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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 29 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 29/ मन्त्र 9
    ऋषिः - गौरिवीतिः शाक्त्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    उ॒शना॒ यत्स॑ह॒स्यै॒३॒॑रया॑तं गृ॒हमि॑न्द्र जूजुवा॒नेभि॒रश्वैः॑। व॒न्वा॒नो अत्र॑ स॒रथं॑ ययाथ॒ कुत्से॑न दे॒वैरव॑नोर्ह॒ शुष्ण॑म् ॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒शना॑ । यत् । स॒ह॒स्यैः॑ । अया॑तम् । गृ॒हम् । इ॒न्द्र॒ । जू॒जु॒वा॒नेभिः॑ । अश्वैः॑ । व॒न्वा॒नः । अत्र॑ । स॒रथ॑म् । य॒या॒थ॒ । कुत्से॑न । दे॒वैः । अव॑नोः । ह॒ । शुष्ण॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उशना यत्सहस्यै३रयातं गृहमिन्द्र जूजुवानेभिरश्वैः। वन्वानो अत्र सरथं ययाथ कुत्सेन देवैरवनोर्ह शुष्णम् ॥९॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उशना। यत्। सहस्यैः। अयातम्। गृहम्। इन्द्र। जूजुवानेभिः। अश्वैः। वन्वानः। अत्र। सऽरथम्। ययाथ। कुत्सेन। देवैः। अवनोः। ह। शुष्णम् ॥९॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 29; मन्त्र » 9
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे इन्द्र त्वमुशना च ! युवां सहस्यैः सह जूजुवानेभिरश्वैश्चालिते याने स्थित्वा यद् गृहमयातमत्र ह वन्वानस्त्वं कुत्सेन देवैः शुष्णमवनोः। हे मनुष्या ! यूयमेताभ्यां सह सरथं ह ययाथ ॥९॥

    पदार्थः

    (उशना) कामयमानः (यत्) (सहस्यैः) सहस्सु बलेषु भवैः (अयातम्) प्राप्नुतम् (गृहम्) (इन्द्र) राजन् (जूजुवानेभिः) वेगवद्भिः। अत्र तुजादीनामित्यभ्यासदैर्घ्यम्। (अश्वैः) तुरङ्गैरग्न्यादिभिर्वा (वन्वानः) याचमानः (अत्र) अस्मिन् जगति (सरथम्) रथेन सह वर्त्तमानम् (ययाथ) प्राप्नुत (कुत्सेन) वज्रेणेव दृढेन कर्मणा (देवैः) विद्वद्भिः (अवनोः) रक्ष (ह) किल (शुष्णम्) बलम् ॥९॥

    भावार्थः

    ये राजादयो मनुष्याः सुसभ्याः स्युस्ते विमानादीनि निर्मातुं शक्नुयुर्दुष्टान् हन्तुं समर्था भवेयुः ॥९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (इन्द्र) राजन् आप और (उशना) कामना करता हुआ जन ! तुम दोनों (सहस्यैः) बलों में उत्पन्न हुए पदार्थों के साथ (जूजुवानेभिः) वेगवाले (अश्वैः) घोड़ों वा अग्नि आदिकों से चलाये गये वाहन पर स्थित हो के (यत्) जिस (गृहम्) गृह को (अयातम्) प्राप्त हूजिये और (अत्र) इस जगत् में (ह) निश्चय से (वन्वानः) याचना करते हुए आप (कुत्सेन) वज्र के सदृश दृढ़ कर्म्म से (देवैः) विद्वानों से (शुष्णम्) बल की (अवनोः) रक्षा करिये और हे मनुष्यो ! आप लोग इन दोनों के साथ (सरथम्) रथ के साथ वर्त्तमान जैसे हो, वैसे निश्चय से (ययाथ) प्राप्त होओ ॥९॥

    भावार्थ

    जो राजा आदि मनुष्य उत्तम प्रकार श्रेष्ठ होवें, वे विमान आदि वाहनों को बना सकें और दुष्ट जनों के मारने को समर्थ होवें ॥९॥

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    विषय

    शत्रु नाश ।

    भावार्थ

    भा०-हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! शत्रुहन्तः ! राजन् ! तू ( उशनाः ) स्वयं ऐश्वर्य समृद्धि की कामना करता हुआ और सैन्य जन दोनों ( यत् ) जब ( जुजुवानेभिः ) वेगवान् (अश्वैः ) घुड़सवारों सहित (गृहम् अयातम् ) अपने घर को आते हो, तब तू ( अत्र ) इस राष्ट्र में ( वन्वानः ) ऐश्वर्य का भोग करता हुआ, ( सरथं ) रथ सैन्य के साथ ( ययाथ ) प्रयाण कर और ( कुत्सेन) शस्त्र बल और ( देवैः ) विद्वानों और वीर पुरुषों सहित (शुष्णम् ) शत्रुशोषक सैन्य बल की ( अवनोः ) रक्षा कर और ( शुषाम् ) प्रजाशोषक दुष्ट जनो का ( अवनोः ) विनाश कर, दण्डित कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गौरिवीतिः शाक्त्य ऋषिः ॥ १–८, ९–१५ इन्द्रः । ९ इन्द्र उशना वा ॥ देवता ॥ छन्दः–१ भुरिक् पंक्तिः । ८ स्वराट् पंक्तिः । २, ४, ७ त्रिष्टुप, । ३, ५, ६, ९,१०, ११ निचृत् त्रिष्टुप् । १२, १३, १४, १५ विराट् त्रिष्टुप् । पञ्चदशर्चं सूक्तम् ।।

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    विषय

    शुष्ण संहार

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् व सर्वशक्तिमन् प्रभो! आप और (उशना:) = [कामयमान:] आपकी प्राप्ति की कामनावाला यह जीवन (यत्) = जब (सहस्यैः) = उत्तमशत्रुमर्षक बलवाले (जूजुवानेभिः) = वेगवान् (अश्वैः) = इन्द्रियाश्वों के साथ (गृहम् अयातम्) = इस शरीर गृह में प्राप्त होते हो तो (वन्वानः) = यह जीव सदा शत्रुओं को जीतनेवाला होता है। प्रभु के सम्पर्क में जीव शत्रुओं से कुचला नहीं जाता। २. हे प्रभो! आप (कुत्सेन) = [कुथ हिंसायाम्] इन वासनाओं का विनाश करनेवाले जीव के साथ (अत्र) = यहाँ (सरथम्) = समान रथ में (ययाथ) = गति करते हैं तो आप ही (देवैः) = दिव्य गुणों के द्वारा (शुष्णम्) = सुखा देनेवाले इस काम रूप शत्रु को (ह) = निश्चय से (अवनो:) = [अहिंसी:] हिंसित करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- जब जीव प्रभु प्राप्ति की कामनावाला होता हुआ अपने शरीररथ में प्रभु के साथ अधिष्ठित होता है तो प्रभु इस के लिए वासना को विनष्ट करते हैं।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजा इत्यादी जी माणसे श्रेष्ठ असतात. त्यांनी विमान इत्यादी वाहने निर्माण करून दुष्टांना मारण्यास समर्थ असावे. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, glorious ruler, when the man of light and passion and you both come home by chariot driven by swift and robust horses, then, again with love and desire for victory, pray go with the thunderbolt and the best of the brilliancies and defend the strength and honour of the nation.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of a king are further stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O king and your friend desiring the welfare of others! come to your home loaded with many useful and nourishing articles in the vehicles drawn by speedy horse or by Agni (energy or electricity etc.). With a powerful act like that of a thunderbolt, desiring or paying for the protection of all good men, with the help of the highly learned persons, in fact it is you who protect them. O men! you should also accompany them in chariots.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The king and others who are civilized, can manufacture aircraft and other vehicles and annihilate the wicked.

    Translator's Notes

    कुत्स इति वज्रनाम (NG 2, 20) शुष्णम् इति बलनाम (NG 2, 9) Sayanacharya, Prof. Wilson & Griffith and others have wrongly interpreted the words used in the mantras like Kutsa and Shushna as the names of particular persons. It is against the fundamental principles of the Vedic terminology and the Vedic lexicon Nighantu as quoted above. Sayanacharya's interpretation of शुष्यम् as एतन्नामानसुरम् can not be authentic as it is against his own preliminary Introduction to the Rigveda Samhita. Rishi Dayanand Sarasvati's interpretation of कुत्स, शुष्य other words is based upon Nighantu, the Vedic lexicon.

    Foot Notes

    (उशना ) कामयमानः । = Desiring the welfare of all. (कुत्सेन) वज्रेणेत्र दृढेन कर्मण। = With a powerful act like a thunderbolt.

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