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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 33 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 33/ मन्त्र 1
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - रुद्रः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आ ते॑ पितर्मरुतां सु॒म्नमे॑तु॒ मा नः॒ सूर्य॑स्य सं॒दृशो॑ युयोथाः। अ॒भि नो॑ वी॒रो अर्व॑ति क्षमेत॒ प्र जा॑येमहि रुद्र प्र॒जाभिः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ते॒ । पि॒तः॒ । म॒रु॒ता॒म् । सु॒म्नम् । ए॒तु॒ । मा । नः॒ । सूर्य॑स्य । स॒म्ऽदृशः॑ । यु॒यो॒थाः॒ । अ॒भि । नः॒ । वी॒रः । अर्व॑ति । क्ष॒मे॒त॒ । प्र । जा॒ये॒म॒हि॒ । रु॒द्र॒ । प्र॒ऽजाभिः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ ते पितर्मरुतां सुम्नमेतु मा नः सूर्यस्य संदृशो युयोथाः। अभि नो वीरो अर्वति क्षमेत प्र जायेमहि रुद्र प्रजाभिः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। ते। पितः। मरुताम्। सुम्नम्। एतु। मा। नः। सूर्यस्य। सम्ऽदृशः। युयोथाः। अभि। नः। वीरः। अर्वति। क्षमेत। प्र। जायेमहि। रुद्र। प्रऽजाभिः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 33; मन्त्र » 1
    अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 16; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ चिकित्सकविषयमाह।

    अन्वयः

    हे मरुतां पिता रुद्र सूर्यस्य संदृशस्ते सकाशान्न सुम्नमा एतु त्वं सुखादस्मान्मा युयोथा यतोऽर्वति स्थित्वा नो वीरोऽभिक्षमेत येन वयं प्रजाभिः सह प्रजायेमहि ॥१॥

    पदार्थः

    (आ) समन्तात् (ते) तव (पितः) पितृस्वरूप (मरुताम्) मनुष्याणाम् (सुम्नम्) सुखम् (एतु) प्राप्नोतु (मा) (नः) अस्मभ्यम् (सूर्यस्य) सूर्यस्येव वर्त्तमानस्य (संदृशः) यः सम्यक् पश्यति तस्य (युयोथाः) पृथक् कुर्याः (अभि) (नः) अस्माकम् (वीरः) शुभगुणव्यापी (अर्वति) उत्तमेऽश्वे स्थित्वा (क्षमेत) सहेत (प्र) (जायेमहि) (रुद्र) दुष्टानां रोदयितः (प्रजाभिः) सन्तानादिभिः ॥१॥

    भावार्थः

    सर्वे मनुष्याः परमेश्वरं परमं पितरं न्यायकारिणं मत्वा सुखमभि वर्द्धयन्तु कदाचिदीश्वरं मत्त्वा विरुद्धा मा भवन्तु सहनशीला भूत्वा वीरत्वं संपाद्य प्रजया सह सुखयन्तु ॥१॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    अब पन्द्रह चावाले तैंतीसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में वैद्यक विषय को कहते हैं।

    पदार्थ

    हे (मरुताम्) मनुष्यों के (पितः) पिता के समान (रुद्र) दुष्टों को रुलानेवाले (सूर्य्यस्य) सूर्य्य के समान वर्त्तमान और (संदृशः) जो अच्छे प्रकार देते हैं, उन (ते) आपके सकाश से (नः) हमारे लिये (सुम्नम्) सुख (आ,एतु) आवे आप सुख से हमें (युयोथाः) अलग न करें, जिससे (अर्वति) घोड़े पर चढ़के (नः) हमारा (वीरः) शुभगुणों में व्याप्त जन (अभि,क्षमेत) सब ओर से सहन करे, जिससे हम लोग (प्रजाभिः) सन्तानादि प्रजाजनों के साथ (प्र,जायेमहि) प्रसिद्ध हों ॥१॥

    भावार्थ

    सब मनुष्य परमेश्वर को परमपिता न्यायकारी मानकर सुख बढ़ावें, कभी ईश्वर को मानकर विरुद्ध न हों, सहनशील होकर वीरता सिद्धकर प्रजा के साथ सुखी हों ॥१॥

    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात वैद्य, राजपुरुष व विद्याग्रहणाचे व्यवहारवर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

    भावार्थ

    सर्व माणसांनी परमेश्वराला न्यायकारी परमपिता मानून सुख वाढवावे. ईश्वराला मानून कधी त्याच्या विरुद्ध होता कामा नये. वीर व सहनशील बनून प्रजेबरोबर सुखी राहावे. ॥ १ ॥

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Rudra, lord of the laws of nature for universal health, justice and punishment, father sustainer of the people, may your blessings of well-being ever come to us. Deprive us not of the light and benign eye of the sun. May our brave children be strong on horse back to challenge the enemies. May we rise and advance with our future generations.

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