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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 55 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 55/ मन्त्र 11
    ऋषिः - प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा देवता - विश्वेदेवा, अहोरात्री छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    नाना॑ चक्राते य॒म्या॒३॒॑ वपूं॑षि॒ तयो॑र॒न्यद्रोच॑ते कृ॒ष्णम॒न्यत्। श्यावी॑ च॒ यदरु॑षी च॒ स्वसा॑रौ म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नाना॑ । च॒क्रा॒ते॒ इति॑ । य॒म्या॑ । वपूं॑षि । तयोः॑ । अ॒न्यत् । रोच॑ते । कृ॒ष्णम् । अ॒न्यत् । श्यावी॑ । च॒ । यत् । अरु॑षी । च॒ । स्वसा॑रौ । म॒हत् । दे॒वाना॑म् । अ॒सु॒र॒ऽत्वम् । एक॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नाना चक्राते यम्या३ वपूंषि तयोरन्यद्रोचते कृष्णमन्यत्। श्यावी च यदरुषी च स्वसारौ महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नाना। चक्राते इति। यम्या। वपूंषि। तयोः। अन्यत्। रोचते। कृष्णम्। अन्यत्। श्यावी। च। यत्। अरुषी। च। स्वसारौ। महत्। देवानाम्। असुरऽत्वम्। एकम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 55; मन्त्र » 11
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 30; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    अन्वयः

    हे मनुष्या यद्देवानां महदेकमसुरत्वमस्ति तेन व्यवस्थापिते यत् या श्यावी यम्या चाऽरुषी स्वसाराविव वर्त्तमाने सत्यौ नाना वपूंषि चक्राते तयोरन्यदुषोरूपं रोचते च कृष्णमन्यद्रात्रिरूपमावृणोति तद्ब्रह्म विजानीत ॥११॥

    पदार्थः

    (नाना) अनेकानि (चक्राते) कुरुतः (यम्या) या सर्वान् प्राणिनो निद्रया नियच्छति सा रात्रिः। यम्येति रात्रिना०। निघं० १। ७। (वपूंषि) रूपाणि। वपुरिति रूपना०। निघं० ३। ७। (तयोः) (अन्यत्) (रोचते) प्रकाशते (कृष्णम्) निकृष्टवर्णं तमः (अन्यत्) द्वितीयमावृणोति (श्यावी) अन्धकाररूपा (च) (यत्) या (अरुषी) प्रकाशरूपोषा (च) (स्वसारौ) भगिन्याविव वर्त्तमाने (महत्) बृहत् (देवानाम्) पृथिव्यादीनां सकाशात् (असुरत्वम्) (एकम्) ॥११॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि परमेश्वरो भूमेः सूर्य्यस्य च भ्रमणस्य व्यवस्थां न कुर्य्यात्तर्हि रात्रिदिने कथं सम्भवेतां येन जगदीश्वरेण पुरुषार्थाय दिनं शयनाय शर्वरी निर्मिता तमीश्वरं हृदि सर्वे ध्यायन्तु ॥११॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (देवानाम्) पृथिवी आदिकों के समीप से (महत्) बड़ा (एकम्) द्वितीय रहित (असुरत्वम्) दोषों को फेंकनेवाला है उससे व्यवस्थापित (यत्) जो (श्यावी) अन्धकाररूप (यम्या) जो सम्पूर्ण प्राणियों को निद्रा से युक्त करती है वह रात्रि (च) और (अरुषी) प्रकाशरूप प्रातःकाल (स्वसारौ) भगिनी के सदृश वर्त्तमान हुए (नाना) अनेक प्रकार के (वपूंषि) रूपों को (चक्राते) करते हैं (तयोः) उनका (अन्यत्) अन्य प्रातःकाल रूप (रोचते) प्रकाशित होता है (च) और (कृष्णम्) काला बेकाम (अन्यत्) दूसरा वर्ण रात्रिरूप जो आवरण करता है, वह जिससे प्रसिद्ध, उसको ब्रह्म जानो ॥११॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो परमेश्वर पृथिवी और सूर्य्य के घूमने की अवस्था को न करे तो रात्रि और दिन कैसे होवें और जिस जगदीश्वर ने पुरुषार्थ के लिये दिन और शयन करने के लिये रात्रि रची, उस ईश्वर का हृदय में सब ध्यान करो ॥११॥

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    विषय

    दिन और रात

    पदार्थ

    [१] प्रभु की व्यवस्था में (यम्या) = नियन्त्रित होनेवाले, अथवा युगल रूप दिन और रात (नाना) = भिन्न-भिन्न (वपूंषि) = शरीरों को रूपों को (चक्राते) = बनाते हैं। (तयोः) = उन दोनों में से (अन्यत्) = एक [दिन] (रोचते) = सूर्य के प्रकाश से चमकता है तथा (अन्यत्) = दूसरी [रात्रि] (कृष्णम्) = अन्धकार के कारणवाली प्रतीत होती है। [२] ये (श्यावी च) = कृष्णवर्ण रात्रि और (यत्) = जो (अरुषी) = सूर्यप्रकाश से आरोचमान दिन है, ये दोनों (स्वसारौ) = परस्पर बहिनों के समान हैं। एक दूसरे के साथ ये सम्बद्ध हैं। दिन के बाद रात्रि होती है, रात्रि के बाद दिन आता है। ठीक प्रकार से विनियुक्त हुए हुए ये दिन-रात हमें (स्व-सारौ) = उस आत्मतत्त्व की ओर प्रभु की ओर ले चलनेवाले हैं। इनका ठीक विनियोग यही है कि हम 'अहन्' अर्थात् दिन को 'अ-हन्' न नष्ट करने योग्य समझें-एक-एक मिनिट को कीमती समझते हुए उसे कार्य-विनियुक्त करें। रात्रि को रमयित्री बनाएँ, दिन भर के श्रम के बाद उस समय निद्रा का विश्राम लें। ऐसा करने पर हम अनुभव करेंगे कि (देवानाम्) = सब सूर्यादि देवों का (असुरत्वम्) = प्राणशक्ति संचार का कार्य (एकम्) = अद्वितीय है तथा (महत्) = महान् है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु के बनाए दिन-रात का ठीक विनियोग करते हुए हम पूर्ण स्वस्थ बनें ।

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    विषय

    प्रभु के अधीन दो अन्य सत्ताएं।

    भावार्थ

    (श्यावी च यत् अरुषी च) कृष्ण वर्ण की रात्रि और तेजोमयी उषा दोनों जिस प्रकार (स्वसारौ) स्वयं गति करने वाली, दोनों बहनों के समान (यम्या) यम, सूर्य से उत्पन्न होकर या प्राणियों को जागृति और निद्रा में बांधने वाली, (नाना वपूंषि चक्राते) नाना रूप प्रकट करती हैं। (तयोः अन्यत् रोचते) उन दोनों में एक तेज से चमकता और (अन्यत् कृष्णम्) दूसरा कृष्ण अर्थात् अन्धकार स्वरूप है यह सब उस सूर्य के ही किरणों का बड़ा भारी महत्व है। उसी प्रकार (श्यावी) तमोमयी, राजस भाव से संवलित प्रकृति और (अरुषी) सत्ययुक्त अन्तःकरण वाली जीव या चित् सत्ता, दोनों (स्वसारौ) दो बहिनों या भाई बहनों के समान स्वयं अपने सामर्थ्य से गति करते हैं, अनादि सी होकर भी (यम्या) यम, सर्वनियन्ता परमेश्वर के अधीन रह कर ही (नाना वपूंषि) देहों और विकृत पञ्चभूतादि रूपों को बनाते वा उत्पन्न करते हैं। (तयोः) उन दोनों में से (अन्यत्) एक (रोचते) स्वयं प्रकाश आत्मा है और (अन्यत्) दूसरा प्रकृति तत्व (कृष्णम्) तमोमय वा जीव को भोगार्थ अपनी तरफ आकर्षण करने वाला है। इन सब देवों या जीवों के बीच वही परम पूज्य प्राणप्रद तत्व का विकास है। (२) राजा के पक्ष में—श्यावी पृथिवी, अरुषी पराक्रम युत तेजस्विनी सेना दोनों बहने हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा ऋषिः। विश्वेदेवा देवताः। उषाः। २—१० अग्निः। ११ अहोरात्रौ। १२–१४ रोदसी। १५ रोदसी द्युनिशौ वा॥ १६ दिशः। १७–२२ इन्द्रः पर्जन्यात्मा, त्वष्टा वाग्निश्च देवताः॥ छन्दः- १, २, ६, ७, ९-१२, १९, २२ निचृत्त्रिष्टुप्। ४, ८, १३, १६, २१ त्रिष्टुप्। १४, १५, १८ विराट् त्रिष्टुप्। १७ भुरिक् त्रिष्टुप्। ३ भुरिक् पंक्तिः। ५, २० स्वराट् पंक्तिः॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. परमेश्वराने पृथ्वी व सूर्याच्या परिवलन व परिभ्रमणाची व्यवस्था केली नसती तर रात्र व दिवस कसे झाले असते? ज्या जगदीश्वराने पुरुषार्थासाठी दिवस व शयन करण्यासाठी रात्र निर्माण केलेली आहे. त्या परमेश्वराचे हृदयात ध्यान करा. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Two twins, night and day, manifest in many forms and reveal all those many forms. One of them shines bright, the other is dark. The dark one and that which is bright are sisters. Great is the glory and power of the divinities of nature, one and undivided.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of day and night (Ahoratrau) are stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    God directs the whole universe. The twin pair (day and night) under His command adopt various forms; one of them shines brightly the other is black. The Dawn and Night are twin sisters, one is bright and the other (night) is black. You should know the Supreme Being, Who is the Great Lord and Director of the Universe.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    If God does not establish proper and coordinated order regarding the rotation of the earth around the sun, Who else can bring day and night into existence? You must always meditate that God in your hearts, Who has made day for work and night for sleep.

    Foot Notes

    (यम्या ) या सर्वान् प्राणिनो निद्रया नियच्छति सा रात्रिः । यभ्येति रात्रिनाम (NG 1, 7 ) = The night. (श्यावी ) अन्धकाररूपा = Dark.

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