ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 66/ मन्त्र 12
तद्वो॑ अ॒द्य म॑नामहे सू॒क्तैः सूर॒ उदि॑ते । यदोह॑ते॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा यू॒यमृ॒तस्य॑ रथ्यः ॥
स्वर सहित पद पाठतत् । वः॒ । अ॒द्य । म॒ना॒म॒हे॒ । सु॒ऽउ॒क्तैः । सूरे॑ । उत्ऽइ॑ते । यत् । ओह॑ते । वरु॑णः । मि॒त्रः । अ॒र्य॒मा । यू॒यम् । ऋ॒तस्य॑ । र॒थ्यः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तद्वो अद्य मनामहे सूक्तैः सूर उदिते । यदोहते वरुणो मित्रो अर्यमा यूयमृतस्य रथ्यः ॥
स्वर रहित पद पाठतत् । वः । अद्य । मनामहे । सुऽउक्तैः । सूरे । उत्ऽइते । यत् । ओहते । वरुणः । मित्रः । अर्यमा । यूयम् । ऋतस्य । रथ्यः ॥ ७.६६.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 66; मन्त्र » 12
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 10; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(तत्) ब्रह्मोपदिशति भो विद्वांसः ! भवद्भिरेवं विधेयं यत् वयं (वः) युष्मान् (अद्य) अस्मिन्दिवसे (सूर, उदिते) सूर्योदयसमये (सूक्तैः) सुन्दरवाग्भिः (मनामहे) प्रार्थयामहे। ये विद्वांसः (ओहते) सुमार्गप्रदर्शकास्तेभ्य इयं प्रार्थना कार्य्या (वरुणः) सर्वपूज्यः (मित्रः) सर्वप्रियः (अर्यमा) न्यायकारी (रथ्यः) सन्मार्गभवः, एते सर्वे (यूयं) भवन्तः (ऋतस्य) सन्मार्गस्य प्रवर्तका अतोऽस्मान्सर्वे सन्मार्गं प्रवर्तयन्तु, इति भावः ॥१२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(तत्) वह परमात्मा उपदेश करता है कि हे मनुष्यों ! तुम उन विद्वानों का (अद्य) आज (सूरे, उदिते) सूर्योदयकाल में (सूक्तैः) सुन्दर वाणियों द्वारा (मनामहे) आवाहन करो, (यत्) जो (ओहते) सुमार्ग दिखलानेवाले हैं और उनसे प्रार्थना करो कि (वरुणः) हे सर्वपूज्य (मित्रः) सर्वप्रिय (अर्यमा) न्यायपूर्वक वर्तनेवाले (रथ्यः) सन्मार्ग के नेता लोगों ! (यूयं) आप ही (ऋतस्य) सन्मार्ग में प्रवृत्त करानेवाले हैं ॥१२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में यह उपदेश है कि हे जिज्ञासु जनों ! तुम अपने प्रात:स्मणीय विद्वानों को सूर्योदयसमय सत्कारपूर्वक आह्वान=बुलाओ और उनसे प्रार्थना करो कि आप न्यायादिगुणसम्पन्न होने से हमारे पूज्य हैं। कृपा करके हमें भी सन्मार्ग का उपदेश करें, क्योंकि स्वयं अनुष्ठानी तथा सदाचारी विद्वान् ही अपने सदुपदेशों द्वारा सन्मार्ग को दर्शा सकते हैं। सो आप हमें भी कल्याणकारक उपदेशों द्वारा कृतकृत्य करें ॥ कई एक पोराणिक लोग “आह्वान” के अर्थ किसी असम्भव देवताविशेष को बुलाने के लिए किया करते हैं, वह ठीक नहीं, “आह्वान” के अर्थ विद्यमान विद्वानों के सत्कार के ही हैं ॥१२॥
विषय
उनसे ज्ञानैश्वर्य की याचना ।
भावार्थ
(वरुणः ) वरण करने योग्य, ( मित्र: ) स्नेहयुक्त ( अर्यमा) स्वामिवत् वशी हे विद्वान् जनो ! ( यूयम् ) आप सब लोग ( ऋतस्य ) सत्य ज्ञान के ( रथ्यः ) महारथियों के समान होकर ( यत् ) जिस ज्ञान को ( ओहते ) धारण करते हो हम ( उदिते सूरे) सूर्य उदय होने पर (वः तत् ) आप लोगों के उस ज्ञानैश्वर्य की ( अद्य ) आज ( मनामहे ) याचना करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १—३, १७—१९ मित्रावरुणौ। ४—१३ आदित्याः। १४—१६ सूर्यो देवता। छन्दः—१, २, ४, ६ निचृद्गायत्री। ३ विराड् गायत्री। ५, ६, ७, १८, १९ आर्षी गायत्री । १७ पादनिचृद् गायत्री । ८ स्वराड् गायत्री । १० निचृद् बृहती । ११ स्वराड् बृहती । १३, १५ आर्षी भुरिग् बृहती । १४ आ आर्षीविराड् बृहती । १६ पुर उष्णिक् ॥
विषय
ज्ञान की याचना
पदार्थ
पदार्थ- (वरुणः) = वरणीय, (मित्र:) = स्नेही (अर्यमा) = स्वामिवत् हे विज्ञ जनो! (यूयम्) = आप (ऋतस्य) = सत्य ज्ञान के (रथ्यः) = महारथियों के तुल्य होकर (यत्) = जिस को (ओहते) = धारते हो हम (उदिते सूरे) = सूर्योदय होने पर (वः तत्) = आपके उस ज्ञानैश्वर्य की (अद्य) = आज (मनामहे) = याचना करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- मनुष्य लोग सत्यज्ञान की प्राप्ति के लिए ज्ञानी जनों की शरण में आकर ज्ञानरूपी ऐश्वर्य की याचना किया करें।
इंग्लिश (1)
Meaning
Today at the rise of dawn, with Vedic hymns and meditation, we think and deliberate upon that social order which is desired and which is to be achieved. For that we call upon Varuna, Mitra and Aryama, leaders of justice and order, love and light and the universal laws of rectitude and direction. That we pray for, O lords, since you command the chariot of the laws of truth, action and progress on the right path.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात हा उपदेश आहे, की हे जिज्ञासू लोकांनो! तुम्ही आपल्या प्रात:स्मरणीय विद्वानांना सूर्योदयाच्या वेळी सत्कारपूर्वक आमंत्रण द्या व त्यांना प्रार्थना करा, की तुम्ही न्याय इत्यादी गुणांनी संपन्न असल्यामुळे आमचे पूज्य आहात. कृपया आम्हाला सन्मार्गाचा उपदेश करा. कारण स्वत: अनुष्ठानी व सदाचारी विद्वानच आपल्या सदुपदेशाने सन्मार्ग दाखवू शकतात. त्यामुळे आम्हालाही कल्याणकारी उपदेशाद्वारे कृतकृत्य करा.
टिप्पणी
कित्येक पौराणिक लोक ‘आवाहन’चा अर्थ एखाद्या असंभव देवता विशेषाला बोलविण्यासाठी करतात. ते योग्य नाही. ‘आवाहन’चा अर्थ विद्वानांचा सत्कार हाही आहे. ॥१२॥
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