ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 109/ मन्त्र 10
ऋषिः - अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - भुरिगार्चीगायत्री
स्वरः - षड्जः
पव॑स्व सोम॒ क्रत्वे॒ दक्षा॒याश्वो॒ न नि॒क्तो वा॒जी धना॑य ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑स्व । सो॒म॒ । क्रत्वे॑ । दक्षा॑य । अश्वः॑ । न । नि॒क्तः । वा॒जी । धना॑य ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवस्व सोम क्रत्वे दक्षायाश्वो न निक्तो वाजी धनाय ॥
स्वर रहित पद पाठपवस्व । सोम । क्रत्वे । दक्षाय । अश्वः । न । निक्तः । वाजी । धनाय ॥ ९.१०९.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 109; मन्त्र » 10
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 20; मन्त्र » 10
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 20; मन्त्र » 10
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (क्रत्वे) विज्ञानाय (दक्षाय) चातुर्याय च (निक्तः) वेगवान् (अश्वः, न) विद्युदिव (वाजी) बलस्वरूपो भवान् (धनाय) धनार्थं (पवस्व) मां पुनातु ॥१०॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे सोमगुणसम्पन्न परमात्मन् ! (क्रत्वे) विज्ञान के लिये (दक्षाय) चातुर्य्यप्राप्ति के लिये (अश्वः, न) विद्युत्समान (निक्तः) वेगवान् (वाजी) बलस्वरूप परमात्मन् (धनाय) धन के लिये (पवस्व) पवित्र करें ॥१०॥
भावार्थ
जिस प्रकार विद्युत् प्रत्येक पदार्थ को देदीप्यमान करता और सब पदार्थों का प्रकाशक तथा उद्दीपक है, इसी प्रकार परमात्मा सबको उद्बोधन करके अपने-अपने कर्मों में प्रवृत करता है और कर्मयोगी पुरुष को सदैव धन का लाभ होता है ॥१०॥
विषय
प्रज्ञान- बल-ऐश्वर्य
पदार्थ
हे (सोम) = वीर्य! तू (क्रत्वे) = प्रज्ञान के लिये व (दक्षाय) = बल के लिये (पवस्व) = प्राप्त हो । तेरे रक्षण से ही प्रज्ञान व बल में वृद्धि होती है । (अश्वः न) = तू इस जीवन संग्राम में विजय प्राप्ति के लिये अश्व के समान है। (निक्तः) = शुद्ध किया हुआ तू वासनाओं से मलिन न किया जाता हुआ (वाजी) = शक्तिशाली होता है, इस जीवन संग्राम में हमें विजयी बनाता है और (धनाय) = सब अन्नमय आदि कोशों के धन के लिये होता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम हमें प्रज्ञान, बल व ऐश्वर्यों को प्राप्त कराता है। जीवन संग्राम में विजयी बनाता है ।
विषय
ऐश्वर्यप्रद प्रभु।
भावार्थ
हे (सोम) सर्वैश्वर्यवन्! सर्वप्रेरक प्रभो ! तू (निक्तः अश्वः न) जुते अश्व के समान, (वाजी) वेगवान्, ज्ञानवान् और बलवान् है। तू (क्रत्वे) ज्ञान, (दक्षाय) बल और (धनाय) धन प्राप्त करने के लिये (पवस्व) हमपर अनुग्रह कर। इति विंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वरा ऋषयः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ७, ८, १०, १३, १४, १५, १७, १८ आर्ची भुरिग्गायत्री। २–६, ९, ११, १२, १९, २२ आर्ची स्वराड् गायत्री। २०, २१ आर्ची गायत्री। १६ पादनिचृद् गायत्री॥ द्वाविंशत्यृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, as victor of life and divine glory, flow, radiate and inspire us like energy itself controlled and consecrated for creative and productive holy work, expert technique and the production and achievement of wealth.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या प्रकारे विद्युत प्रत्येक पदार्थाला देदीप्यमान करतो व सर्व पदार्थांची प्रकाशक व उद्दीपक आहे. त्याचप्रकारे परमात्मा सर्वांना उद्बोधन करून आपापल्या कर्मात प्रवृत्त करतो. कर्मयोगी पुरुषाला सदैव धनाचा लाभ होतो. ॥१०॥
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