ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 69/ मन्त्र 9
अव॑ स्वराति॒ गर्ग॑रो गो॒धा परि॑ सनिष्वणत् । पिङ्गा॒ परि॑ चनिष्कद॒दिन्द्रा॑य॒ ब्रह्मोद्य॑तम् ॥
स्वर सहित पद पाठअव॑ । स्व॒रा॒ति॒ । गर्ग॑रः । गो॒धा । परि॑ । स॒नि॒स्व॒न॒त् । पिङ्गा॑ । परि॑ । च॒नि॒स्क॒द॒त् । इन्द्रा॑य । ब्रह्म॑ । उत्ऽय॑तम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अव स्वराति गर्गरो गोधा परि सनिष्वणत् । पिङ्गा परि चनिष्कददिन्द्राय ब्रह्मोद्यतम् ॥
स्वर रहित पद पाठअव । स्वराति । गर्गरः । गोधा । परि । सनिस्वनत् । पिङ्गा । परि । चनिस्कदत् । इन्द्राय । ब्रह्म । उत्ऽयतम् ॥ ८.६९.९
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 69; मन्त्र » 9
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
The drum booms aloud, the bow string strikes the arm guard, the string bells jingle, let the hymns rise in honour of Indra.
मराठी (1)
भावार्थ
हे जग एक भयानक युद्ध क्षेत्र आहे. यात आपापल्या अस्तित्वासाठी प्रत्येक जीव प्रतिक्षण युद्ध करत आहे. इतर जीवांपेक्षा मनुष्य समाजात अधिक संग्राम आहे. त्यासाठी यात कोण जीवित राहील व कोण मरेल याचा निश्चय नाही. त्यामुळे प्रथम परमेश्वराचे स्मरण करा. ॥९॥
संस्कृत (1)
विषयः
संसारवैलक्षण्यं प्रदर्शयति ।
पदार्थः
गर्गरः=गर्गरध्वनियुक्तो वाद्यविशेषः । अव+स्वराति= भयावहं शब्दं करोति । गोधा=एतन्नामकं वाद्यम् । परि=परितः । सनिस्वनत्=भृशं स्वनति=शब्दयति । पिङ्गा । परि+चनिष्कदत्=स्वध्वनिना विभीषयति ॥९ ॥
हिन्दी (3)
विषय
वैराग्योत्पादन के लिये संसार की विलक्षणता दिखलाते हैं ।
पदार्थ
(गर्गरः) गर्गरशब्दयुक्त नक्कारा आदि बाजा (अव+स्वराति) भयावह शब्द कर रहा है, (गोधा) ढोल मृदङ्ग आदि (परि+सनिस्वनत्) चारों तरफ बड़े जोर से बज रहे हैं, इसी प्रकार (पिङ्गा) अन्यान्य वाद्य भी (परि+चनिष्कदत्) चारों ओर भय दिखला रहे हैं, अतः हे मनुष्यों ! (इन्द्राय) उस परमात्मा के लिये (ब्रह्म+उद्यतम्) स्तुतिगान का उद्योग हो ॥९ ॥
भावार्थ
यह संसार महायुद्धक्षेत्र है । इसमें प्रतिक्षण अपने-अपने अस्तित्व के लिये सभी जीव युद्ध कर रहे हैं । मनुष्य-समाज में अन्य जीवों की अपेक्षा अधिकसंग्राम है । अतः इसमें कौन बचेगा और कौन मरेगा, इसका निश्चय नहीं, इस हेतु प्रथम परमात्मा का स्मरण करो ॥९ ॥
विषय
विद्वान् का प्रजाजनों को उपदेश।
भावार्थ
( गर्गरः अव स्वराति ) उत्तम उपदेष्टा अधीनों को उपदेश करता है, ( गोधा ) वाणी को धारण करने वाला जन भी ज्ञान को ( परि सनिष्वणत् ) सब ओर उपदेश करे। ( पिङ्गा ) उत्तम मनोहर शब्द बोलने में चतुर कविमण्डली वा वादित्रमण्डली भी ( इन्द्राय ) उस परमेश्वर की ( उद्-यतम् ) उत्तम ( ब्रह्म ) वेद-स्तुति का ( परि चनिष्कत् ) सर्वत्र वर्णन करे। ( २ ) इसी प्रकार राजा का ( गर्गरः ) गड़गड़ शब्दकारी नगारा, मेघवत् गर्जे (गोधा) हाथ पर बंधा चर्म, जहां डोरी बराबर आकर लगती है, वह ‘हस्तघ्न’ भी पृथ्वीपोषक मेघवृष्टिवत् ध्वनि करे और (पिंगा) पीत वर्ण वा झन-झनाती डोरी विद्युत् के समान राजा के लिये ( उद्-यतं ) उत्तम रीति से विजयबद्ध ( ब्रह्म ) बृहत् राष्ट्र-धन की ( परि चनिष्कदत् ) घोषणा करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रियमेध ऋषिः॥ देवताः—१—१०, १३—१८ इन्द्रः। ११ विश्वेदेवाः। ११, १२ वरुणः। छन्दः—१, ३, १८ विराडनुष्टुप्। ७, ९, १२, १३, १५ निचूदनुष्टुप्। ८ पादनिचृदनुष्टुप्। १४ अनुष्टुप्। २ निचृदुष्णिक्। ४, ५ निचृद् गायत्री। ६ गायत्री। ११ पंक्तिः। १६ निचृत् पंक्तिः। १७ बृहती। १८ विराड् बृहती॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
माम् अनुस्मर युध्य च
पदार्थ
[१] (गर्गरः) = युद्ध का नगाड़ा (अवस्वराति) = अतिशयेन भयानक शब्द को कर रहा है। (गोधा) = हस्तघ्न (परिसनिष्वणत्) = चारों ओर आवाज़ को फैला रहे हैं। हस्तघ्नों पर होनेवाले डोरी के प्रहारों से शब्द उठ रहे हैं। (पिङ्गा) = पिंगल वर्णवाली (ज्या परिचनिष्कत्) = धनुष की डोरी चारों ओर गति कर रही है-आक्रमण कर रही है। [२] एवं चारों ओर सारा वातावरण भयंकर युद्ध का है। इस युद्ध में (इन्द्रस्य) = उस शत्रुविद्रावक प्रभु के लिए (ब्रह्म उच्चतम्) = मन्त्रों द्वारा स्तवन उत्थित हुआ है। हमारा यही कर्तव्य है कि प्रभु का स्मरण करें और युद्ध में सन्नद्ध रहें। प्रभुस्मरण ही हमें इस संसार संघर्ष में विजयी बनाएगा।
भावार्थ
भावार्थ-चारों ओर युद्ध का वातावरण उपस्थित है। हम प्रभु का स्मरण करें और युद्ध को करते चलें। प्रभु ही तो हमें विजयी बनाएँगे।
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