ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 54/ मन्त्र 4
व्य१॒॑क्तून्रु॑द्रा॒ व्यहा॑नि शिक्वसो॒ व्य१॒॑न्तरि॑क्षं॒ वि रजां॑सि धूतयः। वि यदज्राँ॒ अज॑थ॒ नाव॑ ईं यथा॒ वि दु॒र्गाणि॑ मरुतो॒ नाह॑ रिष्यथ ॥४॥
स्वर सहित पद पाठवि । अ॒क्तून् । रु॒द्राः॒ । वि । अहा॑नि । शि॒क्व॒सः॒ । वि । अ॒न्तरि॑क्षम् । वि । रजां॑सि । धू॒त॒यः॒ । वि । यत् । अज्रा॑न् । अज॑थ । नावः॑ । ई॒म् । य॒था॒ । वि । दुः॒ऽगानि॑ । म॒रु॒तः॒ । न । अह॑ । रि॒ष्य॒थ॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
व्य१क्तून्रुद्रा व्यहानि शिक्वसो व्य१न्तरिक्षं वि रजांसि धूतयः। वि यदज्राँ अजथ नाव ईं यथा वि दुर्गाणि मरुतो नाह रिष्यथ ॥४॥
स्वर रहित पद पाठवि। अक्तून्। रुद्राः। वि। अहानि। शिक्वसः। वि। अन्तरिक्षम्। वि। रजांसि। धूतयः। वि। यत्। अज्रान्। अजथ। नावः। ईम्। यथा। वि। दुःऽगानि। मरुतः। न। अह। रिष्यथ ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 54; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 14; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 14; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः किं ज्ञातव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे मरुतो ! यद्ये शिक्वसो धूतयो रुद्रा अक्तून् प्रकटयन्त्यहानि वि मिमतेऽन्तरिक्षं प्रति रजांसि विदधति विचालयन्तीं नाव इव सर्वान् लोकानागमयन्ति तानज्रान् व्यजथ यथा दुर्गाणि नाह वि रिष्यथ तथा विचरत ॥४॥
पदार्थः
(वि) (अक्तून्) प्रसिद्धान् (रुद्राः) (वायवः) (वि) विशेषे (अहानि) दिनानि (शिक्वसः) शक्तिमन्तः (वि) (अन्तरिक्षम्) (वि) (रजांसि) लोकान् (धूतयः) ये धुन्वन्ति (वि) (यत्) (अज्रान्) सततगामिनः (अजथ) गच्छथ (नावः) महत्यो नौकाः (ईम्) जलम् (यथा) (वि) (दुर्गाणि) दुःखेन गन्तुं योग्यानि (मरुतः) मनुष्याः (न) (अह) विनिग्रहे (रिष्यथ) हिंस्यथ ॥४॥
भावार्थः
मनुष्यैर्वायुविद्या अवश्यं ज्ञातव्या ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को क्या जानना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (मरुतः) मनुष्यो ! (यत्) जो (शिक्वसः) सामर्थ्य से युक्त (धूतयः) काँपनेवाले (रुद्राः) पवन (अक्तून्) प्रसिद्धों को प्रकट करते हैं और (अहानि) दिनों का (वि) विशेष करके परिणाम करते अर्थात् गिनाते हैं (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष के प्रति (रजांसि) लोकों का (वि) विधान करते और (वि) विशेष करके चलाते हैं तथा (ईम्) जल को जैसे (नावः) बड़ी नौकायें, वैसे सम्पूर्ण लोकों को चलाते हैं, उन (अज्रान्) निरन्तर चलानेवालों को (वि, अजथ) प्राप्त हूजिये और (यथा) जैसे (दुर्गणि) दुःख से प्राप्त होने योग्यों को (न) नहीं (अह) ग्रहण करने में (वि, रिष्यथ) नाश करें वैसे (वि) विचरिये ॥४॥
भावार्थ
मनुष्यों को चाहिये कि वायुविद्या को अवश्य जानें ॥४॥
विषय
विद्वानों के कर्त्तव्य । पक्षान्तर में वृष्टि लाने वाले वायुओं, मेघों और बिजुलियों की भौतिकविद्या का वर्णन । उनके दृष्टान्तों से नाना प्रकार के उपदेश ।
भावार्थ
भा०-हे ( मरुतः ) वायु के समान बलवान् पुरुषो ! जिस प्रकार वायुगण ( शिक्वसः धूतयः भवन्ति ) शक्तिशाली और वृक्षादि सब पदार्थों को कंपाने वाले होते हैं वे सब रातें, सब दिनों (अन्तरिक्षं ) अन्तरिक्ष में ( रजांसि ) समस्त लोकों को वा धूलियों को और (अजानू ) मेघों को (वि-अजथ) विविध प्रकार से उड़ाते हैं, उसी प्रकार आप लोग ( अक्तून् अहानि वि अजथ ) सब दिनों सब रातों और विविध रूप से जाते हो, और आप लोग (रुद्राः) दुष्टों को रुलानेहारे ( शिक्वसः) शक्ति शाली, और ( धूतयः ) सत्र शत्रुओं को कंपाते हुए ( अन्तरिक्षं ) मध्य में विद्यमान देश को और ( रजांसि वि) समस्त प्रजा जनों को और (अ ज्रान् वि अजथ) बड़े २ योद्धाओं को विविध उपायों से उखाड़ फेंक दिया करें। और ( यथा नाव : ईं ) नौकाओं को वायु गण चलाते हैं उसी प्रकार आप विद्वान् लोग ( दुर्गाणि वि अजय ) दुःख से गमन करने योग्य विषमताओं को दूर करो और ( अह ) तिस पर भी ( न रिष्यथ ) स्वयं नष्ट नहीं होवो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्दः- १, ३, ७, १२ जगती । २ विराड् जगती । ६ भुरिग्जगती । ११, १५. निचृज्जगती । ४, ८, १० भुरिक् त्रिष्टुप । ५, ९, १३, १४ त्रिष्टुप् ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
'रुद्राः शिक्वस: ' मरुतः
पदार्थ
[१] (रुद्राः) = [रुत् द्र] रोगों का द्रावण करनेवाले [मरुत्] प्राणो! (अक्तून्) = रात्रियों में (वि अजथ) = विशिष्ट गतिवाले होते हो। (अहानि) = दिनों में भी (वि) [अजथ] = विशिष्ट गतिवाले होते हो। ये प्राण दिन-रात चलते हैं । हे (शिक्वसः) = शक्तिशाली प्राणो! (अन्तरिक्षम्) = हृदयान्तरिक्ष में (वि) = विशिष्ट गतिवाले होते हो । (रजांसि) = [gloom darkness] अन्धकारों को (विधूतयः) = कम्पित करके दूर करनेवाले हो । [२] हे (मरुतः) = प्राणो ! (यत्) = जब (अज्रान्) = शरीर रूप क्षेत्रों में (वि) [अजथ] = गतिवाले होते हो (यथा) = जैसे (नाव:) = नौकाएँ (ईम्) = निश्चय से समुद्र में गतिवाली होती हैं, तो (दुर्गाणि) = सब दुर्गों व कष्टों को (वि) [अजथ] = दूर करते हो और (अह) = निश्चय से (न रिष्यथ) = हिंसित नहीं होते हो ।
भावार्थ
भावार्थ- प्राण दिन-रात गतिवाले होते हुए अन्धकार को दूर करते हैं। शरीर क्षेत्रों में गति करते हुए ये प्राण सब कष्टों को दूर करते हैं ।
मराठी (1)
भावार्थ
माणसांनी वायुविद्या अवश्य जाणाव्या. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O potent Maruts, mighty blazing and roaring powers of cosmic winds, Rudras, breakers and makers of things, you shake the nights and days in and out, you shake the skies and atmosphere, you move the particles of matter and pass over regions as the ship sails over the sea. You break open the strongholds of nature and yet you never hurt nor destroy.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should men know is told further.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! you should move freely in the earth like powerful winds, which manifest well known things, measure days, take the dust of the earths towards the firmament, like the boats move on the waters. You go to or acquire the knowledge of those winds so that you may not suffer from difficulties.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Men must acquire the knowledge of the science of air.
Foot Notes
(रुद्राः) वायवः । मरुतः महत् द्रवन्तीति । = Winds. (अक्तून् ) प्रसिद्धान् । अक्तून् -अंजु – व्यक्तिप्रदानकान्तिगतिषु (रुधा० ) अत्र व्यक्तयर्थः । = Famous articles. (शिक्वसः) शक्तिमन्तः । = Powerful, (अवान्न्) सततगामिनः । अज गतिक्षेपणयो: (भ्वा० ) | = Things which are evermoving. (ईम् ) जलम् । ईम् इति उदकनाम ( NG 1, 12)। = Water.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal