जा । रा॒सि॒ । अ॒स्मे इति॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
कुमारश्चित्पितरं वन्दमानं प्रति नानाम रुद्रोपयन्तम्। भूरेर्दातारं सत्पतिं गृणीषे स्तुतस्त्वं भेषजा रास्यस्मे॥
स्वर रहित पद पाठकुमारः। चित्। पितरम्। वन्दमानम्। प्रति। ननाम। रुद्र। उपऽयन्तम्। भूरेः। दातारम्। सत्ऽपतिम्। गृणीषे। स्तुतः। त्वम्। भेषजा। रासि। अस्मे इति॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 33; मन्त्र » 12
अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 18; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 18; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्याध्ययनविषयमाह।
अन्वयः
हे रुद्र स्तुतस्त्वं पितरं कुमारश्चिद्वन्दमानमुपयन्तं भूरेर्दातारं सत्पतिं प्रति ननाम गृणीषेऽस्मे भेषजा रास्यतोऽस्माभिः सत्कर्त्तव्योऽसि ॥१२॥
पदार्थः
(कुमारः) ब्रह्मचारी (चित्) इव (पितरम्) जनकम् (वन्दमानम्) स्तूयमानम्। अत्र कर्मणि शानच् (प्रति) (ननाम) नमति। अत्र तुजादीनामित्यभ्यासदैर्घ्यम् (रुद्र) (उपयन्तम्) समीपं प्राप्नुवन्तम् (भूरेः) बहोः (दातारम्) (सत्पतिम्) सतां पालकम् (गृणीषे) स्तौषि (स्तुतः) प्रशंसितः (त्वम्) (भेषजा) औषधानि (रासि) ददासि (अस्मे) अस्मभ्यम् ॥१२॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। यथा सत्पुत्रः पितरं सत्करोति नमति स्तौति तथा सदध्येताध्यापकं प्रसादयति ॥१२॥
हिन्दी (3)
विषय
अब विद्याध्ययन विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (रुद्र) दुष्टों को रुलानेवाले विद्वान् (स्तुतः) प्रशंसा को प्राप्त (त्वम्) आप (पितरम्) पिता को (कुमारः) ब्रह्मचारी (चित्) जैसे-वैसे (वन्दमानम्) स्तुति को प्राप्त और (उपयन्तम्) समीप आते हुए (भूरेः) बहुत पदार्थ के (दातारम्) देने वा (सत्पतिम्) सज्जनों के पालनेवाले विद्वान् के प्रति (ननाम) नमस्कार करता वा (गृणीषे) उसकी स्तुति करते हैं तथा (अस्मे) हमलोगों के लिये (भेषजा) औषधों को (रासि) देता है इससे हम लोगों को सत्कार करने के योग्य हैं ॥१२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे अच्छा पुत्र पिता का सत्कार करता वा नमता वा स्तुति करता है, वैसे अच्छा विद्यार्थी पढ़ानेवाले को प्रसन्न करता है ॥१२॥
विषय
संसार में रहें, पर प्रभु को न भूलें
पदार्थ
१. (कुमारः चित्) = [कुमार क्रीडायाम्] = संसार में क्रीड़ा करता हुआ भी मैं (वन्दमानम्) = 'आयुष्मान् भव सौम्य' 'दीर्घजीवी होवो' इन शब्दों में प्रत्यभिवादन करते हुए (पितरम्) = रक्षक, हे (रुद्र) = प्रभो ! (उपयन्तम्) = समीप प्राप्त होते हुए आपको प्रतिनानाम= प्रणत होता हूँ- आपको नमस्ते करता हूँ । 'संसार में क्रीड़ा तो करना, परन्तु प्रभु के प्रति नतमस्तक होते हुए इसमें न उलझना' यही उत्तम जीवन है। २. भूरेः दातारम् - पालन-पोषण के लिए पर्याप्त धन देनेवाले सत्पतिम् = सज्जनों के रक्षक आपका मैं गृणीषे = स्तवन करता हूँ । स्तुतस्त्वम् = स्तुति किये गये आप अस्मे हमारे लिए भेषजा= सब औषध-द्रव्यों को रासि देते हैं। आपकी इन औषधों से हम नीरोग, निर्मल व दीप्त बन पाते हैं।
भावार्थ
भावार्थ - संसार में हम क्रीड़ा करनेवाले बनें–उस क्रीड़ा में ऐसे आसक्त न हों कि प्रभु को भूल जाएँ ।
विषय
रुद्र, दुष्ट-दमनकारी, पितावत् पालक राजा सेनापति और विद्वान् आचार्य, के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( कुमारः चित् ) जिस प्रकार नवयुवक कुमार ( वन्दमानं ) वन्दना या स्तुति करने योग्य ( उपयन्तं ) समीप आते हुए ( पितरं ) पालक आचार्य पिता को ( प्रति नानाम ) प्रति दिन नमस्कार करता, उसके आगे झुकता है । इसी प्रकार हे ( रुद्र ) दुष्टों को रुलाने वाले ! या हे नैष्ठिक विद्वन् ! या स्वयं रोने वाले बालकवत् जन ! तू भी ( वन्दमानं ) वन्दनीय, ( उपयन्तम् ) समीप आते हुए ( भूरेः दातारं ) बहुत प्रकार के ज्ञानों और अन्नादि सुख पदार्थों के देने वाले ( सम्पतिम् ) सज्जनों के पालक को ( प्रति नानाम ) आदर पूर्वक नमस्कार किया कर । ( स्तुतः ) प्रशंसित या उपदेश प्राप्त करके ( त्वं ) तू भी ( गृणीषे ) उपदेश कर । और ( अस्मे ) अपने इस सन्मुख स्थित को ( भेषजा ) रोगों और दुःखों के निवारक औषधों और उपायों का ( रासि ) प्रदान कर अथवा—हे( रुद्र उपयन्तं त्वां अहं नानाम ) दुष्टों के रुलाने चाले दुःखों के भगाने वाले वैद्य ! प्रभो ! तुझको प्रतिदिन नमस्कार करूं । ( भूरेः दातारं सत्पतिं त्वां गृणीषे ) बहुत सुखों के दाता तुझको स्तुति करता हूं या अपना कष्ट कहता हूं । ( स्तुतः त्वं भेषजा अस्मे रासि ) प्रशंसित विद्वान् तू हमें दुखों से छूटने के लिये औषध देता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः॥ रुद्रो देवता ॥ छन्दः– १, ५, ९, १३, १४, १५ निचृत् त्रिष्टुप् । ३, ५, ६, १०, ११ विराट् त्रिष्टुप् । ४,८ त्रिष्टुप् । २, ७ पङ्क्तिः । १२, भुरिक् पङ्क्तिः ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा चांगला पुत्र पित्याचा सत्कार करतो, नम्र असतो, स्तुती करतो तसा चांगला विद्यार्थी अध्यापकाला प्रसन्न करतो. ॥ १२ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Rudra, lord giver of good health and joy, just as the son bows to the father worthy of reverence and adoration while the father approaches, so do I praise and offer obeisance to you, generous giver and leader and sustainer of the good and the truthful, and as we offer reverence and obeisance, you bless us with healing cures for health and joy.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The merits of studies are mentioned.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned person! you break the nerves of wickeds and are therefore admired. You should bow before and praise the learned person, who is like your father, celibate, admired and giver of plenty to noble persons of his close circles. Such a man offers solutions to our problems.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As a son respects and pays regards and gratitude to his father, same way a good student should behave with his teacher.
Foot Notes
(कुमारः) ब्रह्मचारी। = Celibate. (वन्दमानम्) स्तूयमानम् । अत्र कर्मणि शानच् = Praising. (ननाम) नमति । अत्र तुजादीनामित्यभ्यासदैर्ध्यम्। = Bow before. (उपयन्तम् ) समीपं प्राप्नुवन्तम् = To the people in nearby circles.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal