ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 66/ मन्त्र 10
ब॒हव॒: सूर॑चक्षसोऽग्निजि॒ह्वा ऋ॑ता॒वृध॑: । त्रीणि॒ ये ये॒मुर्वि॒दथा॑नि धी॒तिभि॒र्विश्वा॑नि॒ परि॑भूतिभिः ॥
स्वर सहित पद पाठब॒हवः॑ । सूर॑ऽचक्षसः । अ॒ग्नि॒ऽजि॒ह्वाः । ऋ॑ऋ॒त॒ऽवृधः॑ । त्रीणि॑ । ये । ये॒मुः । वि॒दथा॑नि । धी॒तिऽभिः । विश्वा॑नि । परि॑भूतिऽभिः ॥
स्वर रहित मन्त्र
बहव: सूरचक्षसोऽग्निजिह्वा ऋतावृध: । त्रीणि ये येमुर्विदथानि धीतिभिर्विश्वानि परिभूतिभिः ॥
स्वर रहित पद पाठबहवः । सूरऽचक्षसः । अग्निऽजिह्वाः । ऋऋतऽवृधः । त्रीणि । ये । येमुः । विदथानि । धीतिऽभिः । विश्वानि । परिभूतिऽभिः ॥ ७.६६.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 66; मन्त्र » 10
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सूरचक्षसः) सूर्यसदृशप्रकाशमानाः (अग्निजिह्वाः) अग्निसदृशतेजस्विगिरावन्तः (ऋतावृधः) सत्यरूपयज्ञस्य वर्द्धकाः (ये) ये जनाः (परिभूतिभिः, धीतिभिः) सत्कर्मभिः (विदथानि) कर्मस्थानानि वर्द्धयन्ति ते (त्रीणि) कर्मोपासनाज्ञानानि (येमुः) प्राप्नुवन्ति एवं कृत्वा (बहवः) महान्तः (विश्वानि) सम्पूर्णफलानि प्राप्नुवन्तीत्यर्थः ॥१०॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सूरचक्षसः) सूर्य्यसदृश प्रकाशवाले (अग्निजिह्वाः) अग्निसमान वाणीवाले (ऋतावृधः) सत्यरूप यज्ञ के बढ़ानेवाले (ये) जो (परिभूतिभिः, धीतिभिः) शुभ कर्मों द्वारा (विदथानि) कर्मभूमि को बढ़ाते हैं, वे (त्रीणि) कर्म, उपासना तथा ज्ञान को प्राप्त हुए (बहवः) अनेक विद्वान् (विश्वानि) सम्पूर्ण फलों को (येमुः) प्राप्त होते हैं ॥१०॥
भावार्थ
जो विद्वान् पुरुष अपने शुभकर्मों द्वारा कर्मक्षेत्र को विस्तृत करते हैं, वे ही सब प्रकार के फलों को प्राप्त होते और कर्म, उपासना तथा ज्ञान द्वारा मनुष्य जन्म के धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्षरूप फलचतुष्टय को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार के विद्वान् सूर्य्यसमान प्रकाश को लाभ करते हैं और अग्नि के सदृश उनकी वाणी असत्यरूप समिधाओं को जलाकर सदैव सत्यरूपी यज्ञ करती है। अर्थात् सत्कर्मी, अनुष्ठानी तथा विज्ञानी विद्वानों का ही काम है कि वे परस्पर मिलकर कर्मभूमि को विस्तृत करें, या यों कहो कि कर्मयोग के क्षेत्र में कटिबद्ध हों ॥१०॥
विषय
सूर्यवत् तेजस्वी पुरुषों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( ये ) जो ( त्रीणि विदधानि) तीनों प्रकार के ज्ञान, कर्म, यज्ञ और प्राप्तव्य पदार्थों और तीनों प्रकार के ज्ञातव्य वेदों को और ( विश्वानि ) तीनों विश्वों को ( धीतिभिः ) कर्मों, बुद्धियों, वाणियों और अध्ययन, स्मरण आदि द्वारा और ( परिभूतिभिः ) उत्तम सामर्थ्यो से ( येमु: ) अपने वश करते हैं वे ( बहवः ) बहुत से ( सूर-चक्षसः ) सूर्य के समान सब पदार्थों के ज्ञानोपदेष्टा, सर्वप्रकाशक ( अग्निजिह्वाः ) अग्नि के समान ज्ञान प्रकाशक वाणी के बोलने वाले ( ऋत-वृधः ) सत्य ज्ञान के बढ़ाने वाले हों । इति नवमो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १—३, १७—१९ मित्रावरुणौ। ४—१३ आदित्याः। १४—१६ सूर्यो देवता। छन्दः—१, २, ४, ६ निचृद्गायत्री। ३ विराड् गायत्री। ५, ६, ७, १८, १९ आर्षी गायत्री । १७ पादनिचृद् गायत्री । ८ स्वराड् गायत्री । १० निचृद् बृहती । ११ स्वराड् बृहती । १३, १५ आर्षी भुरिग् बृहती । १४ आ आर्षीविराड् बृहती । १६ पुर उष्णिक् ॥
विषय
सत्यज्ञान का उपदेश
पदार्थ
पदार्थ - (ये) = जो (त्रीणि विदथानि) = तीनों प्रकार के ज्ञान, कर्म, यज्ञ और प्राप्तव्य पदार्थों और तीनों प्रकार के ज्ञातव्य वेदों और (विश्वानि) = तीनों विश्वों को (धीतिभिः) = कर्मों, बुद्धियों, वाणियों और अध्ययन आदि द्वारा और (परिभूतिभिः) = उत्तम सामर्थ्यो से (येमुः) = वश करते हैं वे (बहवः) = बहुत से (सूर-चक्षसः) = सूर्य तुल्य सब पदार्थों के ज्ञानोपदेष्टा, (अग्निजिह्वा:) = अग्नि के समान ज्ञानवाणी के वक्ता (ऋतावृधः) = सत्य-ज्ञान के वर्धक हों।
भावार्थ
भावार्थ- उत्तम विद्वानों को योग्य है कि वे वेदों के गहन अध्ययन के द्वारा ज्ञान, कर्म व उपासना की त्रिविद्या को प्राप्त करें तथा अपनी बुद्धि, वाणी और शोध कार्यों के द्वारा तीनों लोकों के रहस्यों को जानकर समस्त पदार्थों के ज्ञान का उपदेश देकर सत्य ज्ञान को बढ़ावें ।
इंग्लिश (1)
Meaning
Many are the leaders and pioneers, with vision bright and pure as light of the sun and speech as flames of fire, who extend the bounds of truth, law and selfless service of life through yajnic creativity and, with their wisdom, will and commanding action, lead and conduct the three basic institutions of research and education, governance and economy, and human culture and values of life through beauty, goodness and truth with gratitude to Divinity for the world.
मराठी (1)
भावार्थ
जे विद्वान पुरुष आपल्या शुभकर्माद्वारे कर्मक्षेत्र विस्तृत करतात तेच सर्व प्रकारचे फल प्राप्त करतात व कर्म, उपासना, ज्ञान याद्वारे मनुष्यजन्माचे धर्म, अर्थ, काम, मोक्षरूपी चतुष्टय फल प्राप्त करतात. त्या विद्वानांना सूर्यप्रकाशाप्रमाणे लाभ होतो व अग्नीप्रमाणे त्यांची वाणी असत्यरूपी समिधांचे ज्वलन करून सदैव सत्यरूपी यज्ञ करते. अर्थात, सत्कर्मी, अनुष्ठानी व विद्वानांचे काम आहे, की त्यांनी परस्पर मिळून कर्मभूमी विस्तारावी किंवा असे म्हणता येईल, की कर्मयोगाच्या क्षेत्रात कटिबद्ध व्हावे. ॥१०॥
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