यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 11
ऋषिः - बृहदुक्थो वामदेव्य ऋषिः
देवता - अग्निर्देवता
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
124
प्र॒जाप॑ते॒स्तप॑सा वावृधा॒नः स॒द्यो जा॒तो द॑धिषे य॒ज्ञम॑ग्ने।स्वाहा॑कृतेन ह॒विषा॑ पुरोगा या॒हि सा॒ध्या ह॒विर॑दन्तु दे॒वाः॥११॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒जाप॑ते॒रिति॑ प्र॒जाऽप॑तेः। तप॑सा। वा॒वृ॒धा॒नः। व॒वृ॒धा॒नऽइति॑ ववृधा॒नः। स॒द्यः। जा॒तः। द॒धि॒षे॒। य॒ज्ञम्। अ॒ग्ने॒। स्वाहा॑कृते॒नेति॒ स्वाहा॑ऽकृतेन। ह॒विषा॑। पु॒रो॒गा॒ इति॑ पुरःऽगाः। या॒हि। सा॒ध्या। ह॒विः। अ॒द॒न्तु॒। दे॒वाः ॥११ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रजापतेस्तपसा वावृधानः सद्यो जातो दधिषे यज्ञमग्ने । स्वाहाकृतेन हविषा पुरोगा याहि साध्या हविरदन्तु देवाः ॥
स्वर रहित पद पाठ
प्रजापतेरिति प्रजाऽपतेः। तपसा। वावृधानः। ववृधानऽइति ववृधानः। सद्यः। जातः। दधिषे। यज्ञम्। अग्ने। स्वाहाकृतेनेति स्वाहाऽकृतेन। हविषा। पुरोगा इति पुरःऽगाः। याहि। साध्या। हविः। अदन्तु। देवाः॥११॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह॥
अन्वयः
हे अग्ने! त्वं सद्यो जातः प्रजापतेस्तपसा वावृधानः स्वाहाकृतेन हविषा यज्ञं दधिषे, ये पुरोगाः साध्या देवा हविरदन्तु तान् याहि प्राप्नुहि॥११॥
पदार्थः
(प्रजापतेः) प्रजायाः पालकस्य (तपसा) प्रतापेन (वावृधानः) वर्द्धमानः (सद्यः, जातः) शीघ्रं प्रसिद्धः सन् (दधिषे) धरसि (यज्ञम्) (अग्ने) पावकवद्वर्त्तमान विद्वन्! (स्वाहाकृतेन) सुष्ठु संस्कारक्रियया निष्पादितेन (हविषा) दातुमर्हेण (पुरोगाः) अग्रगण्या अग्रगामिनो वा (याहि) प्राप्नुहि (साध्या) साधनसाध्याः (हविः) अत्तव्यमन्नम् (अदन्तु) भुञ्जताम् (देवाः) विद्वांसः॥११॥
भावार्थः
ये मनुष्याः सूर्यवत् प्रजापालका धर्मेण प्राप्तस्य पदार्थस्य भोक्तारो भवन्ति, ते सर्वोत्तमा गण्यन्ते॥११॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिए, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे विद्वन् (अग्ने) अग्नि के तुल्य तेजस्वी! आप (सद्यः) शीघ्र (जातः) प्रसिद्ध हुए (प्रजापतेः) प्रजारक्षक ईश्वर के (तपसा) प्रताप से (वावृधानः) बढ़ते हुए (स्वाहाकृतेन) सुन्दर संस्काररूप क्रिया से सिद्ध हुए (हविषा) होम में देने योग्य पदार्थ से (यज्ञम्) यज्ञ को (दधिषे) धारते हो, जो (पुरोगाः) मुखिया वा अगुआ (साध्या) साधनों से सिद्ध करने योग्य (देवाः) विद्वान् लोग (हविः) ग्राह्य अन्न का (अदन्तु) भोजन करें, उन को (याहि) प्राप्त हूजिये॥११॥
भावार्थ
जो मनुष्य सूर्य के समान प्रजा के रक्षक धर्म से प्राप्त हुए पदार्थ के भोगने वाले होते हैं, वे सर्वोत्तम गिने जाते हैं॥११॥
विषय
अग्रणी का कर्तव्य ।
भावार्थ
हे (अग्ने) अग्ने ! अग्रणी, विद्वन् ! तू ( प्रजापतेः ) प्रजा के पालक राजा पद के ( तपसा ) तप से, प्रभाव से ( वावृधानः ) वृद्धि को प्राप्त होता हुआ, (सद्यः जातः) जीघ्र राजा बनकर (यज्ञम् ) राष्ट्ररूप कार्य को (दधिषे ) धारण कर । तू (स्वाहाकृतेन) स्वाहा द्वारा अग्नि में आहुति किये हुए (हविषा ) अन्न से अथवा (सु-आह-कृतेन) उत्तम कीर्ति के जनक ( हविषा ) उपाय से (पुरोगा: ) अग्रगामी होकर ( याहि ) प्रयाण कर और ( साध्याः ) उत्तम रीति से साधन सम्पन्न ( देवाः ) विद्वान् और विजयी, वीर जन ( हविः अदन्तु ) अन्न और उपादेय राष्ट्र का उपभोग करें । अग्नि में चरु भस्म होकर दिव्य पदार्थों में लीन हो जाता है इसी प्रकार राजा द्वारा कर रूप में प्राप्त किया, पदार्थ विद्वानों,वीरों विजेता, सेना पुरुषों के कामों में व्यय होता है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अग्निः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
विषय
तप द्वारा वर्धन
पदार्थ
१. (प्रजापतेः) = प्रजापति के (तपसा) = तप से (वावृधानः) = निरन्तर बढ़ता हुआ, अर्थात् प्रजापति जैसे तप से सृष्टि का निर्माण करते हैं, इसी प्रकार तू भी तप से अपने जीवन का निर्माण करता है। २. तप से वृद्धि को प्राप्त करते हुए अग्ने हे प्रगतिशील जीव ! तू (सद्यः जात:) = शीघ्र ही आचार्यकुल से द्वितीय जन्म को प्राप्त करके (यज्ञं दधिषे) = यज्ञ को धारण करता है। गृहस्थ बनने पर तू पाँचों यज्ञों को करनेवाला बनता है। ३. प्रभु कहते हैं कि तू (स्वाहाकृतेन) = स्वार्थत्याग के द्वारा किये हुए इन यज्ञों से हविषा दानपूर्वक अदन के द्वारा, यज्ञशेष के सेवन के द्वारा (पुरोगाः) = आगे और आगे जानेवाला होकर (याहि) = जीवनयात्रा में चल । ६. (साध्या देवा:) = [साधनात् नि० १२।४०] = साधना करनेवाले देव (हविः अदन्तु) = सदा हवि का ही सेवन करें। वस्तुतः देव की मूलसाधना है ही यही कि वे यज्ञशील होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ - अग्रगामी जीवन में तप है, यज्ञ है। सबसे बड़ी साधना त्याग ही है।
मराठी (2)
भावार्थ
जी माणसे सूर्याप्रमाणे लोकांचे रक्षण करतात व धर्माने प्राप्त होणाऱ्या पदार्थांचा भोग करतात त्यांना सर्वोत्तम समजले जाते.
विषय
मनुष्यांनी काय केले पाहिजे, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (अग्ने) अग्नीसमान तेजस्वी विद्वान, आपण (सघः) शीघ्र वा सर्वप्रथम (जातः) विख्यात वा मुख्य प्रजापतेः) प्रजारक्षक ईश्वराच्या (तपसा) प्रतापाने (वावृधानः) वाढत (वा विद्येत उन्नती करीत) (स्वाहाकृतेन) सुसंस्काररूप क्रियेद्वारा (हविषा) हव्य पदार्थाने (यज्ञम्) यज्ञ (दधिषे) धारण करता वा यज्ञ-होम करता (या यज्ञप्रसंगी) जे जे (पुरोगाः) (गाव-गावचे) प्रमुख वा नेता (साध्याः) आपल्या यज्ञीय साधनांनी संपन्न होऊन तसेच (दूर दूरचे) (देवाः) विद्वज्जन (हविः) ग्राह्य वा सेवनीय अन्नाचे (अदन्तु) भोजन घेतात, ते भोजन करण्यासाठी आपणही (याहि) या. ॥11॥
भावार्थ
भावार्थ - जे लोक सूर्यासम प्रजेचे धर्मानुसार रक्षण करतात आणि धर्ममय मार्गांनी मिळविलेल्या संपत्तीचा उपभोग घेतात, सर्वोत्तम मनुष्य म्हणून त्यांची गणना होते ॥11॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O learned person, brilliant like fire, progressing and soon attaining to fame, through Gods grace, thou guardest the sacrifice with consecrated offering. Go unto those leading sages, who achieving success through their accomplishments, eat our oblations.
Meaning
Agni/brilliant and sagely scholar, rising and fast advancing by the austere discipline of Prajapati, lord of creation and the people, carry on the yajna by offers of refined and sanctified foods to the fire. Go on, and may the noblest of humanity, leaders and pioneers, and the divinities of the higher regions of the world partake of the libations offered by you into the fire.
Translation
O adorable leader, growing strong with the fervour of the Lord of creatures, you start supporting the sacrifice as soon as you are born. March in the forefront with the oblation offered with the utterance svaha (svaha-krta), so that the deserving enlightened ones may enjoy the sacrificial offerings. (1)
Notes
Sãdhyāḥ, those who deserve enlightenment; would be enlightened ones.
बंगाली (1)
विषय
পুনর্মনুষ্যৈঃ কিং কর্ত্তব্যমিত্যাহ ॥
পুনঃ মনুষ্যদিগকে কী করা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে বিদ্বন্ (অগ্নে) অগ্নিতুল্য তেজস্বী ! আপনি (সদ্যঃ) শীঘ্র (জাতঃ) জাত (প্রজাপতেঃ) প্রজারক্ষক ঈশ্বরের (তপসা) প্রতাপ দ্বারা (বাবৃধানঃ) বৃদ্ধি প্রাপ্ত (স্বাহাকৃতেন) সুন্দর সংস্কাররূপ ক্রিয়া দ্বারা প্রতিপন্ন (হবিষা) হোমে দেওয়ার যোগ্য পদার্থ দ্বারা (য়জ্ঞম্) যজ্ঞকে (দধিষে) ধারণ করুন যাহা (পুরোগাঃ) অগ্রগণ্য বা অগ্রগামিনী (সাধ্যা) সাধনগুলি দ্বারা সিদ্ধ করিবার যোগ্য (দেবাঃ) বিদ্বান্গণ (হবিঃ) গ্রাহ্য অন্নের (অদন্তু) ভোজন করিবে তাহা (য়াহি) প্রাপ্ত হউন ॥ ১১ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যে সব মনুষ্য সূর্য্য সমান প্রজার রক্ষক ধর্ম দ্বারা প্রাপ্ত পদার্থ ভোগকারী হয় তাহারা সর্বোত্তম গণ্য হয় ॥ ১১ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
প্র॒জাপ॑তে॒স্তপ॑সা বাবৃধা॒নঃ স॒দ্যো জা॒তো দ॑ধিষে য়॒জ্ঞম॑গ্নে ।
স্বাহা॑কৃতেন হ॒বিষা॑ পুরোগা য়া॒হি সা॒ধ্যা হ॒বির॑দন্তু দে॒বাঃ ॥ ১১ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
প্রজাপতেরিত্যস্য বৃহদুক্থো বামদেব্য ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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