ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 51/ मन्त्र 9
ऋ॒तस्य॑ वो र॒थ्यः॑ पू॒तद॑क्षानृ॒तस्य॑ पस्त्य॒सदो॒ अद॑ब्धान्। ताँ आ नमो॑भिरुरु॒चक्ष॑सो॒ नॄन्विश्वा॑न्व॒ आ न॑मे म॒हो य॑जत्राः ॥९॥
स्वर सहित पद पाठऋ॒तस्य॑ । वः॒ । र॒थ्यः॑ । पू॒तऽद॑क्षान् । ऋ॒तस्य॑ । प॒स्त्य॒ऽसदः॑ । अद॑ब्धान् । तान् । आ । नमः॑ऽभिः । उ॒रु॒ऽचक्ष॑सः । नॄन् । विश्वा॑न् । वः॒ । आ । न॒मे॒ । म॒हः । य॒ज॒त्राः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋतस्य वो रथ्यः पूतदक्षानृतस्य पस्त्यसदो अदब्धान्। ताँ आ नमोभिरुरुचक्षसो नॄन्विश्वान्व आ नमे महो यजत्राः ॥९॥
स्वर रहित पद पाठऋतस्य। वः। रथ्यः। पूतऽदक्षान्। ऋतस्य। पस्त्यऽसदः। अदब्धान्। तान्। आ। नमःऽभिः। उरुऽचक्षसः। नॄन्। विश्वान्। वः। आ। नमे। महः। यजत्राः ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 51; मन्त्र » 9
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
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अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुन सर्वैः के नमस्कणीयाः सन्तीत्याह ॥
अन्वयः
हे यजत्रा ! रथ्योऽहमृतस्य पूतदक्षानृतस्य पस्त्यसदोऽदब्धानुरुचक्षसो विश्वान् महो नॄन् व आ नमे येऽस्मान् सत्यं बोधयन्ति तान् वो नमोभिर्वयं सततमा सत्कुर्याम ॥९॥
पदार्थः
(ऋतस्य) सत्यस्य (वः) युष्मान् (रथ्यः) रथेषु साधुः (पूतदक्षान्) पवित्रबलान् (ऋतस्य) यथार्थस्य धर्म्यस्य व्यवहारस्य (पस्त्यसदः) ये पस्त्येषु गृहेषु सीदन्ति तान् (अदब्धान्) अहिंसितानहिंसकान् वा (तान्) (आ) (नमोभिः) बहुभिस्सत्कारैः (उरुचक्षसः) बहुदर्शनान् (नॄन्) उत्तमान् विदुषः (विश्वान्) समग्रान् (वः) युष्मान् (आ) (नमे) समन्तान्नमामि (महः) महतो महाशयान् (यजत्रा) सद्व्यवहारं सङ्गच्छमानाः ॥९॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! यूयं सर्वोत्कृष्टविद्यान् धर्मिष्ठान् परोपकारिणो जनानेव सदा नमतैभ्यो विनयमधिगच्छत ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर सब को कौन नमस्कार करने योग्य हैं, इस विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (यजत्राः) अच्छे व्यवहार का सङ्ग करते हुए सज्जनो ! (रथ्यः) रथों में उत्तम व्यवहार वर्त्तनेवाला मैं (ऋतस्य) सत्य के (पूतदक्षान्) पवित्र बलों वा (ऋतस्य) यथार्थ धर्मयुक्त व्यवहार के (पस्त्यसदः) जो घरों में स्थिर होते उन (अदब्धान्) अविनष्ट कार्य्यों वा नष्ट न करनेवाले पदार्थों वा (उरुचक्षसः) बहुत दर्शनों वा (विश्वान्) समग्र (महः) महाशय (नॄन्) उत्तम विद्वान् (वः) आप लोगों को (आ, नमे) अच्छे प्रकार नमस्कार करता हूँ, जो हम लोगों को सत्य बोध कराते हैं (तान्) उन (वः) आप लोगों का (नमोभिः) बहुत सत्कारों से हम लोग निरन्तर (आ) अच्छे प्रकार सत्कार करें ॥९॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! तुम सब से उत्कृष्ट विद्यावाले, धर्मिष्ठ, परोपकारी जनों ही को सदा नमो, तथा इन से विनय (नम्रता) को प्राप्त होओ ॥९॥
विषय
वीर बलवानों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( यजत्राः ) न्याय, ज्ञान, और ऐश्वर्य को देने वालो ! हे सत्संग और पूजा के योग्य पुरुषो ! ( रथ्यः ) रथ को उत्तम मार्ग में ले जाने में उत्तम सारथि के समान गृहस्थ वा राष्ट्र का उत्तम नेता मैं ( ऋतस्य ) सत्य व्यवहार ज्ञान और न्याय के द्वारा ( दूतदक्षान् ) पवित्र कर्म करने वाले और ( ऋतस्य ) न्याय के ग्रहों में विराजने वाले ( अदब्धान्) अधर्म से लोभ, अन्यायाचरण आदि से अपीड़ित, ( उरु-चक्षसः ) बड़े दूरदर्शी ( विश्वान् वः नॄन् ) समस्त उन आप (महः) बड़े पूज्य लोगों को (नमोभिः) उत्तम विनय युक्त व्यवहारों से (आ नमे) नमता और नमाता हूं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋजिश्वा ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः – १, २, ३, ५, ७, १०, ११, १२ निचृत्त्रिष्टुप् । ८ त्रिष्टुप् । ४, ६, ९ स्वराट् पंक्ति: । १३, १४, १५ निचृदुष्णिक् । १६ निचृदनुष्टुप् ।। षोडशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
ऋतस्थ रथ्यः-ऋतस्य पस्त्यसदः [यज्ञशील]
पदार्थ
[१] हे देवो! (ऋतस्य) = यज्ञों के (रथ्यः) = प्रणेता (वः) = आपको (नमोभिः) = नमस्कारों के द्वारा (आनमे) = प्रणाम करता हूँ, नमस्कारों के द्वारा आपका पूजन करता हूँ। उन आपका पूजन करता हूँ जो आप पूतदक्षान् पवित्र बलवाले हैं। (ऋतस्य पस्त्यसदः) = यज्ञ के गृहों में निवास करनेवाले हैं, सतत यज्ञशील हैं और (अदब्धान्) = वासनाओं से हिंसित होनेवाले नहीं हैं। [२] (तान्) उन आपको मैं (आ) = [नमे] नमस्कृत करता हूँ जो (उरुचक्षसः) = विशाल दृष्टिकोणवाले हैं, (नॄन्) = हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले हैं । हे (महः) = महान् (यजत्राः) = पूजनीय देवो! (वः) = आप (विश्वान्) = सबको मैं पूजित करता हूँ । इन देवों का आदर करते हुए हम भी अपने जीवनों को इसी प्रकार का बनाते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम उन देवों का आदर करते हैं जो यज्ञों के प्रणेता हैं, पवित्र बलवाले हैं, वासनाओं से हिंसित नहीं होते। जो देव विशाल दृष्टिकोणवाले, हमें उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले व महनीय-पूजनीय हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! तुम्ही सर्वोत्कृष्ट विद्यावान, धार्मिक, परोपकारी लोकांनाच सदैव नमस्कार करून त्यांच्याकडून विनय शिका. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O great divinities of nature and nobilities of humanity, I, moving forward by the chariot of law and reverence, bow with homage and surrender to you all, powers strengthened and sanctified by the law of eternal truth, invincible presences in human homes, who are vastly watchful guardians of all the people and their actions in the world.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Who are to be bowed down by all-is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O good persons ! I, who am united with good dealings and am possessor of good chariots, bow down before those enlightened persons endowed with pure energy, always dwelling in the exact righteous dealing, inviolable and non-violent, whose sight is source of great joy and who are generous. We honor those with salutations, who teach us truth.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men! always bow down before those righteous and benevolent persons, who are endowed with the most exalted knowledge and learn humility from them.
Foot Notes
(पस्त्यसद:) ये पस्त्येषु गृहेषु सीदन्ति तान् । पस्त्यम् इति गृहनाम (NG 3, 4 ) । = House holders. (अदन्व्धान्) अहिसितानहिंसकान् वा। = Inviolable or non-violent. (यजत्राः ) सद्व्यवहारं सङ्गच्छमानाः । यज-देवपूजा सङ्गतिकरण दानेषु अत्र सङ्गतिकरणार्थः । दश्नोति वधकर्मा (NG 2, 19 ) । = United with good dealing.
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