ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 29/ मन्त्र 12
ऋषिः - गौरिवीतिः शाक्त्यः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
नव॑ग्वासः सु॒तसो॑मास॒ इन्द्रं॒ दश॑ग्वासो अ॒भ्य॑र्चन्त्य॒र्कैः। गव्यं॑ चिदू॒र्वम॑पि॒धान॑वन्तं॒ तं चि॒न्नरः॑ शशमा॒ना अप॑ व्रन् ॥१२॥
स्वर सहित पद पाठनव॑ऽग्वासः । सु॒तऽसो॑मासः । इन्द्र॑म् । दश॑ऽग्वासः । अ॒भि । अ॒र्च॒न्ति॒ । अ॒र्कैः । गव्य॑म् । चि॒त् । ऊ॒र्वम् । अ॒पि॒धान॑ऽवन्तम् । तम् । चि॒त् । नरः॑ । श॒श॒मा॒नाः । अप॑ । व्र॒न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
नवग्वासः सुतसोमास इन्द्रं दशग्वासो अभ्यर्चन्त्यर्कैः। गव्यं चिदूर्वमपिधानवन्तं तं चिन्नरः शशमाना अप व्रन् ॥१२॥
स्वर रहित पद पाठनवऽग्वासः। सुतसोमासः। इन्द्रम्। दशऽग्वासः। अभि। अर्चन्ति। अर्कैः। गव्यम्। चित्। ऊर्वम्। अपिधानऽवन्तम्। तम्। चित्। नरः। शशमानाः। अप। व्रन् ॥१२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 29; मन्त्र » 12
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्वद्विषयमाह ॥
अन्वयः
हे विद्वन् ! सुतसोमासो नवग्वासो दशग्वासः शशमाना नरो यं गव्यं चिदूर्वमपिधानवन्तमिन्द्रमर्कैरभ्यर्चन्ति तस्याऽविद्यामप व्रँस्तं चित् त्वमपि शिक्षय ॥१२॥
पदार्थः
(नवग्वासः) नवीनगतयः (सुतसोमासः) निष्पादितैश्वर्यौषधयः (इन्द्रम्) विद्यैश्वर्ययुक्तम् (दशग्वासः) दश गाव इन्द्रियाणि जितानि यैस्ते (अभि) सर्वतः (अर्चन्ति) सत्कुर्वन्ति (अर्कैः) मन्त्रैर्विचारैः (गव्यम्) गोरिदम् (चित्) अपि (ऊर्वम्) अविद्याहिंसकम् (अपिधानवन्तम्) आच्छादनयुक्तम् (तम्) (चित्) (नरः) नेतारः (शशमानाः) अविद्या उल्लङ्घमानाः (अप) (व्रन्) वृण्वन्ति ॥१२॥
भावार्थः
ये नूतनविद्याजिघृक्षव ऐश्वर्य्यमिच्छुका जितेन्द्रिया विद्वांसोऽज्ञानिनः प्रबोध्य विदुषः कुर्वन्ति त एव पूजनीया भवन्ति ॥१२॥
हिन्दी (3)
विषय
अब विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वन् ! (सुतसोमासः) संपादन की ऐश्वर्य और ओषधियाँ जिन्होंने (नवग्वासः) जो नवीन गतिवाले (दशग्वासः) जिन्होंने दशों इन्द्रियों को जीता ऐसे (शशमानाः) अविद्याओं का उल्लङ्घन करते हुए (नरः) नायक जिन जिस (गव्यम्) गोसम्बन्धी (चित्) निश्चित (ऊर्वम्) अविद्या के नाश करनेवाले (अपिधानवन्तम्) आच्छादन से युक्त गुप्त (इन्द्रम्) विद्या और ऐश्वर्य्यवान् का (अर्कैः) मन्त्र वा विचारों से (अभि) सब प्रकार (अर्चन्ति) सत्कार करते और उसकी अविद्या का (अप, व्रन्) अस्वीकार करते हैं (तम्) उसको (चित्) भी आप शिक्षा दीजिये ॥१२॥
भावार्थ
जो नवीन विद्या का ग्रहण करना चाहते और ऐश्वर्य्य की इच्छा करने और इन्द्रियों के जीतनेवाले विद्वान् जन अज्ञानी जनों को बोध देकर विद्वान् करते हैं, वे ही सत्कार करने योग्य होते हैं ॥१२॥
विषय
विद्वान् आचार्य की गोरस से पूर्ण पात्र से तुलना । उसी प्रकार सम्पन्न राजा का वर्णन | पक्षान्तर में परमात्मा की उपासना और आत्म समर्पण ।
भावार्थ
भा०-(नवग्वासः ) विद्या के मार्ग में नये ही गमन करने वाले ( सुत-सोमासः ) पुत्रवत् सावित्री में उत्पन्न सौम्य शिष्य गण ( दशग्वासः ) दशों इन्द्रियों को विजय करके ( इन्द्र ) अज्ञान के विदारण और तत्व के साक्षात् करने वाले गुरु को ( अर्कैः ) अर्चना करने योग्य शुश्रूषा, स्तुति वचन आदि उपायों से देववत् (अभि अर्चन्ति ) सब प्रकार से आदर सत्कार करते हैं । ( चित् नरः अपिधानवन्तं गव्यम् ऊर्वम् यथाअप व्रन् ) जिस प्रकार लोग ढकनेदार गोदुग्ध से पूर्ण बड़े पात्र को खोलते हैं और उसमें से अभीष्ट गोरस लेकर पान करते हैं उसी प्रकार ( शशमानाः नरः ) उसकी प्रशंसा स्तुति करने वाले वा निरन्तर उत्तम से उत्तम पद पर वेग से प्रसन्नता पूर्वक जाते हुऐ छात्र लोग ( अपि धान- वन्तं ) आच्छादन से युक्त (ऊर्वम्) अज्ञाननाशक ( गव्यं ) वेद वाणी के पात्र रूप ( तं ) उस आचार्य को भी ( अप व्रन् ) अपने प्रति खोलें, उसे प्रसन्न कर उसका ज्ञान प्राप्त करें । इसी प्रकार नव २ स्तुतिकर्ता, जितेन्द्रिय लोग परमेश्वर की स्तुति करें । स्तुत्य, विघ्ननाशक मानों आवरण में छुपे गुह्य परमेश्वर को शमादि के अभ्यासी, उन्नतिशील भक्त जन अपने प्रति प्रकाशित करें अपने और उपास्य के बीच के आवरण को दूर करें | हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् । ( ३ ) नव भूमिपति एवं दश ग्रामाधिपति राजा का आदर करें, उत्तम जन ही भूभि के महान् शत्रुहन्ता स्वामी को पर्दे के पीछे न रख कर अपने प्रति खोलें उसका विशेष परिचय प्राप्त करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गौरिवीतिः शाक्त्य ऋषिः ॥ १–८, ९–१५ इन्द्रः । ९ इन्द्र उशना वा ॥ देवता ॥ छन्दः–१ भुरिक् पंक्तिः । ८ स्वराट् पंक्तिः । २, ४, ७ त्रिष्टुप, । ३, ५, ६, ९,१०, ११ निचृत् त्रिष्टुप् । १२, १३, १४, १५ विराट् त्रिष्टुप् । पञ्चदशर्चं सूक्तम् ।।
विषय
'स्तवन' व 'पवित्र दीर्घजीवन'
पदार्थ
१. नवम दशक तक - -नब्बे साल तक चलनेवाले 'नवग्व' हैं तथा दशम दशक तक जानेवाले 'दशग्व' हैं। ये (नवग्वासः) = नब्बे वर्ष तक चलनेवाले, दशग्वासः = १०० वर्ष तक चलनेवाले (सुतसोमासः) = सोम का (वीर्य का) सम्पादन करनेवाले लोग ही (अर्कैः) = मन्त्रों द्वारा (इन्द्रम्) = उस सर्वशक्तिमान् प्रभु की (अभ्यर्चन्ति) = प्रातः सायं पूजा करते हैं। यह पूजा ही उन्हें वासनाओं के आक्रमण से बचाती है। तभी वे सोम का रक्षण कर पाते हैं और दीर्घजीवी बनते हैं । २. ये (शशमाना) = प्रभु का शंसन करते हुए अथवा प्लुत गति से कार्यों को करते हुए (नरः) = उन्नति पथ पर चलनेवाले लोग (तं) = उस (अपिधानवन्तम्) = वासनाओं के आवरण से आच्छादित (चित्) = भी (गव्यम् ऊर्वम्) = इन्द्रियों के समूह को (चित्) = निश्चय से (अपव्रन्) = आच्छादन रहित करते हैं। शशमान ही इन्द्रियों को विषय वासनाओं से लिप्त होने से बचा पाते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु का अर्चन करते हुए दीर्घजीवी बनें, और इन्द्रिय समूह को विषय वासनाओं से आवृत हो जाने से बचाएँ ।
मराठी (1)
भावार्थ
नवीन विद्या शिकू इच्छिणारे, ऐश्वर्याची इच्छा करणारे, इन्द्रियांना जिंकणारे विद्वान लोक अज्ञानी लोकांना बोध करून विद्वान करतात तेच सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ १२ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Men of new ideas treading new paths of knowledge and polity, men of controlled mind and senses, celebrants ready with distilled exhilarating soma, adore Indra with songs and presentations of homage and, celebrating him, the dedicated admirers, best of men and leaders, extol him revealing his vast but hidden virtues of divine knowledge.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes and duties of the enlightened persons are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned person ! you should also provide instruction or noble advice to men, endowed with the wealth of knowledge, who have acquired wealth and various herbs like the Soma, who are new or original in their pursuits, who have perfect control over their ten senses (five senses of perception and five of actions). In fact, they have shaken off ignorance, and honor ably accept noble thoughts from all sides. That Indra (desirous of more wealth of wisdom) is fond of and protector of the cattle, is dispeller of ignorance and is covered with (full of Ed.) humility other noble virtues. All his ignorance is removed by the enlightened men.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Eager to learn more and more sciences, and desirous of acquiring true wealth (of wisdom etc.), the self-controlled scholars make the ignorant highly learned, and thus become worthy of veneration.
Foot Notes
(नवग्वासः) नबीनगतमः नवग्बाः नवगतयो नवनीतगतयो वेति (NKT 11, 2, 19 ) = Men of new or original pursuits. (दशग्वासः) दश गाव इंद्रियाणि जितानि येस्ते । = Who have conquered all their ten senses i. e, five senses of perception and five senses of action. (ऊर्वम्) अविद्याहिंसकम् ऊर्वी हिंसार्थं (भ्वा.) । = Destroyer of ignorance. (शशमानाः) अविद्या उल्लङ्घमानाः शश प्लुतगतौ (भ्वा.) प्लुतगति एल्लङ्घम् ।अर्के मन्त्रो-भवणीय दनेनार्चन्ति (NG 5, 11, 4 ) = Transgressing or going beyond all ignorance.
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