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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 15 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 15/ मन्त्र 17
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - अग्निः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    इ॒ममु॒ त्यम॑थर्व॒वद॒ग्निं म॑न्थन्ति वे॒धसः॑। यम॑ङ्कू॒यन्त॒मान॑य॒न्नमू॑रं श्या॒व्या॑भ्यः ॥१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मम् । ऊँ॒ इति॑ । त्यम् । अ॒थ॒र्व॒ऽवत् । अ॒ग्निम् । म॒न्थ॒न्ति॒ । वे॒धसः॑ । यम् । अ॒ङ्कु॒ऽयन्त॑म् । आ । अन॑यन् । अमू॑रम् । स्या॒व्या॑भ्यः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इममु त्यमथर्ववदग्निं मन्थन्ति वेधसः। यमङ्कूयन्तमानयन्नमूरं श्याव्याभ्यः ॥१७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमम्। ऊँ इति। त्यम्। अथर्वऽवत्। अग्निम्। मन्थन्ति। वेधसः। यम्। अङ्कुऽयन्तम्। आ। अनयन्। अमूरम्। श्याव्याभ्यः ॥१७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 15; मन्त्र » 17
    अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्युतं कस्मान्निस्सारयेयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! वेधसः श्याव्याभ्यो यमङ्कूयन्तमिममु त्यमग्निमथर्ववदमूरं मन्थन्ति कार्य्यसिद्धिमाऽऽनयंस्तं यूयमपि मथित्वा कार्य्याणि साध्नुत ॥१७॥

    पदार्थः

    (इमम्) प्रत्यक्षम् (उ) (त्यम्) परोक्षम् (अथर्ववत्) यथाऽथर्ववेदे मन्थनं विहितम् (अग्निम्) विद्युतम् (मन्थन्ति) (वेधसः) मेधाविनो विपश्चितः (यम्) (अङ्कूयन्तम्) यस्मिन्नङ्कूनि प्रसिद्धानि चिह्नानि प्राप्नुवन्ति। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (आ) (अनयन्) नयन्ति (अमूरम्) अमूढम् (श्याव्याभ्यः) श्यावीषु रात्रिषु भवाभ्यः क्रियाभ्यः। श्यावीति रात्रिनाम। (निघं०१.७) ॥१७॥

    भावार्थः

    ये विद्वांसो भूम्यन्तरिक्षवाय्वाकाशसूर्य्यादिभ्यो मथित्वा विद्युतं निःसारयन्ति तेऽनेकानि कार्य्याण्यलङ्कर्तुं शक्नुवन्ति ॥१७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर बिजुली को किससे निकालें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (वेधसः) बुद्धिमान् विद्वान् जन (श्याव्याभ्यः) रात्रियों में हुई क्रियाओं से (यम्) जिस (अङ्कूयन्तम्) प्रसिद्ध चिह्न प्राप्त होते जिसमें (इमम्) इस (उ) और (त्यम्) जो नहीं प्रत्यक्ष हुआ उस (अग्निम्) बिजुलीरूप अग्नि का (अथर्ववत्) जैसा अथर्ववेद में मन्थन कहा है, वैसे (अमूरम्) मूढ़ से भिन्न का (मन्थन्ति) मन्थन करते और कार्य्य की सिद्धि को (आ, अनयन्) अच्छे प्रकार प्राप्त करते हैं, उसका आप लोग भी मन्थन करके कार्य्यों को सिद्ध करिये ॥१७॥

    भावार्थ

    जो विद्वान् जन भूमि, अन्तरिक्ष, वायु, आकाश और सूर्य्य आदि से मन्थन करके बिजुली को निकालते हैं, वे अनेक कार्य्यों के सिद्ध करने को समर्थ होते हैं ॥१७॥

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    विषय

    संघर्ष द्वारा मथ कर उत्पादित विद्युत् या अग्नि के तुल्य परस्पर विवाद- संघर्ष द्वारा विद्वान् नायक की उत्पत्ति ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार ( वेधसः अथर्ववद् अग्निं मन्थन्ति ) विद्वान्, बुद्धिमान् पुरुष ‘अथर्व’ वेद में लिखे प्रमाणे वा अहिंसक, ईश्वरोपासक विद्वान् के समान ( अग्निं मन्थन्ति ) आग या विद्युत् को मथकर, रगड़कर पैदा करते हैं और ( श्याव्याभ्यः आ नयन ) रात्रि के अन्धकारों को दूर करने के लिये प्रकाशक चिह्नों के समान सब पदार्थ को दिखाने वाले दीपक रूप अग्नि को लाते हैं उसी प्रकार ( इमम् उ त्यम् ) उस (अथर्ववत् ) अथर्ववेद में जैसा प्रधान पुरुष को चुनाव करने का प्रकार बतलाया है उसी प्रकार वा अहिंसक, सर्वपालक, प्रजापति के तुल्य ( अग्निं ) अग्रणी, प्रधान पुरुष को ( मन्थन्ति) समस्त प्रजावर्ग में से दही में से मक्खन के समान, खूब गुण दोष विवेचन और वादानुवाद के बाद मथ कर सारवत् प्राप्त करते हैं और ( यम् ) जिस (अमूरं ) मोहरहित, निष्पक्षपात, अहिंसक और सदोत्साही को ( अंकृयन्तं ) चिह्न वा अपने द्योतक आदर्श ध्वजा के तुल्य श्रेष्ठ पुरुष को ( श्याव्याभ्यः ) अज्ञान युक्त प्रजाओं, सम्पन्न समृद्ध सेनाओं के हितार्थ ( आनयन् ) प्राप्त करें और उसे उत्तम पद प्राप्त करावें । (२) अध्यात्म में तपस्वीजन इस देह को अरणि करके ध्यान योग के अभ्यास से आत्मा रूप अग्नि को, दधि से घृतवत् प्राप्त करते हैं । वह अज्ञान की घोर रात्रियों में प्रकाश करता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भरद्वाजो बार्हस्पत्यो वीतहव्यो वा ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः–१, २, ५ निचृज्जगती । ३ निचृदतिजगती । ७ जगती । ८ विराङ्जगती । ४, १४ भुरिक् त्रिष्टुप् । ९, १०, ११, १६, १९ त्रिष्टुप् । १३ विराट् त्रिष्टुप् । ६ निचृदतिशक्करी । १२ पंक्ति: । १५ ब्राह्मी बृहती । १७ विराडनुष्टुप् । १८ स्वराडनुष्टुप् ।। अष्टादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    अग्निमन्थन

    पदार्थ

    [१] (इमम्) = इस (उ) = निश्चय से (त्यम्) = उस प्रसिद्ध अग्निम् अग्नि को, अग्रेणी प्रभु को वेधसः = यज्ञादि कर्मों को करनेवाले बुद्धिमान् पुरुष अथर्ववत् = [अ+थर्व] न डाँवाडोल होनेवाले स्थित प्रज्ञ पुरुष की तरह मन्थन्ति- विचार द्वारा जानने का प्रयत्न करते हैं। 'अथ अर्वाङ्' जैसे अन्दर निरीक्षण करनेवाला पुरुष प्रभु का चिन्तन करता है, इसी प्रकार हम उस प्रभु का विचार करनेवाले बनें। [२] उस प्रभु का चिन्तन करें, यम्-जिस अमूरम् मूढ़ता से शून्य सर्वज्ञ अंकूयन्तम् = स्वाभाविक गतिवाले प्रभु को श्याव्याभ्यः- अन्धकारमयी रात्रियों के लिए, इन अज्ञानान्धकार की रात्रियों को दूर करने के लिये, ['मशकार्थो धूम:' =मशक निवृत्ति के लिये] आनयत् अपने हृदयों में प्राप्त कराते हैं। प्रभु का आभास होते ही सब अज्ञानान्धकार लुप्त होता जाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम यज्ञादि कर्मों में प्रवृत्त वेधा बनकर तथा स्थित प्रज्ञ बनकर प्रभु का चिन्तन करें, यह प्रभु-चिन्तन सब अज्ञानान्धकारों को विनष्ट करता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे विद्वान भूमी, अन्तरिक्ष, वायू, आकाश व सूर्य इत्यादींद्वारे मंथन करून विद्युत उत्पन्न करतात ते अनेक प्रकारचे कार्य पूर्ण करू शकतात. ॥ १७ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    This actual as well as potential vibrant energy of fire and electricity, scholars of nature produce by rotative friction as described in the Atharva science of Veda, the energy which travels in waves and is far reaching and deep penetrative for darkness and things hidden in darkness.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    From what substances or places should (power/energy Ed.) electricity be derived (hairessed. Ed.) is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! you should also produce electricity by the rubbing process and accomplish many purposes by it as the wise scientists produce it by the process of intelligent rubbing (combustion, Ed) as denoted in the Atharva Veda. This Agni (electricity) has many marks (forms. Ed.) for its manifestation when especially generated or manifested by the processes carried out at nights (any time Ed.) by wise men (technical men or energy scientists. Ed.).

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those highly learned scientists who can generate electricity by particular methods of rubbing from the earth, firmament sky water, (like hydro-electricity. Ed.) and sun etc, can accomplish many works.

    Translator's Notes

    अकि-लक्षणे (भ्वा० ) अङ्कलक्षणे इति चुरादौ। = This mantra is very remarkable for throwing hints about some sources of electricity.

    Foot Notes

    (अग्निम् ) विद्युतम् । = Electricity. (अङ्कुयन्तम् ) यस्मिन्नकूनि प्रसिद्धानि चिह्नानि प्राप्नुवन्ति। अत्र संहितायाम् इति दीर्घः। = Famous, (श्यावाभ्य:) श्यावीषु रात्रिषु भवाभ्यः क्रियाभ्यः (NG 7, 17)। = In the night. श्यावीति रात्रि नाम (NG 1, 7).

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