Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 29

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 20
    ऋषिः - भार्गवो जमदग्निर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृत त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    63

    हिर॑ण्यशृ॒ङ्गोऽयो॑ऽअस्य॒ पादा॒ मनो॑जवा॒ऽअव॑र॒ऽइन्द्र॑ऽआसीत्।दे॒वाऽइद॑स्य हवि॒रद्यमाय॒न्योऽअर्व॑न्तं प्रथ॒मोऽअ॒ध्यति॑ष्ठत्॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हिर॑ण्यशृङ्ग॒ इति॒ हिर॑ण्यऽशृङ्गः। अयः॑। अ॒स्य॒। पादाः॑। मनो॑जवा॒ इति॒ मनः॑ऽजवाः। अव॑रः। इन्द्रः॑। आ॒सी॒त्। दे॒वाः। इत्। अ॒स्य॒। ह॒वि॒रद्य॒मिति॑ हविः॒ऽअद्य॑म्। आ॒य॒न्। यः। अर्व॑न्तम्। प्र॒थ॒मः। अ॒ध्यति॑ष्ठदित्यधि॒ऽअति॑ष्ठत् ॥२० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हिरण्यशृङ्गो योऽअस्य पादा मनोजवाऽअवर इन्द्रऽआसीत् । देवाऽइदस्य हविरद्यमायन्योऽअर्वन्तम्प्रथमो अध्यतिष्ठत् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    हिरण्यशृङ्ग इति हिरण्यऽशृङ्गः। अयः। अस्य। पादाः। मनोजवा इति मनःऽजवाः। अवरः। इन्द्रः। आसीत्। देवाः। इत्। अस्य। हविरद्यमिति हविःऽअद्यम्। आयन्। यः। अर्वन्तम्। प्रथमः। अध्यतिष्ठदित्यधिऽअतिष्ठत्॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 20
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्यैरग्न्यादिपदार्थगुणविज्ञानेन किं साध्यमित्याह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! योऽवरो हिरण्यशृङ्ग इन्द्र आसीद् यः प्रथमोऽर्वन्तमयश्चाभ्यतिष्ठदस्य पादा मनोजवाः स्युर्देवा अस्य हविरद्यमिदायन् तं यूयमाश्रयत॥२०॥

    पदार्थः

    (हिरण्यशृङ्गः) हिरण्यानि तेजांसि शृङ्गाणीव यस्य स (अयः) सुवर्णम्। अय इति हिरण्यनामसु पठितम्॥ (निघ॰१।२) (अस्य) (पादाः) पद्यन्ते गच्छन्ति यैस्ते (मनोजवाः) मनसो जवो वेग इव जवो वेगो येषान्ते (अवरः) नवीनः (इन्द्रः) परमैश्वर्यहेतुविद्युदिव सभेशः (आसीत्) भवेत् (देवाः) विद्वांसः सभासदः (इत्) एव (अस्य) (हविरद्यम्) दातुमर्हमत्तुं योग्यं च (आयन्) प्राप्नुयुः (यः) (अर्वन्तम्) अश्ववत् प्राप्नुवन्तं वह्निम् (प्रथमः) आदिमः (अध्यतिष्ठत्) उपरि तिष्ठेत्॥२०॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या अग्न्यादिपदार्थानां गुणकर्मस्वभावान् यथावञ्जानीयुस्ते बहून्यद्भुतानि कार्याणि साद्धुं शक्नुयुः। ये प्रीत्या राजकार्याणि प्राप्नुयुस्ते सत्कारं ये नाशयेयुस्ते दण्डं चावश्यं प्राप्नुयुः॥२०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्यों को अग्न्यादि पदार्थों के गुण ज्ञान से क्या सिद्ध करना चाहिए, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! (यः) जो (अवरः) नवीन (हिरण्यशृङ्गः) शृङ्ग के तुल्य जिस के तेज हैं, वह (इन्द्रः) उत्तम ऐश्वर्य वाला बिजुली के समान सभापति (आसीत्) होवे जो (प्रथमः) पहिला (अर्वन्तम्) घोड़े के तुल्य मार्ग को प्राप्त होते हुए अग्नि तथा (अयः) सुवर्ण का (अध्यतिछत्) अधिष्ठाता अर्थात् अग्निप्रयुक्त यान पर बैठ के चलाने वाली होवे राजा (अस्य) इसके (पादाः) पग (मनोजवाः) मन के तुल्य वेग वाले हों अर्थात् पग का चलना काम विमानादि से लेवे (देवाः) विद्वान् सभासद् लोग (अस्य) इस राजा के (हविरद्यम्) देने और भोजन करने योग्य अन्न को (इत्, आयन्) ही प्राप्त होवें, उसको तुम लोग जानो॥२०॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य अग्न्यादि पदार्थों के गुण कर्म स्वभावों को यथावत् जानें वे बहुत अद्भुत कार्य्यों को सिद्ध कर सकें, जो प्रीति से राजकार्य्यों को सिद्ध करें, वे सत्कार को और जो नष्ट करें, वे दण्ड को अवश्य प्राप्त होवें॥२०॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    मुख्य, अध्यक्ष का महान् सामर्थ्य, उसके हिरण्य़टंग और अय: पाद होने का, रहस्य ।

    भावार्थ

    (यः) जो (प्रथमः ) सब से प्रथम, सर्वश्रेष्ठ, सब से मुख्य होकर (अर्वन्तम् ) व्यापक शक्ति वाले, अतिवेगवान् इस राष्ट्र पर (अधि अतिष्ठत् ) अधिष्ठाता होकर विराजता है । ( देवा: ) देव, विद्वान् एवं विजयशील शूरवीर पुरुष भी (अस्य) इसके ( हविरन्नम ) अन्न के समान भोग्य वस्तु ( आयन् ) बन जाते हैं । (हिरण्यशृङ्गः ) लोह के बने हिंसा- साधनों, हथियारों से युक्त (इन्द्रः) इन्द्र, शत्रुनाशक सेनापति भी (अस्य अवरः) इसके अधीन नीचे पद पर ( आसीत् ) होता है और (अस्य) इसके (मनोजवाः पादाः) मन के समान अति वेग वाले पैरों के समान इसके शेष अङ्ग अर्थात् नीचे के पदाधिकारी भी ( मनोजवाः ) इसके मन के अनुकूल वेग से कार्य करने वाले और (अयः) सुवर्णादि वेतन से बद्ध हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अग्निः । निचृत् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    हिरण्यशृंग अयः पाद

    पदार्थ

    १. (यः) = जो (प्रथमः) = अपनी शक्तियों का विस्तार करनेवाला (अर्वन्तम् अध्यतिष्ठत्) = इन इन्द्रियाश्वों पर अधिष्ठित होता है, अर्थात् इन इन्द्रियरूप अश्वों को अपने वश में करता है, वह पुरुष (हिरण्यशृंग:) = [हिरण्यवत् शृंगं दीप्तिर्यस्य, शृंगमिति ज्वलन्नामसु पठितम् ] स्वर्ण के समान देदीप्यमान ज्ञानवाला होता है अथवा इसका शृंग-शिखर, अर्थात् मस्तिष्क ज्ञानज्योति से चमकता है और (अस्य पादाः) = इसके पैर (अय:) = लोहा होते हैं- लोहे की भाँति सुदृढ़ इसकी टाँगे होती है, मस्तिष्क में ज्ञान और पाँवों में चलने की शक्ति । २. यह (अवरः इन्द्रः) = उस महेन्द्र प्रभु का छोटा भाई उपेन्द्र [अवर इन्द्र] जीव मनोजवा आसीत् मन में वेगवाला होता है, अर्थात् इसका मन बड़ा ठीक कार्य करनेवाला होता है। ३. (देवा:) = ज्ञानी विद्वान् लोग (इत्) = निश्चय से (अस्य) = इसके (अद्यम् हविः) = खाने योग्य हव्य पदार्थ को आयन् प्राप्त होते हैं। इसके गृह पर आतिथिरूपेण आकर इसके आतिथ्य को स्वीकार करते हैं और सात्त्विक भोजन का सेवन करते हैं। वस्तुतः इनके निरन्तर सम्पर्क में बने रहने के कारण ही यह 'हिरण्यशृंग, अय: पाद, मनोजवाः' बन पाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम जितेन्द्रिय बनें। जितेन्द्रिय बनकर हम ज्योतिर्मय मस्तिष्कवाले, सुदृढ़ पाँववाले, कार्यपटु मनवाले तथा देवों का आतिथ्य करनेवाले बनें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (2)

    भावार्थ

    जी माणसे अग्नी वगैरे पदार्थांचे गुण, कर्म, स्वभाव जाणतात, ती अद्भुत कार्य करू शकतात. जी माणसे प्रेमाने राज्यकार्य करतात ती सत्कारास पात्र ठरतात व त्यात जी बाधा आणतात ती दंडास पात्र ठरतात.

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    मनुष्यांनी अग्नी आदी पदार्थांच्या गुणांचे ज्ञान प्राप्त केल्यानंतर कोणते कार्य पूर्ण करून घेतले पाहिजेत, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, (यः) जो (अवरः) नवीन (हिरण्यशृहगः) (हरणाच्या) वा स्वर्णमयचमक असलेल्या शिंगा प्रमाणे ज्याचे तेज आहे, असा उत्तम ऐश्‍वर्यवान विद्युतेप्रमाणे असलेला राष्ट्राचा तेजस्वी सभापती (आसीत्) असावा. (अर्वन्तम्) तो सभापती घोड्याप्रमाणे मार्गावर (प्रथमः) प्रथम येणारा अग्नी आहे. त्याचा तसेच (अयः) सुवर्णाचा (अध्यतिष्ठत्) अधिष्ठाता आहे अर्थात अग्नीद्वारा संचालित यानात बसून जाणारा राजा आहे. (अस्य) या राजाचे (पादाः) दोन्ही पाय (मनोजयाः) मनाच्या वेगाप्रमाणे असावेत म्हणजे विमान हेच त्याचे पाय असावेत. त्यात बसून त्याने मार्गक्रमण त्वरित करावे. (देवाः) विद्यावान राजसभासदगण (अस्य) या राजासाठी (हविरद्यम्) त्याच्या सैन्यासाठी सामग्री) सेणारे व त्याच्याकडून भोजनादी पदार्थ (इत् आयन्) प्राप्त करणारे असोत (विद्वानांनी राजाला मंत्राणा, आवश्यक सामग्री, तांत्रिक ज्ञान द्यावे आणि राजाने त्यांना भोजनादीद्वारे संतुष्ट करावे, हा आशय आहे) हे मनुष्यांनो, तुम्हीही त्या राजाला व विद्वानांना जाणून घ्या (त्याला सहकार्य द्या) ॥20॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे लोक अग्नि आदी पदार्थांचे गुण, कर्म, स्वभाव यांना यथावत जाणतात, ते अद्भुत कार्य सिद्ध करू शकतात. जे नागरिक मोठ्या आत्मीयतेने राजकार्य पूर्ण करतात, ते सत्कार-सम्मानास प्राप्त आहेत (वा राजाने त्यांचा सत्कार करावा) आणि जे राजकार्यात विघ्न-बाधा आणतील, त्यांना राजाने अवश्य दंडित करावे. ॥20॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O people, know that the head of the state should be sharp and brilliant like horns, and lustrous like lightning. Like a horse marching on his path, the king should be the first lord of fire and gold. His feet should possess the velocity of mind. The members of his Cabinet should receive their maintenance allowance from him.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    (Who can ride and control the tempestuous horse that is agni, fire power of nature and humanity?)Indra, master ruler, youthful and new. Golden is his crown. Of golden steel are his legs moving at the speed of mind. New and youthful, he is supreme. The noblest of humanity share power with him and partake of his holy food. First among all, he alone can ride and control the speed and power of agni.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    His mien is of gold; his feet are of Iron, and fleet as thought. The supreme self seems inferior to him in Speed. All the bounties of Nature come to participate in the glory of the sun. And it appears as if the resplendent Lord himself first used this horse for his mount. (3)

    Notes

    Hiranyasrngah, having horns of gold. But a horse does not have any horns, therefore, शृन्गस्थानीय:, where horns should have been. Or, हिरण्यवत् शृन्गं दीप्तिर्यस्य having a radiance like gold. Ayo asya pādāḥ, his feet are made of iron (or of bronze or copper). Manojavāh, मनोवत् जवो वेगो येषां ते, whose speed is like that of the mind. Avara, inferior, न्यून: । Haviradyam, अद्यं अत्तुं योग्यं हवि:, food which is worth eating. Yo arvantain prathamo adhyatişthat, (the same Indra appeared inferior to you), who was the first to ride this horse.

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (1)

    विषय

    মনুষ্যৈরগ্ন্যাদিপদার্থগুণবিজ্ঞানেন কিং সাধ্যমিত্যাহ ॥
    মনুষ্যদিগকে অগ্ন্যাদি পদার্থের গুণ-জ্ঞান দ্বারা কী সিদ্ধ করা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! (য়ঃ) যে (অবরঃ) নবীন (হিরণ্যশৃঙ্গঃ) শৃঙ্গের তুল্য যাহার তেজ সেই (ইন্দ্রঃ) উত্তম ঐশ্বর্য্যযুক্ত বিদ্যুতের সমান সভাপতি (আসীৎ) হইবে, যে (প্রথমঃ) প্রথম (অর্বন্তম্) অশ্বের তুল্য মার্গকে প্রাপ্ত হইয়া অগ্নি তথা (অয়ঃ) সুবর্ণের (অধ্যতিষ্ঠৎ) অধিষ্ঠাতা অর্থাৎ অগ্নিপ্রযুক্ত যানের উপর বসিয়া চালক হইবে । রাজা (অস্য) ইহার (পাদাঃ) পদ (মনোজবাঃ) মনের তুল্য বেগসম্পন্ন হউক অর্থাৎ পাদচালন কর্ম্ম বিমানাদি হইতে লইবে (দেবাঃ) বিদ্বান্ সভাসদগণ (অস্য) এই রাজার (হবিরদ্যম্) দেওয়ার এবং ভোজন করিবার যোগ্য অন্নকেই (ইৎ, আয়ন্) প্রাপ্ত হউক উহাকে তোমরা জানো ॥ ২০ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যে সব মনুষ্য অগ্ন্যাদি পদার্থগুলির গুণ-কর্ম-স্বভাবকে যথাবৎ জানে তাহারা বহু অদ্ভূত কার্য্যসমূহকে সিদ্ধ করিতে পারে, যাহারা প্রীতিপূর্বক রাজকার্য্যগুলি সিদ্ধ করিবে তাহারা সৎকারকে এবং যাহারা নষ্ট করে তাহারা দন্ডকে অবশ্য প্রাপ্ত হইবে ॥ ২০ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    হির॑ণ্যশৃ॒ঙ্গোऽয়ো॑ऽঅস্য॒ পাদা॒ মনো॑জবা॒ऽঅব॑র॒ऽইন্দ্র॑ऽআসীৎ ।
    দে॒বাऽইদ॑স্য হবি॒রদ্যমায়॒ন্যোऽঅর্ব॑ন্তং প্রথ॒মোऽঅ॒ধ্যতি॑ষ্ঠৎ ॥ ২০ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    হিরণ্যশৃঙ্গ ইত্যস্য ভার্গবো জমদগ্নির্ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । নিচৃৎ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top