ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 66/ मन्त्र 13
ऋ॒तावा॑न ऋ॒तजा॑ता ऋता॒वृधो॑ घो॒रासो॑ अनृत॒द्विष॑: । तेषां॑ वः सु॒म्ने सु॑च्छ॒र्दिष्ट॑मे नर॒: स्याम॒ ये च॑ सू॒रय॑: ॥
स्वर सहित पद पाठऋ॒तऽवा॑नः । ऋ॒तऽजा॑ताः । ऋ॒त॒ऽवृधः॑ । घो॒रासः॑ । अ॒नृ॒त॒ऽद्विषः॑ । तेषा॑म् । वः॒ । सु॒म्ने । सु॒च्छ॒र्दिःऽत॑मे । न॒रः॒ । स्याम॑ । ये । च॒ । सू॒रयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋतावान ऋतजाता ऋतावृधो घोरासो अनृतद्विष: । तेषां वः सुम्ने सुच्छर्दिष्टमे नर: स्याम ये च सूरय: ॥
स्वर रहित पद पाठऋतऽवानः । ऋतऽजाताः । ऋतऽवृधः । घोरासः । अनृतऽद्विषः । तेषाम् । वः । सुम्ने । सुच्छर्दिःऽतमे । नरः । स्याम । ये । च । सूरयः ॥ ७.६६.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 66; मन्त्र » 13
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 10; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 10; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ प्रागुक्तविदुषां गुणा वर्ण्यन्ते।
पदार्थः
(ऋतावानः) सत्यव्रतरताः (ऋतजाताः) सत्यजन्मानः (ऋतावृधः) सद्यज्ञवर्द्धकाः (घोरासः) रौद्राः (अनृतद्विषः) मिथ्यामतद्वेषिणः (वः) युष्माकं मध्ये ये (सूरयः) विद्वांसः। (नरः) हे जनाः ! भवद्भिरेवंविधा प्रार्थना कार्य्या यत् वयमपि (तेषां) उक्तगुणवतां विदुषां (सुच्छर्दिष्टमे) सुखतमे (सुम्ने) पथि (स्याम) भवेम ॥१३॥
हिन्दी (3)
विषय
अब उपर्युक्त विद्वानों के गुण वर्णन करते हैं।
पदार्थ
(ऋतवानः) सत्यपरायण, (ऋतजाताः) सत्य की शिक्षाप्राप्ति किये हुए, (ऋतावृधः) सत्यरूप यज्ञ की वृद्धि करनेवाले (घोरासः, अनृतद्विषः) और असन्मार्ग के अत्यन्त द्वेषी विद्वानों के (सुच्छर्दिष्टमे) सुखतम (सुम्ने) मार्ग में (वः) तुम लोग चलो (च) और (तेषां) उन विद्वानों से (ये) जो अपने गुणगौरव द्वारा (सूरयः) तेजस्वी हैं (नरः) तुम लोग प्रार्थना करो कि हम भी (स्याम) उक्तगुणसम्पन्न हों ॥१३॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यों ! तुम अनृत से द्वेष करनेवाले तथा सत्य से प्यार करनेवाले सत्पुरुषों का सत्सङ्ग करो और उनसे नम्रतापूर्वक वर्तते हुए प्रार्थना करो कि हे महाराज ! हमें भी सन्मार्ग का उपदेश करो, ताकि हम भी उत्तमगुणसम्पन्न हों ॥१३॥
विषय
उनसे ज्ञानैश्वर्य की याचना ।
भावार्थ
( ये च ) और जो ( सूरयः ) विद्वान् लोग ( ऋत-वानः ) यज्ञ, तेज, सत्य ज्ञान का सेवन करने और अन्यों को देने वाले ( ऋतजाताः ) सत्य ज्ञान में प्रसिद्ध ( ऋत-वृधः ) सत्य को बढ़ाने वाले, (घोरासः) तेजस्वी, (अनृत-द्विषः) असत्य व्यवहार के द्वेषी, सत्य का कभी विरोध न करने वाले हैं हे (नरः) नाथकवत् उत्तम पुरुषो ! ( तेषां वः ) उन आप लोगों के ( सुच्छर्दिस्तमे) उत्तम रक्षा गृह से युक्त ( सुम्ने ) सुखप्रद शरण में सदा ( स्याम ) रहें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ १—३, १७—१९ मित्रावरुणौ। ४—१३ आदित्याः। १४—१६ सूर्यो देवता। छन्दः—१, २, ४, ६ निचृद्गायत्री। ३ विराड् गायत्री। ५, ६, ७, १८, १९ आर्षी गायत्री । १७ पादनिचृद् गायत्री । ८ स्वराड् गायत्री । १० निचृद् बृहती । ११ स्वराड् बृहती । १३, १५ आर्षी भुरिग् बृहती । १४ आ आर्षीविराड् बृहती । १६ पुर उष्णिक् ॥
विषय
विद्वानों की शरण में रहें
पदार्थ
पदार्थ - (ये च) = और जो (सूरयः) = विद्वान् लोग (ऋत-वान:) = सत्य-ज्ञान का सेवन करनेकरानेवाले (ऋतजाता:) = सत्य-ज्ञान में प्रसिद्ध (ऋत-वृधः) = सत्य वर्धक, (घोरास:) = तेजस्वी, (अनृतद्विषः) = असत्य के द्वेषी हैं, हे (नरः) = नायकवत् पुरुषो! (तेषां वः) = उन आपके (सुच्छर्दिस्तमे) = उत्तम रक्षा गृह से युक्त (सुम्ने) = सुखद शरण में सदा (स्याम) = रहें ।
भावार्थ
भावार्थ - नेतृत्त्व करनेवाले पुरुषों तथा प्रशासक वर्ग को सत्य न्याय के उपदेशक सदाचारी विद्वानों की उत्तम शरण में सदैव रहना चाहिए जिससे वे लोग सत्य न्याय के मार्ग से कभी न भटकें।
इंग्लिश (1)
Meaning
O brilliant scholars, rulers and all those who are redoubtable leaders, lovers and seekers of truth by knowledge and action, born in truth and extending the bounds of the values of truth in the social order, terrible in action with no tolerance for untruth and social evil, let us abide in law in your good will and in the felicity of a happy home in peace and security.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो, की हे माणसांनो! तुम्ही असत्याचा द्वेष करणाऱ्या व सत्यावर प्रीती करणाऱ्या पुरुषांचा संग धरा. त्यांच्याशी नम्रतापूर्वक वागून प्रार्थना करा, की हे महाराज! आम्हालाही सन्मार्गाचा उपदेश करा. त्यामुळे आम्हीही उत्तम गुणसंपन्न बनावे. ॥१३॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal