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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 54 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 54/ मन्त्र 15
    ऋषि: - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    तद्वो॑ यामि॒ द्रवि॑णं सद्यऊतयो॒ येना॒ स्व१॒॑र्ण त॒तना॑म॒ नॄँर॒भि। इ॒दं सु मे॑ मरुतो हर्यता॒ वचो॒ यस्य॒ तरे॑म॒ तर॑सा श॒तं हिमाः॑ ॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत् । वः॒ । या॒मि॒ । द्रवि॑णम् । स॒द्यः॒ऽऊ॒त॒यः॒ । येन॑ । स्वः॑ । न । त॒तना॑म । नॄन् । अ॒भि । इ॒दम् । सु । मे॒ । म॒रु॒तः॒ । ह॒र्य॒त॒ । वचः॑ । यस्य॑ । तरे॑म । श॒तम् । हिमाः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तद्वो यामि द्रविणं सद्यऊतयो येना स्व१र्ण ततनाम नॄँरभि। इदं सु मे मरुतो हर्यता वचो यस्य तरेम तरसा शतं हिमाः ॥१५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तत्। वः। यामि। द्रविणम्। सद्यःऽऊतयः। येन। स्वः। न। ततनाम। नॄन्। अभि। इदम्। सु। मे। मरुतः। हर्यत। वचः। यस्य। तरेम। तरसा। शतम्। हिमाः ॥१५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 54; मन्त्र » 15
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे सद्यऊतयो मरुतो ! वो यद्द्रविणमहं यामि तद्यूयं प्रयच्छत येना स्वर्ण नॄनभि ततनाम यूयमिदं मे वचो सु हर्यत यस्य तरसा वयं शतं हिमास्तरेम तेन यूयममि तरत ॥१५॥

    पदार्थः

    (तत्) (वः) युष्माकं सकाशात् (यामि) प्राप्नोमि (द्रविणम्) धनं यशो वा (सद्यऊतयः) क्षिप्राणि रक्षणादीनि येषां ते (येना) (स्वः) सुखम् (न) इव (ततनाम) विस्तीर्णीयाम (नॄन्) मनुष्यान् (अभि) (इदम्) (सु) (मे) (मरुतः) मनुष्याः (हर्यता) कामयध्वम् (वचः) वचनम् (यस्य) (तरेम) (तरसा) बलेन (निघं०२.९) (शतम्) (हिमाः) वर्षाणि ॥१५॥

    भावार्थः

    हे विद्वांसो ! भवन्तो यशो धनं सुखं सत्यं वचो बलं च वर्धयित्वा दुःखानि तरन्त्विति ॥१५॥ अत्र सूर्यविद्युन्सुखगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति चतुःपञ्चाशत्तमं सूक्तं षोडशो वर्गश्च समाप्तः ॥

    हिन्दी (1)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (सद्यऊतयः) शीघ्र रक्षण आदिवाले (मरुतः) मनुष्यो (वः) आप लोगों के समीप से जिस (द्रविणम्) धन वा यश को (यामि) प्राप्त होता हूँ (तत्) उसको आप लोग दीजिये (येना) जिससे (स्वः) सुख के (न) सदृश (नॄन्) मनुष्यों को (अभि, ततनाम) सब प्रकार विस्तृत करें और आप लोग (इदम्) इस (मे) मेरे (वचः) वचन की (सु, हर्यता) अच्छे प्रकार कामना करिये और (यस्य) जिसके (तरसा) बल से हम लोग (शतम्) सौ (हिमाः) वर्ष (तरेम) पार होवें, उससे आप लोग भी पार हूजिये ॥१५॥

    भावार्थ

    हे विद्वानो ! आप लोग यश, धन, सुख, सत्य, वचन और बल को बढ़ाय दुःखों के पार हूजिये ॥१५॥ इस सूक्त में बिजुली और सुख के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह चौवनवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे विद्वानांनो! तुम्ही यश, धन, सुख, सत्यवचन व बल वाढवून दुःखातून पार पडा. ॥ १५ ॥

    English (1)

    Meaning

    O Maruts, leading lights of humanity and generous divinities of nature, instant givers of protection and all round support, listen and accept this holy voice of mine: I feel blest with that wealth of yours by which we can promote the life of humanity as in a heaven of bliss on earth, and by which we would live a happy life over a hundred years with strength and success.

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