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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 51 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 51/ मन्त्र 15
    ऋषिः - ऋजिश्वाः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    यू॒यं हि ष्ठा सु॑दानव॒ इन्द्र॑ज्येष्ठा अ॒भिद्य॑वः। कर्ता॑ नो॒ अध्व॒न्ना सु॒गं गो॒पा अ॒मा ॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यू॒यम् । हि । स्थ । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ । इन्द्र॑ऽज्येष्ठाः । अ॒भिऽद्य॑वः । कर्ता॑ । नः॒ । अध्व॑न् । आ । सु॒ऽगम् । गो॒पाः । अ॒मा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यूयं हि ष्ठा सुदानव इन्द्रज्येष्ठा अभिद्यवः। कर्ता नो अध्वन्ना सुगं गोपा अमा ॥१५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यूयम्। हि। स्थ। सुऽदानवः। इन्द्रऽज्येष्ठाः। अभिऽद्यवः। कर्ता। नः। अध्वन्। आ। सुऽगम्। गोपाः। अमा ॥१५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 51; मन्त्र » 15
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    केऽत्राऽऽनन्ददाः सन्तीत्याह ॥

    अन्वयः

    हे सुदानवो विद्वांस इन्द्रज्येष्ठा इवाऽभिद्यवो गोपा अध्वन्नः सुगममाऽऽकर्त्ता तत्र हि यूयं स्था ॥१५॥

    पदार्थः

    (यूयम्) (हि) (स्था) तिष्ठत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (सुदानवः) उत्तमगुणदानाः (इन्द्रज्येष्ठाः) सूर्य्यो ज्येष्ठो महान् येषां लोकानां तद्वद्वर्त्तमानाः (अभिद्यवः) आभ्यन्तरे कामयमानाः प्रकाशवन्तः (कर्त्ता) कुरुत। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नः) अस्मान् (अध्वन्) अध्वनि (आ) (सुगम्) सुष्ठु गच्छेयुर्यस्मिंस्तत् (गोपाः) रक्षकाः (अमा) गृहम्। अमेति गृहनाम (निघं०३.४) ॥१५॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या दुर्गमान् मार्गान् सुगमान् कुर्वन्ति उत्तमानि गृहाणि निर्माय स्वयमन्याँश्च तत्र निवासयन्ति, त एव जगति सुखकरा भवन्ति ॥१५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    कौन इस संसार में आनन्द के देनेवाले हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (सुदानवः) उत्तम गुणों के देनेवाले विद्वानों ! (इन्द्रज्येष्ठाः) सूर्यलोक महान् ज्येष्ठ जिन लोकों का उनके समान वर्त्तमान (अभिद्यवः) पदार्थज्ञान के भीतर प्रकाशमान (गोपाः) रक्षा करनेवाले (अध्वन्) मार्ग में (नः) हम लोगों को तथा (सुगम्) सुन्दरता से जिसमें जाते (अमा) ऐसे घर को (आ, कर्त्ता) प्रकट करो उस (हि) ही घर में (यूयम्) तुम (स्था) स्थित होओ ॥१५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य दुर्गम मार्गों को सुगम करते हैं और उत्तम घरों को बनाकर आप तथा औरों को निवास करते कराते हैं, वे ही जगत् में सुख करनेवाले होते हैं ॥१५॥

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    विषय

    राजाधीन वीरों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( अग्ने ) ज्ञानवन् ! आप त्यं ) उस ( रिपुम् ) पापवान्, शत्रु, ( स्तेनम् ) चोर, ( दुराध्यम् ) दुःख से वश में आने वाले ( वृजिनं ) मार्गवत् (दविष्ठम् ) दूर से दूर को भी, पैर रखकर जाने योग्य वा वर्जनीय शत्रु को (सुगं कृधि ) सुगम कर । हे ( सत्पते ) सज्जनों के प्रतिपालक ! तू ( अस्य ) इस प्रजाजन से उसे (अप कृधि ) दूर कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋजिश्वा ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः – १, २, ३, ५, ७, १०, ११, १२ निचृत्त्रिष्टुप् । ८ त्रिष्टुप् । ४, ६, ९ स्वराट् पंक्ति: । १३, १४, १५ निचृदुष्णिक् । १६ निचृदनुष्टुप् ।। षोडशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    अन्द्रज्येष्ठा अभिद्यवः

    पदार्थ

    [१] हे देववृत्ति के पुरुषो! (यूयम्) = आप (हि) = निश्चय से (सुदानवः) = अच्छी प्रकार वासनाओं का लवन [दाप् लवने] करनेवाले (स्थ) = हो । (इन्द्रज्येष्ठाः) = परमैश्वर्यशाली प्रभु ही आपका ज्येष्ठ है, उसी की आप उपासना करते हैं। (अभिद्यवः) = आप अभिगत दीप्तिवाले हो, ज्ञानदीप्ति को प्राप्त करनेवाले हो। [२] आप (अमा) = हमारे साथ होते हुए (अध्वन्) = इस जीवनमार्ग में (नः गोपा:) = हमारे रक्षक होते हो और हमारे लिये (सुगं कर्ता) = शोभनतया गन्तव्य मार्ग को करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - देव पुरुष प्रभु को ज्येष्ठ माननेवाले व दीप्त जीवनवाले होते हैं। हमारे लिये ये जीवनमार्ग में रक्षक हों, हमें उत्तम मार्ग से ले चलें ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे दुर्गम मार्ग सुगम करतात व उत्तम घरे बनवून स्वतःचा व इतरांचा निवास करतात, करवितात तीच जगाला सुखी करणारी असतात. ॥ १५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Vishvedevas, bounties of nature divine and leading lights of humanity, stay you all generous as ever, shining as the sun on high above all. Make our march of progress simple and manageable, and protect our hearth and home.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Who are in this world givers of bliss-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O enlightened persons ! you who are good donors of virtues and the best, who are like the sun among the worlds, having good desires within and full of light, good protectors, make our homes easily approachable, because you are our real guides.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those persons, who make unthreadable highways safe for travel and construct good houses for their own living and for others, live comfortably.

    Foot Notes

    (इन्द्रज्येष्ठाः) सूर्य्यो ज्येष्ठो महान्येषां लोकानां तद्वद्वर्त्तमानाः । अथय: स इन्द्रोऽसोस आदित्य ( Stph 8, 5, 3, 2)। = Like the sun in the world. (अमा) गृहम् । अमेति गृहनाम (NG 3, 4)।

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