ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 55/ मन्त्र 3
ऋषिः - प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा
देवता - विश्वेदेवा, अग्निः
छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
वि मे॑ पुरु॒त्रा प॑तयन्ति॒ कामाः॒ शम्यच्छा॑ दीद्ये पू॒र्व्याणि॑। समि॑द्धे अ॒ग्नावृ॒तमिद्व॑देम म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥
स्वर सहित पद पाठवि । मे॒ । पु॒रु॒ऽत्रा । प॒त॒य॒न्ति॒ । कामाः॑ । शमि॑ । अच्छ॑ । दी॒द्ये॒ । पू॒र्व्या॑णि॑ । सम्ऽइ॑द्धे । अ॒ग्नौ । ऋ॒तम् । इत् । व॒दे॒म॒ । म॒हत् । दे॒वाना॑म् । अ॒सु॒र॒ऽत्वम् । एक॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
वि मे पुरुत्रा पतयन्ति कामाः शम्यच्छा दीद्ये पूर्व्याणि। समिद्धे अग्नावृतमिद्वदेम महद्देवानामसुरत्वमेकम्॥
स्वर रहित पद पाठवि। मे। पुरुऽत्रा। पतयन्ति। कामाः। शमि। अच्छ। दीद्ये। पूर्व्याणि। सम्ऽइद्धे। अग्नौ। ऋतम्। इत्। वदेम। महत्। देवानाम्। असुरऽत्वम्। एकम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 55; मन्त्र » 3
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
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अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
अन्वयः
यैर्मे पुरुत्रा कामाः पतयन्ति तानि पूर्व्याणि शम्यहमच्छ विदीद्ये समिद्धेऽग्नाविव देवानाम्महदेकमसुरत्वमृतं वदेम तदिदेव सर्वे वदन्तु ॥३॥
पदार्थः
(वि) विशेषे (मे) मम (पुरुत्रा) बहूनि (पतयन्ति) पतिमाचक्षन्ते (कामाः) अभिलाषाः (शमि) कर्माणि। शमीति कर्मना०। निघं० २। १। (अच्छ)। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (दीद्ये) प्रकाशयेयम्। दीदयतीति ज्वलतिकर्मा। निघं० १। १६। (पूर्व्याणि) पूर्वैः साधितानि (समिद्धे) प्रदीप्ते (अग्नौ) (ऋतम्) सत्यम् (इत्) एव (वदेम) महत् (देवानाम्) दिव्यानां पदार्थानां मध्ये (असुरत्वम्) प्राणाधारम् (एकम्) असहायम् ॥३॥
भावार्थः
मनुष्या आलस्यं विहाय पूर्वैराप्तैराचरितानि कर्माणि सेवित्वा देवानां देवं सर्वाधारं सत्यस्वरूपं दीपेन घटादिकमिवान्तर्व्याप्तं परमात्मानं साक्षाद्दृष्ट्वाऽन्यान् प्रत्युपदिशन्तु ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
जिनसे (मे) मेरी (पुरुत्रा) बहुत (कामाः) अभिलाषाएँ (पतयन्ति) स्वामी को स्पष्ट कहने की इच्छा करती हैं उन (पूर्व्याणि) पूर्वजनों से सिद्ध किये गये (शमि) कर्मों को मैं (अच्छ) उत्तम प्रकार (वि) विशेष करके (दीद्ये) प्रकाश करूँ (समिद्धे) प्रदीप्त (अग्नौ) अग्नि में जैसे (देवानाम्) उत्तम पदार्थों के मध्य में (महत्) बड़े (एकम्) सहायरहित (असुरत्वम्) प्राणों के आधार (ऋतम्) सत्य को (वदेम) कहे उसको (इत्) ही सब लोग कहें ॥३॥
भावार्थ
मनुष्य लोग आलस्य को त्याग के पूर्व पुरुषों करके किये हुये कर्मों का सेवन देवों के देव सबके आधार सत्यस्वरूप और दीपक से घट आदि के सदृश भीतर व्याप्त परमात्मा को साक्षात् देख के अन्य जनों के प्रति उपदेश देवैं ॥३॥
विषय
ज्ञानाग्नि को दीप्त करके ऋत का पालन
पदार्थ
[१] (मे) = मेरी (कामा:) = कामनाएँ (पुरुत्रा) = अनेक प्रकार (विपतयन्ति) = विविध दिशाओं में गतिवाली होती हैं। प्रभुकृपा से मैं (समि अच्छा) = उत्तम कर्मों का लक्ष्य करके पूर्व्याणि पालक व पूरक ज्ञानों को अथवा सृष्टि के प्रारम्भ में दिये गये इन ज्ञानों को (दीद्ये) = अपने अन्दर दीप्त करता हूँ । इन दीप्त ज्ञानों के होने पर मेरे कर्म उत्तम ही होते हैं। [२] (अग्नौ समिद्धे) = इस ज्ञानानि के समिद्ध होने पर (इत्) = निश्चय से (ऋतं वदेम) = हम अपने जीवन से ऋत का ही प्रतिपादन करें। हम ऋत को ही बोलें। हमारे सब कार्य ऋत के अनुसार हों। 'अनृतात् सत्यमुपैमि' अमृत को छोड़कर ऋत को बोलना ही तो सर्वमहान् व्रत है। यह ऋत का पालन करनेवाला अनुभव करता है कि देवों का प्राणशक्ति संचार का कार्य अद्भुत व महान् है । ऋत का पालन करनेवाले के जीवन को सूर्यादि देव प्राणशक्ति से परिपूर्ण कर देते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- हमारे में विविध कामनाएँ उठती हैं। सर्वोत्तम कामना यही है कि हम ज्ञानदीप्त होकर ऋत के अनुसार कार्यों को करनेवाले बनें ।
विषय
पक्षान्तर में विद्वान् का वर्णन, उसके कर्त्तव्य।
भावार्थ
(मे) मेरी (कामाः) नाना अभिलाषाएं (पुरुत्रा) आत्मा को तृप्त एवं प्रिय, भोग्य-सुखों द्वारा प्रसन्न करने वाली इन्द्रियों वा बहुत से प्रिय पदार्थों में (वि पतयन्ति) विविध रूपों से जाती हैं। तो भी मैं अभिलाषाओं के पीछे न भाग कर (पूर्व्याणि) पूर्व विद्वानों द्वारा आचरित और उपदेश किये गये कर्मों को (अच्छ) साक्षात् (दीद्ये) करके प्रकाशित होऊं। उनका ही आचरण करूं। हम लोग (समिद्धे अग्नौ) अग्रणी नायक के अच्छी प्रकार तेजस्वी ज्ञानवान् रूप में प्रकट होने पर, उसके प्रकाश में रहकर सदा (ऋतम्) उस सत्य आचार और ज्ञान और परमेश्वर तत्व का (वदेस) उपदेश करें जो (देवानाम्) विद्वानों के लिये (महत्) बड़ा भारी (एकम्) एक अद्वितीय (असुरत्वं) स्थूलार्थ में—अग्नि के भाव भी टपकता है। प्राणों में बल उत्पन्न करने समक्ष हम सत्य प्रतिज्ञा करें, वाला है। (२) सत्य कहें। यह भाव भी टपकता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा ऋषिः। विश्वेदेवा देवताः। उषाः। २—१० अग्निः। ११ अहोरात्रौ। १२–१४ रोदसी। १५ रोदसी द्युनिशौ वा॥ १६ दिशः। १७–२२ इन्द्रः पर्जन्यात्मा, त्वष्टा वाग्निश्च देवताः॥ छन्दः- १, २, ६, ७, ९-१२, १९, २२ निचृत्त्रिष्टुप्। ४, ८, १३, १६, २१ त्रिष्टुप्। १४, १५, १८ विराट् त्रिष्टुप्। १७ भुरिक् त्रिष्टुप्। ३ भुरिक् पंक्तिः। ५, २० स्वराट् पंक्तिः॥
मराठी (1)
भावार्थ
माणसांनी आळस सोडावा व पूर्वजांनी केलेल्या कर्माचे सेवन करावे. देवांचा देव, सर्वांचा आधारस्वरूप, सत्यस्वरूप व दीपक जसा घट प्रकाशित करतो तसे अंतःकरणात तेवणाऱ्या परमेश्वराला साक्षात पाहून इतरांना उपदेश करावा. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
My desire and ambitions are great and many, they soar high and far in search of holy fulfilment. I pray I may realise them well in solemn yajnic action, shine myself and illuminate the ancient traditions. Let us all speak the truth, sing songs of Divinity when the fire is rising in flames of yajna, and let us exalt the universal law of Divinity operative in the universe. Great, glorious and one is the life and spirit of the life and spirit of the divinities of natural force.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of Agni are mentioned.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Variously do my manifold desires try to over power me. May I seek light well (inspirations) from the deeds performed by the ancient people. As the hymns are recited at the kindling, let us always speak the Great Truth. God is the life and support of all divine things. Let all people also speak the truth and know that one-ever true God, who is un-paralleled.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
It is the duty of all men to give up all laziness, to perform good deeds of the ancient absolutely truthful and reliable persons, and to realize His presence within and outside of that One (God). Supreme spirit He is the Illuminator of all luminaries and enlightened persons and in their dwellings. They should have internally direct perception of Him through Yoga, as they visualize very far with the help of the Lighthouse. Then they should preach about Him to others.
Foot Notes
(शमि ) कर्माणि । शमीति कर्मनाम । ( NKT-2, 1 ) = Actions. (दोद्ये) प्रकाशयेयम् । दीदयतीति ज्वलतिकर्मा । ( NG 1, 16 ) = Let me illuminate. (असुरत्वम्) प्राणाधारम् । = Origins of life, life and support of all.
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