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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 33 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 33/ मन्त्र 7
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - रुद्रः छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    क्व १॒॑ स्य ते॑ रुद्र मृळ॒याकु॒र्हस्तो॒ यो अस्ति॑ भेष॒जो जला॑षः। अ॒प॒भ॒र्ता रप॑सो॒ दैव्य॑स्या॒भी नु मा॑ वृषभ चक्षमीथाः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्व॑ । स्यः । ते॒ । रु॒द्र॒ । मृ॒ळ॒याकुः॑ । हस्तः॑ । यः । अस्ति॑ । भे॒ष॒जः । जला॑षः । अ॒प॒ऽभ॒र्ता । रप॑सः । दैव्य॑स्य । अ॒भि । नु । मा॒ । वृ॒ष॒भ॒ । च॒क्ष॒मी॒थाः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्व १ स्य ते रुद्र मृळयाकुर्हस्तो यो अस्ति भेषजो जलाषः। अपभर्ता रपसो दैव्यस्याभी नु मा वृषभ चक्षमीथाः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्व। स्यः। ते। रुद्र। मृळयाकुः। हस्तः। यः। अस्ति। भेषजः। जलाषः। अपऽभर्ता। रपसः। दैव्यस्य। अभि। नु। मा। वृषभ। चक्षमीथाः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 33; मन्त्र » 7
    अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 17; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्वैद्यकविषयमाह।

    अन्वयः

    हे वृषभ रुद्र त्वं दैव्यस्य मध्ये माभिचक्षमीथाः। यस्ते मृळयाकुर्हस्तो भेषजो जलाषो रपसोऽपभर्त्ताऽस्ति स्यः क्वास्ति ॥७॥

    पदार्थः

    (क्व) कुत्र (स्यः) सः (ते) तव (रुद्र) दुःखनिवारक (मृळयाकुः) सुखयिता (हस्तः) यो हसति सः (यः) (अस्ति) (भेषजः) भिषग् जनः (जलाषः) सुखकर्त्ता (अपभर्त्ता) अपबिभर्त्ति दूरीकरोतीति (रपसः) पापानि (दैव्यस्य) यो देवैः सह वर्त्तते तस्य (अभि) आभिमुख्ये (नु) सद्यः (मा) माम् (वृषभ) श्रेष्ठ (चक्षमीथाः) सहस्व ॥७॥

    भावार्थः

    यदाऽध्यापको वैद्यः शिष्यानध्यापयेत्तदा सम्यगध्याप्य पुनः परीक्षयेत्। यो याथातथ्येन प्रश्नोत्तराणि कर्त्ता स्यात्तं वैद्यककार्य्ये नियुञ्जीध्वम् ॥७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वैद्यक विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (वृषभ) श्रेष्ठ (रुद्र) दुःखनिवारक वैद्य आप (दैव्यस्य) जो देवों के साथ वर्त्तमान उसके बीच (मा) मुझे (अभि,चक्षमीथाः) सब ओर से सहन कीजिये (यः) जो (ते) आपको (मृळयाकुः) सुख देनेवाला (हस्तः) हर्षयुक्त (भेषजः) वैद्यजन (जलाषः) सुखकर्त्ता और (रपसः) पापों का (अपभर्त्ता) अपभर्त्ता अर्थात् दूरकर्त्ता (अस्ति) है (स्यः) वह (क्व) कहाँ है? ॥७॥

    भावार्थ

    जब अध्यापक वैद्य शिष्यों को पढ़ावे तब अच्छे प्रकार पढ़ाकर फिर परीक्षा करे, जो यथार्थ प्रश्नोत्तर करनेवाला हो, उसको वैद्यकी करने को आज्ञा देओ ॥७॥

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    विषय

    मृळयाकुः हस्तः

    पदार्थ

    १. हे (रुद्र) = सब दुःखों का द्रावण करनेवाले प्रभो ! (ते) = आपका (स्यः) = वह (मृडयाकुः) = अत्यन्त सुख प्राप्त करानेवाला (हस्तः) = हाथ (क्व) = कहाँ है ? (यः) = जो (भेषजः) = सब रोगों का औषध है और अतएव (जलाषः) = सुखकर है या सब जनों से चाहने योग्य है। [जनैः अभिलष्यते] २. आपका यह हाथ (दैव्यस्य) = सब देवों के विषय में होनेवाले (रपसः) = दोषों का (अपभर्ता) = दूर करनेवाला है। प्रभु का हाथ जब हमारे सिरों पर होता है तो [क] हमें किसी प्रकार का दुःख नहीं होता- [ख] सब रोग दूर हो जाते हैं [ग] यह सुखकर होता है [घ] दोषों व अपराधों को दूर करता है। [३] हे (वृषभ) = सब सुखों का वर्षण करनेवाले प्रभो! आप (नु) = अब (मा) = मुझे (अभिचक्षमीथाः) = क्षमा करिए। अल्पज्ञता के कारण होनेवाले अपराधों के लिए इस प्रकार प्रेरित कीजिए कि मैं उन अपराधों से ऊपर उठ सकूँ ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु का वरदहस्त = आशीर्वाद हमारे पर सदा बना रहे।

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    विषय

    रुद्र, दुष्ट-दमनकारी, पितावत् पालक राजा सेनापति और विद्वान् आचार्य, के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे (रुद्र) दुष्टों के रुलाने और प्राणियों के दुःख दूर करने हारे विद्वन् ! दयालो ! ( ते ) तेरा ( मृडयाकुः ) सबको सुख शान्ति देने हारा ( स्यः हस्तः ) वह हाथ ( क्व ) कहां है ? (यः) जो स्वयं (भेषजः) सब रोगों और कष्टों का दूर करने वाला, ( जलापः ) सन्तप्त पुरुष के ताप शान्ति करने वाले जल के समान सुखदायक ( अस्ति ) है और जो ( देवस्य ) देववश या काम्य भोगों से प्राप्त होने वाले ( रपसः ) व्याधि आदि पीड़ाओं को ( अप भर्त्ता ) दूर करता है । हे ( वृषभ ) मेघ के समान जलों और अन्नों के समान काम्य सुखों की वर्षा करने हारे, बलवन् ! ( मा ) मुझको ( नु ) सदा ( अभि चक्षमीथाः ) क्षमा कर, वा सब प्रकार से सहनशील, दृढ़, बलवान् बना ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः॥ रुद्रो देवता ॥ छन्दः– १, ५, ९, १३, १४, १५ निचृत् त्रिष्टुप् । ३, ५, ६, १०, ११ विराट् त्रिष्टुप् । ४,८ त्रिष्टुप् । २, ७ पङ्क्तिः । १२, भुरिक् पङ्क्तिः ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जेव्हा अध्यापक वैद्य शिष्यांना शिकवितात तेव्हा चांगल्या प्रकारे शिकवून नंतर परीक्षा घ्यावी. जो यथार्थ प्रश्नोत्तर करणारा असेल त्याला वैद्यकी करण्याची आज्ञा द्यावी. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Rudra, divine physician, where is that merciful hand of yours which is the healing balm (for the restoration of health), which is an antidote to the ravages of the elements of nature? O lord, potent and generous, save me, spare me, and bless me with immunity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The subject of physician (Vaidya) is further developed.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O noble physician ! you cure our sickness. You endure me from all sides in the presence of other divine people. Where is such an efficient physician, as would vanish our sins and sickness and will bring back full recovery to us and thus will make us happy ?

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    When a teacher-physician teaches students, he should also take test of their tasks. One who meets the standard in question and answers, only he should be allowed to practice medical profession.

    Foot Notes

    (मुडयाकु:) सुखयता | Giver of happiness. (भेषज:) भिषग्जन:।= Physician (अपभर्त्ता ) अपबिर्भत्ति दूरीकरोतीति। = Remover.( चक्षमीथाः ) सहस्व | = Endure.

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