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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 109 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 109/ मन्त्र 17
    ऋषिः - अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - भुरिगार्चीगायत्री स्वरः - षड्जः

    स वा॒ज्य॑क्षाः स॒हस्र॑रेता अ॒द्भिर्मृ॑जा॒नो गोभि॑: श्रीणा॒नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । वा॒जी । अ॒क्षा॒रिति॑ । स॒हस्र॑ऽरेताः । अ॒त्ऽभिः । मृ॒जा॒नः । गोऽभिः॑ । श्री॒णा॒नः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स वाज्यक्षाः सहस्ररेता अद्भिर्मृजानो गोभि: श्रीणानः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । वाजी । अक्षारिति । सहस्रऽरेताः । अत्ऽभिः । मृजानः । गोऽभिः । श्रीणानः ॥ ९.१०९.१७

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 109; मन्त्र » 17
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 21; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अद्भिः, मृजानः) कर्मद्वारा साक्षात्कृतः (गोभिः, श्रीणानः) ज्ञानवृत्तिभिः अभ्यासेन परिपक्वः (सहस्ररेताः) अनन्तसामर्थ्यशाली (वाजी) ऐश्वर्य्यशाली (सः) स परमात्मा स्वज्ञानसुधया (अक्षाः) मां सिञ्चति ॥१७॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अद्भिः, मृजानः) कर्मों द्वारा साक्षात्कार करके (गोभिः, श्रीणानः) ज्ञानरूप वृत्तियों के अभ्यास से परिपक्व किया हुआ (सहस्ररेताः) अनन्त सामर्थ्यशाली परमात्मा (वाजी) जो ऐश्वर्य्यशाली है, (सः) वह अपने ज्ञानसुधा से (अक्षाः) हमको सिञ्चन करता है ॥१७॥

    भावार्थ

    जब दृढ़ अभ्यास से परमात्मा का परिपक्व ज्ञान हो जाता है, तब परमात्मज्ञान, जो अमृत के समान है, वह उपासक को आनन्द प्रदान करता है, इसी का नाम यहाँ सिञ्चन करना है ॥१७॥

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    विषय

    अद्भिः मृजानः, गोभिः श्रीणानः

    पदार्थ

    (स:) = वह (वाजी) = शक्ति का देनेवाला सोम (अक्षा:) = शरीर में व्याप्त होता है। और (सहस्ररेता:) = अनन्त शक्ति को प्राप्त कराता है [सहसां रेतांसि येन] । यह सोम (अद्भिः) = कर्मों के द्वारा (मृजान:) = शुद्ध होता है और (गोभिः) = ज्ञान की वाणियों के द्वारा श्रीणानः परिपक्व किया जाता है। कर्मों में लगे रहने से वासनाओं का आक्रमण नहीं होता और सोम इन वासनाओं के द्वारा मलिन नहीं किया जाता । स्वाध्याय के द्वारा इस सोम का ज्ञानाग्नि में परिपाक होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम का शरीर में रक्षण कर्मों में लगाने तथा स्वाध्याय के द्वारा होता है सुरक्षित सोम हमें शक्तिशाली बनाता है।

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    विषय

    उसका साक्षात्।

    भावार्थ

    (सः) वह (वाजी) ज्ञानवान्, बलवान्, (सहस्र-रेताः) सहस्रों और सर्वाधिक बलयुक्त, वीर्यवान्, (अद्भिः) जलों के तुल्य, आप्त जनों से (मृजानः) विवेचित, (गोभिः श्रीणानः) दुग्ध-धाराओं के तुल्य वेदवाणियों से सुसंस्कृत होता हुआ (अक्षाः) व्यापता और प्रकट होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वरा ऋषयः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ७, ८, १०, १३, १४, १५, १७, १८ आर्ची भुरिग्गायत्री। २–६, ९, ११, १२, १९, २२ आर्ची स्वराड् गायत्री। २०, २१ आर्ची गायत्री। १६ पादनिचृद् गायत्री॥ द्वाविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May that victor spirit of Soma divinity of infinite power, realised with meditative Karma and crystallized by perception and awareness, manifest in the heart and bless us.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जेव्हा दृढ अभ्यासाने परमेश्वरासंबंधी ज्ञान परिपक्व होते तेव्हा अमृताप्रमाणे असणारे परमात्मज्ञान उपासकाला आनंद प्रदान करते. त्याचे नाव येथे सिंचन आहे. ॥१७॥

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