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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 66 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 66/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - आदित्याः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    यद॒द्य सूर॒ उदि॒तेऽना॑गा मि॒त्रो अ॑र्य॒मा । सु॒वाति॑ सवि॒ता भग॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । अ॒द्य । सूरे॑ । उत्ऽइ॑ते । अना॑गाः । मि॒त्रः । अ॒र्य॒मा । सु॒वाति॑ । स॒वि॒ता । भगः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदद्य सूर उदितेऽनागा मित्रो अर्यमा । सुवाति सविता भग: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । अद्य । सूरे । उत्ऽइते । अनागाः । मित्रः । अर्यमा । सुवाति । सविता । भगः ॥ ७.६६.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 66; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यत्) यद्धनम् (अद्य) अस्मिन्दिवसे (सूरे उदिते) सूर्योदयसमये आगच्छति तत् (अनागाः) निष्पापाय भवतु (मित्रः) सर्वप्रियः (अर्यमा) न्यायकारी (सुवाति) सर्वव्यापकः भवति (सविता) सर्वोत्पादकः (भगः) ऐश्वर्यसम्पन्नः, एवंविधगुणाकरस्य परमात्मनः कृपया न्यायेन द्रव्यप्राप्तिर्भवतीति भावः ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (यत्) जो धन (अद्य) आज (सूरे, उदिते) सूर्य्य के उदय होने पर आता है, वह सब (अनागाः) निष्पाप (मित्रः) सबके प्रिय (अर्यमा) न्यायकारी (सुवाति) सर्वव्यापक (सविता) सर्वोत्पादक (भगः) ऐश्वर्य्यसम्पन्न इत्यादि गुणोंवाले परमेश्वर की कृपा से आता है ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को जो प्रतिदिन धन तथा ऐश्वर्य्य प्राप्त होता है, वह सब परमेश्वर की कृपा से मिलता है, मानो वह सत्कर्मियों को अपने हाथ से बाँटता है और दुष्कर्मी हाथ मलते हुए देखते रहते हैं, इसलिए भग=सर्वऐश्वर्य्यसम्पन्न परमात्मा से सत्कर्मों द्वारा उस ऐश्वर्य्य की प्रार्थना कथन की गई है कि आप कृपा करके हमें भी प्रतिदिन वह ऐश्वर्य्य प्रदान करें ॥ “भग” नाम मुख्यतया परमात्मा का और गौणीवृत्ति से ऐश्वर्य्य का भी नाम “भग” है, इसलिए ऐश्वर्य्यसम्पन्न पुरुषों और आध्यात्मिक ऐश्वर्य्यसम्पन्न ऋषि-मुनियों को भी भगवान् कहा जाता है, अन्य अर्यमादि सब नाम परमात्मा के हैं, जैसा कि पीछे भी “शं नो मित्र: शं वरुण: शन्नो भवत्वर्यमा” इत्यादि मन्त्रों से सिद्ध कर आये हैं और सब स्पष्ट है ॥४॥

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    विषय

    सूर्यवत् तेजस्वी पुरुषों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( उदिते सूरे) सूर्य के समान तेजस्वी पुरुष के उदय होने पर ( यत् ) जो ( अनागाः ) अपराधादि से रहित ( मित्रः ) स्नेहवान् ( अर्यमा ) न्यायकारी, ( सविता ) सबका प्रेरक शासक और ( भगः ) ऐश्वर्यवान् है वह ( अद्य ) आज के समान सदा ही ( सुवाति ) हम पर शासन करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ १—३, १७—१९ मित्रावरुणौ। ४—१३ आदित्याः। १४—१६ सूर्यो देवता। छन्दः—१, २, ४, ६ निचृद्गायत्री। ३ विराड् गायत्री। ५, ६, ७, १८, १९ आर्षी गायत्री । १७ पादनिचृद् गायत्री । ८ स्वराड् गायत्री । १० निचृद् बृहती । ११ स्वराड् बृहती । १३, १५ आर्षी भुरिग् बृहती । १४ आ आर्षीविराड् बृहती । १६ पुर उष्णिक् ॥

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    विषय

    न्यायशील राजा

    पदार्थ

    पदार्थ- (उदिते सूरे) = सूर्यवत् तेजस्वी पुरुष के उदय होने पर (यत्) = जो (अनागा:) = अपराधादि से रहित (मित्रः) = स्नेहवान् (अर्यमा) = न्यायकारी, (सविता) = सर्व प्रेरक, शासक और (भग:) = ऐश्वर्यवान् है वह (अद्य) = आज के समान सदा (सुवाति) = शासन करे ।

    भावार्थ

    भावार्थ- राजा स्वयं निष्कलंक होवे तथा प्रजा को उचित न्याय प्रदान करे। इससे राजा प्रजा का प्रिय भी बनेगा तथा उसका शासन दीर्घकाल तक चलता रहेगा।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Whatever wealth of energy and blessed light of wisdom today at the dawn of sunrise the lord immaculate and sinless Mitra, universal love and friendship, Aryama, guide and judge on the path of rectitude, Savita, inspirer and generator, and Bhaga, omnipotent and glorious, generate and radiate, that we pray may come and bless us.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांना प्रत्येक दिवशी जे धन व ऐश्वर्य प्राप्त होते ते सर्व परमेश्वर कृपेने मिळते. जणू तो सत्कर्म करणाऱ्यांना आपल्या हाताने प्रदान करतो व दुष्कर्म करणारे हात चोळत बघत बसतात. त्यासाठी सर्व ऐश्वर्यसंपन्न परमेश्वराला सत्कर्माद्वारे ऐश्वर्याची प्रार्थना केलेली आहे, की कृपा करून आम्हाला तू प्रत्येक दिवशी ऐश्वर्य प्रदान कर.

    टिप्पणी

    ‘भग’ नाव मुख्यत्वे परमेश्वराचे असून, गौण वृत्तीने ऐश्वर्याचे नाव ही ‘भग’ आहे. त्यासाठी ऐश्वर्यसंपन्न पुरुषांना व आध्यात्मिक ऐश्वर्यसंपन्न ऋषीमुनींनाही भगवान म्हटले जाते. इतर अर्यमा इत्यादी सर्व नावे परमेश्वराची आहेत. जसे पूर्वी ‘शं. नो मित्र: शं वरुण: शन्नो भवत्वर्यमा’ इत्यादी मंत्रांनी सिद्ध केलेले आहे व सर्व स्पष्ट आहे ॥४॥

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