ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 54/ मन्त्र 2
प्र वो॑ मरुतस्तवि॒षा उ॑द॒न्यवो॑ वयो॒वृधो॑ अश्व॒युजः॒ परि॑ज्रयः। सं वि॒द्युता॒ दध॑ति॒ वाश॑ति त्रि॒तः स्वर॒न्त्यापो॒ऽवना॒ परि॑ज्रयः ॥२॥
स्वर सहित पद पाठप्र । वः॒ । म॒रु॒तः॒ । त॒वि॒षाः । उ॒द॒न्यवः॑ । व॒यः॒ऽवृधः॑ । अ॒श्व॒ऽयुजः॑ । परि॑ऽज्रयः । सम् । वि॒ऽद्युता॑ । दध॑ति । वाश॑ति । त्रि॒तः । स्वर॑न्ति । आपः॑ । अ॒वना॑ । परि॑ऽज्रयः ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र वो मरुतस्तविषा उदन्यवो वयोवृधो अश्वयुजः परिज्रयः। सं विद्युता दधति वाशति त्रितः स्वरन्त्यापोऽवना परिज्रयः ॥२॥
स्वर रहित पद पाठप्र। वः। मरुतः। तविषाः। उदन्यवः। वयःऽवृधः। अश्वऽयुजः। परिऽज्रयः। सम्। विऽद्युता। दधति। वाशति। त्रितः। स्वरन्ति। आपः। अवना। परिऽज्रयः ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 54; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्म्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
अन्वयः
हे मरुतो ! ये तविषा उदन्यवो वयोवृधोऽश्वयुजः परिज्रयो विद्युता सह वो युष्मान् सन्दधति वाशति। त्रितः परिज्रय आपोऽवना प्र स्वरन्ति तान् यूयं सत्कुरुत ॥२॥
पदार्थः
(प्र) (वः) युष्मान् (मरुतः) मनुष्याः (तविषाः) बलवन्तः (उदन्यवः) आत्मन उदकमिच्छवः (वयोवृधः) ये वयसा वर्धन्ते वयो वर्धयन्ति वा (अश्वयुजः) येऽश्वान् सद्योगामिनः पदार्थान् योजयन्ति (परिज्रयः) ये परितः सर्वतो गच्छन्ति ते (सम्) (विद्युता) (दधति) (वाशति) वाणीवाचरन्ति (त्रितः) त्रिभ्यः (स्वरन्ति) शब्दयन्ति (आपः) जलानि (अवना) अवनादीनि रक्षणदीनि (परिज्रयः) परितः सर्वतो ज्रयो गतिमन्तः ॥२॥
भावार्थः
ये मनुष्या विद्युदादिविद्यां जानन्ति ते सर्वं सुखं सर्वार्थं दधति ॥२॥
हिन्दी (2)
विषय
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (मरुतः) मनुष्यो ! जो (तविषाः) बलवान् (उदन्यवः) अपने को जल की इच्छा करने (वयोवृधः) अवस्था से बढ़ने वा अवस्था को बढ़ाने (अश्वयुजः) शीघ्रगामी पदार्थों को युक्त करने (परिज्रयः) और सब और जानेवाले जन (विद्युता) बिजुली के साथ (वः) आप लोगों को (सम्, दधति) उत्तम प्रकार धारण करते और (वाशति) वाणी के सदृश आचरण करते हैं और (त्रितः) तीन से (परिज्रयः) सब ओर जानेवाले (आपः) जल (अवना) रक्षण आदि का (प्र, स्वरन्ति) अच्छे प्रकार उच्चारण करते हैं, उनका आप लोग सत्कार करो ॥२॥
भावार्थ
जो मनुष्य बिजुली आदि की विद्या को जानते हैं, वे सम्पूर्ण सुख को सब के लिये धारण करते हैं ॥२॥
विषय
विद्वानों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
भा०-हे ( मरुतः ) विद्वान् लोगो ! ( वः ) आप लोगों में से जो ( उदन्यवः) वायुओं के तुल्य जलवत् उत्तम ज्ञान को ग्रहण करने के इच्छुक, ( तविषाः ) बलवान् ( वयोवृधः ) ज्ञान, बल, आयु की वृद्धि करने वाले, ( अश्व-युजः ) प्रबल अश्वों को रथ में लगाने वाले एवं योगाभ्यास द्वारा आत्मा को परमात्मा में लगाने तथा इन्द्रिय गण को अपने वश में करने वाले, (परि-ज्रयः ) सर्वत्र, सब ओर जाने में समर्थ हों, और जो ( विद्युता) विजुली से, ( सं दधति ) यन्त्रों का संधान करते, अथवा विशेष कान्ति वा ज्ञान दीप्ति से युक्त विद्वान् पुरुष के साथ (स दधति) प्रेम से मिलकर ज्ञान धारण करते हैं, जो (त्रितः ) तीनों से ( वाशति ) ज्ञानोपदेश ग्रहण करते, मन्त्रों का पाठ करते ( स्वरन्ति ) और स्वरसहित गान करते हैं वे ( आपः ) आप्त पुरुष ( अवना ) भूमि पर (परिज्रयः ) जल-धाराओं के समान सर्वत्र गमन करें और शान्ति प्रदान करें। ( २ ) वायुगण, बलशाली, सूर्य ताप से भूमिस्थ जल को ग्रहण करने वाले, अन्न को बढ़ाने वाले, विद्युत् से मिलने वाले होकर गर्जते हैं उनके साथ, जल वृष्टियां भूमि पर गिरती हैं ।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्दः- १, ३, ७, १२ जगती । २ विराड् जगती । ६ भुरिग्जगती । ११, १५. निचृज्जगती । ४, ८, १० भुरिक् त्रिष्टुप । ५, ९, १३, १४ त्रिष्टुप् ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे विद्युत इत्यादी विद्या जाणतात ती सर्वांना सुख देतात. ॥ २ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Maruts of sky and space, your powerful currents of wind laden with vapours, bearers of food, energy and healthful age for living beings, going all round on the wings of electric energy, take on the thunder of lightning roaring as trinity of wind, water and lightning, and the waters shower over the earth everywhere as harbingers of food and health for all.
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