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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 51 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 51/ मन्त्र 11
    ऋषिः - ऋजिश्वाः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ते न॒ इन्द्रः॑ पृथि॒वी क्षाम॑ वर्धन्पू॒षा भगो॒ अदि॑तिः॒ पञ्च॒ जनाः॑। सु॒शर्मा॑णः॒ स्वव॑सः सुनी॒था भव॑न्तु नः सुत्रा॒त्रासः॑ सुगो॒पाः ॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । नः॒ । इन्द्रः॑ । पृ॒थि॒वी । क्षाम॑ । व॒र्ध॒न् । पू॒षा । भगः॑ । अदि॑तिः । पञ्च॑ । जनाः॑ । सु॒ऽशर्मा॑णः । सु॒ऽअव॑सः । सु॒ऽनी॒थाः । भव॑न्तु । नः॒ । सु॒ऽत्रा॒त्रासः॑ । सु॒ऽगो॒पाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते न इन्द्रः पृथिवी क्षाम वर्धन्पूषा भगो अदितिः पञ्च जनाः। सुशर्माणः स्ववसः सुनीथा भवन्तु नः सुत्रात्रासः सुगोपाः ॥११॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते। नः। इन्द्रः। पृथिवी। क्षाम। वर्धन्। पूषा। भगः। अदितिः। पञ्च। जनाः। सुऽशर्माणः। सुऽअवसः। सुऽनीथाः। भवन्तु। नः। सुऽत्रात्रासः। सुऽगोपाः ॥११॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 51; मन्त्र » 11
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः किंवत् के माननीयाः सन्तीत्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यतस्त इन्द्रः पृथिवी क्षाम पूषा भगोऽदितिः सुशर्माणः स्ववसः सुनीथाः पञ्च जनाः सन्ति ततो नो वर्धन्नः सुगोपाः सुत्रात्रासो भवन्तु ॥११॥

    पदार्थः

    (ते) (नः) अस्मान् (इन्द्रः) विद्युत् (पृथिवी) अन्तरिक्षम् (क्षाम) भूमिः (वर्धन्) वर्धयन्तु (पूषा) वायुः (भगः) भगवान् (अदितिः) जननी (पञ्च, जनाः) पञ्च प्राणा इवोत्तममनुष्याः। पञ्चजना इति मनुष्यनाम। (निघं०२.३) (सुशर्माणः) प्रशंसितगृहाः (स्ववसः) शोभनमवो येषान्ते (सुनीथाः) शोभनो नीथो न्यायो येषान्ते (भवन्तु) (नः) अस्माकम् (सुत्रात्रासः) सुष्ठुत्रातारः (सुगोपाः) सुष्ठु गवां धेनूनां पृथिव्यादीनां वा रक्षकाः ॥११॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यतो विद्वांसो विद्युद्भूम्यन्तरिक्षप्राणैश्वर्य्यमातृवत् सर्वेषां वर्धकाः पालकाः सन्ति तस्मादेव पूज्या भवन्ति ॥११॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर किसके तुल्य कौन मानने योग्य हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जिससे (ते) वे (इन्द्रः) बिजुली (पृथिवी) अन्तरिक्ष (क्षाम) भूमि (पूषा) वायु (भगः) ऐश्वर्यवान् जन और (अदितिः) जन्म देनेवाली माता के समान (सुशर्माणः) प्रशंसित घरोंवाले (स्ववसः) जिन की सुन्दर रक्षा और (सुनीथाः) न्याय विद्यमान वे (पञ्च, जनाः) पाँच प्राणों के समान उत्तम मनुष्य हैं, उससे (नः) हमको (वर्धन्) बढ़ावें और (नः) हमारे (सुगोपाः) सुन्दर गौ वा पृथिव्यादिकों के रक्षा करनेवाले तथा (सुत्रात्रासः) उत्तमता से पालना करनेवाले (भवन्तु) हों ॥११॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जिससे विद्वान् जन बिजुली, भूमि, अन्तरिक्ष, प्राण, ऐश्वर्य और माता के तुल्य सब के बढ़ाने पालनेवाले हैं, इसी से पूज्य होते हैं ॥११॥

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    विषय

    उत्तम रक्षक ।

    भावार्थ

    ( इन्द्रः ) सूर्यवत् तेजस्वी ऐश्वर्यवान्, ( पृथिवी ) भूमि के समान सर्वाधार, (क्षाम ) भूमि के समान ही क्षमावान्, ( पूषा ) सर्वपोषक ( भगः ) ऐश्वर्यवान्, सर्व कल्याणकारी, (अदितिः ) माता, पिता वा पुत्र अथवा अदीन शक्ति, ( पञ्च जनाः ) पांचों जन, ( सु-शम्र्माण: ) उत्तम गृह वा उत्तम सुख, शरण देने वाले, ( सु-अवसः ) उत्तम रक्षा करने वाले ( सु-नीथाः ) उत्तम वाणी बोलने और उत्तम मार्ग से स्वयं जाने और अन्यों को ले जाने वाले ( भवन्तु ) हों । और वे (नः) हमारे ( सु-त्रात्रासः ) उत्तम रीति से रक्षा करने वाले और ( सु-गोपाः ) उत्तम रक्षक और भूमि पशुओं और इन्द्रियों के उत्तम भूमिपति पशुपाल, जितेन्द्रिय ( भवन्तु ) हों ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋजिश्वा ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः – १, २, ३, ५, ७, १०, ११, १२ निचृत्त्रिष्टुप् । ८ त्रिष्टुप् । ४, ६, ९ स्वराट् पंक्ति: । १३, १४, १५ निचृदुष्णिक् । १६ निचृदनुष्टुप् ।। षोडशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    सुत्रात्रासः - सुगोपः

    पदार्थ

    [१] (ते) = वे सब देव (नः) = हमारे (क्षाम) = निवास भूमिभूत इस शरीर को (वर्धन्) = बढ़ानेवाले हों । (इन्द्रः) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाला प्रभु, (पृथिवी) = यह मातृतुल्य भूमि, (पूषा) = पोषण को करनेवाला सूर्य, (भगः) = ऐश्वर्य की देवता, (अदितिः) = सब दिव्यगुणों को जन्म देनेवाला स्वास्थ्य [अ'दिति'= खण्डन] तथा (पञ्चजना:) = समाज के अवयभूत पाँचों प्राणों का विकास करनेवाले मनुष्य हमारे इस निवास स्थानभूत शरीर का वर्धन करें। [२] (सुशर्माण:) = उत्तम सुख को देनेवाले, (स्ववसः) = उत्तम अन्नोंवाले, (सुनीथा:) = उत्तम मार्गों पर ले चलनेवाले देव (नः) = हमारे लिये (सुत्रात्रास:) = सम्यक् तथा शत्रुओं के आक्रमण से हमें बचानेवाले तथा (सुगोपा:) = रोग-कृमि शत्रुओं की उत्पत्ति के निरोध से हमारा गोपन करनेवाले (भवन्तु) = हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सब देवों व प्रभु की कृपा से हमारा यह निवास स्थानभूत शरीर रोगों व वासनाओं के आक्रमण से आक्रान्त न हो ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्वान लोक विद्युत, भूमी, अंतरिक्ष, प्राण, ऐश्वर्य, माता यांच्याप्रमाणे सर्वांना वाढविणारे असतात ते पूजनीय असतात. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May those divine powers of nature and humanity, cosmic energy, the firmament, the earth, the sustainer, glorious God, mother nature, all people dear as five pranic energies, all happy home dwellers nobly protected and well guided, be our saviours and protectors.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Who are worthy of respect and how-is further told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! may electricity, firmaments, earth. air, God, mother, all good men, who are like five Pranas, good householders, good protectors, men of good policy, good guards and good preservers of the cattle and the land, protect us well.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The enlightened persons are worthy of veneration for, they are augmenters and nourishers of all like electricity, earth, firmament, Pranas, mothers and wealth.

    Foot Notes

    (इन्द्रः) विद्युत् । यदशनिरिन्द्र स्तेने (क्त्रैषीतकी बा 6, 9)। = Electricity. (पृथिवी) अन्तरिक्षम् । पृथिवोत्यन्तरिक्षनाम (NG 1, 3)। = Firmament. (पूषा) वायुः । अयं वे पूषायोऽयं (वातः ) पदते । एषहीदं सर्वं पुष्पति (S-B. 14, 1, 2, 9) । = Air. (अदिति:) जननी । अदितिरइमदीना देवमाता (NKT 4, 4, 22 ) अदितिर्माता सपिता सपुत्रः इति (ऋग्वेद 1, 89, 10)।= Mother. (पंचजनाः) पंच प्राणा इवोत्तममनुष्याः । पंचजना इति मनुष्यनाम (NG 2, 3)। = Five Pranas like firmament, (earth), air, God, mother, all good men.

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