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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 51 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 51/ मन्त्र 5
    ऋषिः - ऋजिश्वाः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    द्यौ॒३॒॑ष्पितः॒ पृथि॑वि॒ मात॒रध्रु॒गग्ने॑ भ्रातर्वसवो मृ॒ळता॑ नः। विश्व॑ आदित्या अदिते स॒जोषा॑ अ॒स्मभ्यं॒ शर्म॑ बहु॒लं वि य॑न्त ॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्यौः॑ । पितः॑ । पृ॒थि॑वि । मातः॑ । अध्रु॑क् । अग्ने॑ । भ्रा॒तः॒ । व॒स॒वः॒ । मृ॒ळत॑ । नः॒ । विश्वे॑ । आ॒दि॒त्याः॒ । अ॒दि॒ते॒ । स॒ऽजोषाः॑ । अ॒स्मभ्य॑म् । शर्म॑ । ब॒हु॒लम् । वि । य॒न्त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्यौ३ष्पितः पृथिवि मातरध्रुगग्ने भ्रातर्वसवो मृळता नः। विश्व आदित्या अदिते सजोषा अस्मभ्यं शर्म बहुलं वि यन्त ॥५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्यौः। पितः। पृथिवि। मातः। अध्रुक्। अग्ने। भ्रातः। वसवः। मृळत। नः। विश्वे। आदित्याः। अदिते। सऽजोषाः। अस्मभ्यम्। शर्म। बहुलम्। वि। यन्त ॥५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 51; मन्त्र » 5
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 11; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पित्रादिभिः सन्तानेभ्यः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

    अन्वयः

    हे पितर्द्यौरिव ! त्वं हे मातः पृथिवि भूमिरिव ! त्वं हे अग्ने ! अग्निरिव भ्रातस्त्वमध्रुक्सन् वसवो यूयं नो मृळता। हे अदिते ! यथा विश्व आदित्या अस्मभ्यं बहुलं शर्म वि यन्त तथा सजोषास्त्वं बहुसुखं विद्यां च देहि ॥५॥

    पदार्थः

    (द्यौः) सूर्य्य इव (पितः) पालक (पृथिवि) भूमिरिव (मातः) जननि (अध्रुक्) द्रोहरहितः (अग्ने) पावकवत् प्रकाशात्मन् (भ्रातः) बन्धो (वसवः) सुखवासप्रदाः (मृळता) सुखयत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (नः) अस्मान् (विश्वे) सर्वे (आदित्याः) पूर्णकृतब्रह्मचर्यविद्याः (अदिते) अखण्डितज्ञानैश्वर्य्ये (सजोषाः) समानप्रीतिसेविका (अस्मभ्यम्) (शर्म) सुखकारणं गृहम् (बहुलम्) बहुपदार्थान्वितम् (वि) (यन्त) ददति ॥५॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। येषां सूर्य्यवत्सुशिक्षया पालकः पिता पृथिवीवत् क्षमादिविद्यागुणान्विता माताऽग्निवद्भ्राता वर्त्तते स एव सुखी जायते यथा पूर्णविद्यावन्तो जना अयनविद्यां प्रयच्छन्ति तथैव विद्याग्रहीतारोऽध्यापकान्त्सततं सत्कुर्वन्ति ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    पित्रादिकों को सन्तानों के लिये क्या करना योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (पितः) पालनेवाले (द्यौः) सूर्य्य के समान ! तुम हे (मातः) माता (पृथिवि) भूमि के समान ! तुम हे (अग्ने) अग्नि के समान प्रकाशात्मा (भ्रातः) भ्राता ! तुम (अध्रुक्) द्रोहरहित होते हुए (वसवः) सुख वास के देनेवाले तुम सब (नः) हमको (मृळता) सुखी करो हे (अदिते) अखण्डिते ज्ञान और ऐश्वर्य्यवती पण्डिता स्त्री ! जैसे (विश्वे) सब (आदित्याः) पूर्ण की है ब्रह्मचर्य्य से विद्या जिन्होंने वे सज्जन (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (बहुलम्) बहुत पदार्थयुक्त (शर्म) सुख करनेवाले घर को (वि, यन्त) देते हैं, वैसे (सजोषाः) समान एकसी प्रीति को सेवनेवाली तू बहुत सुख और विद्या को दे ॥५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जिनका सूर्य के समान सुन्दर शिक्षा से पालनेवाला पिता, पृथिवी के समान सहनशीलता आदि गुण और विद्यायुक्त माता, अग्नि के समान प्रकाशमान भ्राता वर्त्तमान है, वही सुखी होता है तथा जिसे पूर्ण विद्यावान् जन सन्मार्ग को पूँछते =देते हैं, वैसे ही विद्या पढ़नेवाले पढ़ानेवालों का निरन्तर सत्कार करते हैं ॥५॥

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    विषय

    उत्तम माता पिता, भाई आदि से प्रार्थना ।

    भावार्थ

    हे ( पितः द्यौः ) आकाश वा सूर्य के समान विशाल तेजस्विन् ! पालक पितः ! हे ( मातः पृथिवि ) माता पृथिवी ! हे (अध्रुक् ) द्रोह रहित ( अग्ने ) ज्ञानवन् ! हे (भ्रातः ) भाई ! हे ( वसवः ) बसे हुए प्रजाजनो ! आप लोग ( नः ) हमें ( मृडत ) सदा सुखी करो । हे ( आदित्याः ) आदित्यसम तेजस्वी विद्वान् पुरुषो ! ( अदिते ) हे मातः ! हे पितः ! वा हे अखण्ड शक्ते। आप (विश्वे) सब लोग (सजोषाः) समान रूप से प्रीतियुक्त होकर (अस्मभ्यम् ) हमें बहुत ( शर्म ) सुख ( यन्त ) प्रदान करो । इत्येकादशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋजिश्वा ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्दः – १, २, ३, ५, ७, १०, ११, १२ निचृत्त्रिष्टुप् । ८ त्रिष्टुप् । ४, ६, ९ स्वराट् पंक्ति: । १३, १४, १५ निचृदुष्णिक् । १६ निचृदनुष्टुप् ।। षोडशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    पिता-माता- भ्राता

    पदार्थ

    [१] हे (पितः द्यौः) = पितृ स्थानापन्न द्युलोक, (अध्रुक्) = किसी प्रकार से द्रोह न करनेवाली (मातः पृथिवि) = मातृ स्थानापन्न पृथिवि, (भ्रातः अग्ने) = भ्रातृ स्थानीय अग्नि देव! तथा (वसवः) = निवास को उत्तम बनानेवाले वसुओ! आप सब (नः मृडत) = हमारे जीवन को सुखी करें। [२] (विश्वे आदित्याः) = सब अच्छाइयों का आदान करनेवाले दिव्ये भावो! तथा (अदिते) = अदीन (देवमातः) = दिव्यगुणों की जननी स्वास्थ्य देवते! आप सब (सजोषाः) = समानरूप से प्रीतिवाले होते हुए (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (बहुलं शर्म) = अधिक सुख वियन्त प्राप्त कराओ ।

    भावार्थ

    भावार्थ- द्युलोक हमारा पिता हो, पृथिवी माता बने तथा अग्नि भ्राता हो । निवास को उत्तम बनानेवाले सब देव हमें सुखी करें। सब दिव्यभावनाएँ व स्वास्थ्य हमें उत्तम सुखयुक्त करें।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्याचा सूर्याप्रमाणे सुशिक्षित पालक पिता, पृथ्वीप्रमाणे क्षमाशील विद्यायुक्त माता, अग्नीप्रमाणे प्रकाशमान भ्राता असतो तोच सुखी होतो. तसेच ज्याप्रमाणे पूर्ण विद्यावान लोक सन्मार्ग दाखवितात त्याप्रमाणेच विद्याध्ययन करणारे (विद्यार्थी) अध्यापन करणाऱ्यांचा निरंतर सत्कार करतात. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O refulgent sun, O father, O earth, O mother, compassionate, free from hate and anger, O fire, O brother, givers of shelter and protection, give us peace and felicity. O children of mother Infinity, O Mother Nature, all ever our own, loving friends, pray bring us a homely settlement of joy and all round prosperity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should parents and others do for their children-is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O father! you who are like the sun, O mother! you who are like the earth, O brother! you who are pure and purifier like the fire, all of you, who, are bestowers of delight and free from malice; make us happy. O highly learned lady! you who are endowed with the great wealth of knowledge as all enlightened persons, who have well observed Brahmacharya (abstinence) give us good dwelling place, containing many requisite articles, so, you, who, are full of equal love and the spirit of service, give much happiness and knowledge.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    That man alone enjoys happiness, who has a father like the sun—. -fostering with good education, a mother like the earth-endowed with forgiveness and other good virtues, and a brother like the fire-purifier. As men endowed with perfect knowledge lead to the science of true path, so the students also constantly honor their teachers.

    Foot Notes

    (अदिते) अखण्डितज्ञानैश्वय्यै। दो-अवखन्डने (दिवा.)। = Endowed with great wealth in the form of perfect knowledge. (शर्मं) सुखकारकं गृहम् । शर्मेति गृहनाम (NG 3, 4 )। = Dwelling "place giver of happiness.

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