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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 55 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 55/ मन्त्र 13
    ऋषिः - प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा देवता - विश्वेदेवा, रोदसी छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒न्यस्या॑ व॒त्सं रि॑ह॒ती मि॑माय॒ कया॑ भु॒वा नि द॑धे धे॒नुरूधः॑। ऋ॒तस्य॒ सा पय॑सापिन्व॒तेळा॑ म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒न्यस्याः॑ । व॒त्सम् । मि॒मा॒य॒ । कया॑ । भु॒वा । नि । द॒धे॒ । धे॒नुः । ऊधः॑ । ऋ॒तस्य॑ । सा । पय॑सा । अ॒पि॒न्व॒त॒ । इळा॑ । म॒हत् । दे॒वाना॑म् । अ॒सु॒र॒ऽत्वम् । एक॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अन्यस्या वत्सं रिहती मिमाय कया भुवा नि दधे धेनुरूधः। ऋतस्य सा पयसापिन्वतेळा महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अन्यस्याः। वत्सम्। रिहती। मिमाय। कया। भुवा। नि। दधे। धेनुः। ऊधः। ऋतस्य। सा। पयसा। अपिन्वत। इळा। महत्। देवानाम्। असुरऽत्वम्। एकम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 55; मन्त्र » 13
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    अन्वयः

    हे मनुष्या देवानां मध्ये यन्महदेकमसुरत्वं वर्त्तते तेन नियुक्ता धेनुरिव रात्रिरूधश्चाऽन्यस्या वत्सं रिहती कया भुवा सह मिमाय या निदधे सर्त्तस्य पयसा सहेळापिन्वत ॥१३॥

    पदार्थः

    (अन्यस्याः) द्वयोर्मध्य एकतरस्याः (वत्सम्) वत्सवत्पालनीयम् (रिहती) घ्नन्ती (मिमाय) मिमीते (कया) (भुवा) पृथिव्या (नि) (दधे) निदधाति (धेनुः) गोवद्वर्त्तमाना (ऊधः) उषा (ऋतस्य) सत्यस्य (सा) (पयसा) दुग्धेनेव जलेन (अपिन्वत) सिञ्चति सेवते वा (इळा) पृथिवी। इळेति पृथिवीना०। निघं० १। १। (महत्) (देवानाम्) दिव्यानां पृथिव्यादीनाम् (असुरत्वम्) (एकम्) ॥१३॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या यः परमात्मा रात्रिदिनाभ्यां पृथिवीस्थान् पदार्थाञ् शयनजागरणार्थाभ्यां प्रकाशाऽन्धकाराभ्यां वृष्ट्या च धेनुवद्रक्षति तमेवार्चत ॥१३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (देवानाम्) उत्तम पृथिवी आदिकों के मध्य में जो (महत्) बड़ा (एकम्) द्वितीयरहित (असुरत्वम्) दोषों को दूर करनेवाला वर्त्तमान है उससे युक्त (धेनुः) गौ के सदृश वर्त्तमान रात्रि और (ऊधः) प्रातःकाल (अन्यस्याः) दोनों के मध्य में एक किसी के (वत्सम्) बछड़े के सदृश पालन करने योग्य को (रिहति) नाश करती हुई (कया) किस (भुवा) पृथिवी के साथ (मिमाय) नापती है जो (नि, दधे) धारण करती है (सा) वह (ऋतस्य) सत्य के (पयसा) दुग्ध के सदृश जल के साथ (इळा) पृथिवी (अपिन्वत) सींचती वा सेवन करती है ॥१३॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जो परमात्मा रात्रि और दिन से पृथिवी में वर्त्तमान पदार्थों को शयन और जागरण प्रयोजन जिनका उन प्रकाश और अन्धकार और वृष्टि से गौ के सदृश रक्षा करता है, उसही की पूजा करो ॥१३॥

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    विषय

    [१] (धेनुः) = गौ के समान (द्यौः कया भुवा) = जलमय भूमि के द्वारा (ऊधः) = मेघ को (नि दधे) = धारण करती है। (अन्यस्याः) = दूसरी पृथिवी के (वत्सम्) = बछड़े के समान (रिहती) = मेघ को चाहती हुई (मिमाय) = ध्वनि करती है। तब (सा इडा) = वह भूमि (ऋतस्य पयसा) = सूर्य से उत्पन्न जल से (अपिन्बत) = सींचती है (देवानाम्) = सूर्य देव का (एकं महत असुरत्वम्) = एक बड़ा भारी जीवन दान करने का विशेष धर्म है ।

    पदार्थ

    भावार्थ – सूर्य देव हमें जीवन दान देता है।

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    विषय

    विद्युत् मेघ के निदर्शन से प्रभु का वर्णन। पक्षान्तर में विदेशी राज्य से हानियें।

    भावार्थ

    (धेनुः) गौ के समान रस बरसाने वाली आकाश या द्यौ (कया भुवा) जलमय भूमि के द्वारा (ऊधः) मेघ को (नि दधे) धारण करती है। उस समय वह जिस प्रकार (अन्यस्याः) अपने से भिन्न, दूसरी पृथिवी के (वत्सं) बछड़े के समान पृथिवी तल से उत्पन्न मेघ को (रिहती) बछड़े को गौ के समान चाटती हुई उसी के समान वह (मिमाय) विद्युद् गर्जन रूप से ध्वनि करती है। तब (सा इळा) वह भूमि (ऋतस्य पयसा) सूर्य से उत्पन्न या अन्न के उत्पादक और पोषक जल से (अपिन्वत) खूब सिंचती है। यह सब (देवानाम्) सूर्य की किरणों का ही (एकं महत् असुरत्वम्) एक बड़ा भारी जीवनदान करने का विशेष धर्म है। (२) राष्ट्रपक्ष में—विदेशी राजा के रहते हुए हानि दर्शाते हैं। कोई भी (धेनुः) गौ के समान भूमि, भूमिवासिनी प्रजा (अन्यस्या) दूसरी भूमि के (वत्सं) अभिवादनीय या बसने वाले राजा को (रिहती) प्राप्त कर के यदि (मिमाय) हर्ष की ध्वनि करे तो प्रश्न है कि वह (कया भुवा) किस कारण से (ऊधः निदधे) दुग्ध देने वाले स्तन के समान ऐश्वर्य देने वाला भाग धारण कारण करे। ऐसी दशा में वह विदेशी राजा को किसी भी से धन देने को बाध्य नहीं है, तो भी (ऋतस्य पयसा) सत्य न्याय के पोषक जल से वह (इळा) भूमि (अपिन्वत) सेचन पाकर वृद्धि पा सकती है। अर्थात् विदेशी शासक भी न्याय और सत्य के बल पर पराई भूमि को बढ़ा सकता है। यह ‘सत्य न्याय’ हो विजिगीषुओं का एक बड़ा भारी बल है।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा ऋषिः। विश्वेदेवा देवताः। उषाः। २—१० अग्निः। ११ अहोरात्रौ। १२–१४ रोदसी। १५ रोदसी द्युनिशौ वा॥ १६ दिशः। १७–२२ इन्द्रः पर्जन्यात्मा, त्वष्टा वाग्निश्च देवताः॥ छन्दः- १, २, ६, ७, ९-१२, १९, २२ निचृत्त्रिष्टुप्। ४, ८, १३, १६, २१ त्रिष्टुप्। १४, १५, १८ विराट् त्रिष्टुप्। १७ भुरिक् त्रिष्टुप्। ३ भुरिक् पंक्तिः। ५, २० स्वराट् पंक्तिः॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! जो परमात्मा रात्र व दिवस यांच्या साहाय्याने पृथ्वीवरील पदार्थांचे शयन, जागरण, प्रकाश व अंधकार आणि वृष्टी याद्वारे गौप्रमाणे रक्षण करतो त्याचीच पूजा करा. ॥ १३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Kissing and caressing the other’s child, i.e., the cloud, which is a concentration of vapours from the earth, the mother sky waxes with joy and laughs with thunder. By which process of nature’s, by which region of space, does she hold the milk of life in the breast? She receives it from the waters of the universal order and waxes, and the earth grows with nourishment from the nectar waters of the sky. Great and one is the glory of the divinities of nature.$(The earth too, as one of the mothers, kisses and caress the heavens’ child, sunlight, and waxes with joy. She fills her breasts with nourishment with rain from the skies and feeds both human life and nature. The vapours then rise and shower down, completing the cycle of nature’s law.)

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The functions and attributes of the Ahoratrau is elaborated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! One Great God is the life- giver and Lord of the earth and whole universe of the cow-like night and dawn licking each other's calf (so to speak). They are united with the earth that gives happiness, and upholds all, with the milk-like water given by God (Who is absolutely True). Under His command, they all sprinkle joy on all.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men! worship that One God who protects all the beings and things on earth by day and night, by waking and putting them sleep, by light and darkness and by the rain like the cow.

    Foot Notes

    (ऊधः ) उषा। ऊध इति रात्रिनाम (NG 1, 7) पय इति उदकनाम (NG 1, 12 ) = Dawn. (पयसा ) दुग्धेनेव जलेन । (पिन्वति ) पिवि -सेचने सेवनें वा = With water-like milk. (इला ) पृथिवी । इलेति पृथिवीनाम (NG 1, 1) =The earth. (अपिन्वत) सिंचति सेवते वा । = Sprinkles.

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