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यजुर्वेद अध्याय - 29

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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 18
    ऋषिः - भार्गवो जमदग्निर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    60

    अत्रा॑ ते रू॒पमु॑त्त॒मम॑पश्यं॒ जिगी॑षमाणमि॒षऽआऽप॒दे गोः।य॒दा ते॒ मर्त्तो॒ऽअनु भोग॒मान॒डादिद् ग्रसि॑ष्ठ॒ऽओष॑धीरजीगः॥१८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अत्र॑। ते॒। रू॒पम्। उ॒त्त॒ममित्यु॑त्ऽत॒मम्। अ॒प॒श्य॒म्। जिगी॑षमाणम्। इ॒षः। आ। प॒दे। गोः। य॒दा। ते॒। मर्त्तः॑। अनु॑। भोग॑म्। आन॑ट्। आत्। इत्। ग्रसि॑ष्ठः। ओष॑धीः। अ॒जी॒ग॒रित्य॑जीगः ॥१८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अत्रा ते रूपमुत्तममपश्यञ्जिगीषमाणमिषऽआ पदे गोः । यदा ते मर्ताऽअनु भोगमानडादिद्ग्रसिष्ठऽओषधीरजीगः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अत्र। ते। रूपम्। उत्तममित्युत्ऽतमम्। अपश्यम्। जिगीषमाणम्। इषः। आ। पदे। गोः। यदा। ते। मर्त्तः। अनु। भोगम्। आनट्। आत्। इत्। ग्रसिष्ठः। ओषधीः। अजीगरित्यजीगः॥१८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 18
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ शूरवीराः किं कुर्वन्त्वित्याह॥

    अन्वयः

    हे वीर! ते जिगीषमाणमुत्तमं रूपं गोः पदेऽत्र इषश्चाऽऽपश्यं ते मर्त्तो यदा भोगमानट् तदाऽऽदिद् ग्रसिष्ठः संस्त्वमोषधीरन्वजीगः॥१८॥

    पदार्थः

    (अत्र) अस्मिन् व्यवहारे। अत्र संहितायाम् [अ॰६.३.११४] इति दीर्घः। (ते) तव (रूपम्) (उत्तमम्) (अपश्यम्) पश्येयम् (जिगीषमाणम्) शत्रून् विजयमानम् (इषः) अन्नानि (आ) समन्तात् (पदे) प्रापणीये (गोः) पृथिव्याः (यदा) (ते) तव (मर्त्तः) मनुष्यः (अनु) आनुकूल्ये (भोगम्) (आनट्) व्याप्नोति। आनडिति व्याप्तिकर्मा॥ (निघ॰२।१८) (आत्) अनन्तरम् (इत्) एव (ग्रसिष्ठः) अतिशयेन ग्रसिता (ओषधीः) (अजीगः) निगलसि॥१८॥

    भावार्थः

    हे मनुष्याः! यथोत्तमानि पश्वादीनि सेनाङ्गानि विजयकराणि स्युस्तथा शूरवीरा विजयहेतवो भूत्वा भूमिराज्ये भोगान् प्राप्नुवन्तु॥१८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब शूरवीर लोग क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे वीर पुरुष! (ते) आप के (जिगीषमाणम्) शत्रुओं को जीतते हुए (उत्तमम्) उत्तम (रूपम्) रूप और (गोः) पृथिवी के (पदे) प्राप्त होने योग्य (अत्र) इस व्यवहार में (इषः) अन्नों के दानों को (आ, अपश्यम्) अच्छे प्रकार देखूं (ते) आपका (मर्त्तः) मनुष्य (यदा) जब (भोगम्) भोग्य वस्तु को (आनट्) व्याप्त होता है, तब (आत्) (इत्) इसके अनन्तर ही (ग्रसिष्ठः) अति खाने वाले हुए आप (औषधीः) औषधियों को (अनु, अजीगः) अनुकूलता से भोगते हो॥१८॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो! जैसे उत्तम घोड़े आदि सेना के अङ्ग विजय करने वाले हों, वैसे शूरवीर विजय के हेतु होकर भूमि के राज्य में भोगों को प्राप्त हों॥१८॥

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    विषय

    विजिगीष का उअग्निः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥त्तम रूप भोषधियों के ग्रास का रहस्य । अध्यात्म में ओषधिमय जीवनप्रद भोजन का उपदेश ।

    भावार्थ

    हे राजन् ! (अत्र) इस ( गो: पदे ) पृथ्वी के शासनाधिकार पर विराजमान (इष: ) अन्नादि पदार्थों या सेनाओं को (जिगीषमाणम् ) विजय करने की इच्छा वाले (ते) तेरे ( उत्तमम् ) उत्तम ( रूपम् ) रूप को मैं ( अपश्यम् ) देखता हूँ और (यदा ) जब (ते) तेरे अधीन रहने वाला (मर्त्तः) मनुष्यजन, ( भोगम् अनु आनड् ) भोगयोग्य सम्पत्ति प्राप्त करता है (आत् इत्) तभी (ग्रसिष्टः) बहुत खाने वाला जीव जिस प्रकार (ओषधीः) अन्नादि पदार्थ खाता है उसी प्रकार तू भी ( ग्रसिष्ठः) शत्रुओं के राज्यों और धनों को सबसे अधिक ग्रसन में समर्थ होकर (ओषधी :) संताप देने वाले शत्रुओं को, ( अजीगः ) ग्रस लेता है । (२) आत्मा के पक्ष में- हे आत्मन् ! ( गो: पदे ) वाणी के या गमन योग्य, प्राप्तव्य अपने ( पदे ) ज्ञानमय स्वरूप पर विजय चाहने वाले तेरे (रूपम् ) सुन्दर रूप को मैं देखूं । (ते मर्त्तः) तेरा मरणधर्मा शरीर जब(भोजम् अनु आनड ) भोग को चाहता है तभी ( ग्रसिष्ठः ) बहुत भोक्ता होकर (ओषधीः अजीगः) जीवन देनेवाले अन्नादि ओषधियों को ग्रसता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अग्निः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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    विषय

    प्रभुरूप दर्शन

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार जब मैं रजोगुण से ऊपर उठकर सात्त्विक मार्ग पर चलता हूँ तब (अत्र) = यहाँ (ते) = तेरे (उत्तमम् रूपम्) = सर्वोत्तम सच्चिदानन्दरूप को (अपश्यम्) = देखता हूँ। जो तेरा रूप (जिगीषमाणम्) = मेरी सब वासनाओं को जीतने की कामना करता है, अर्थात् आपके रूपदर्शन से ही मेरी सब वासनाएँ नष्ट हो जाती हैं। २. आपके दर्शन से मैं (गोः पदे) = इस वेदवाणी के पद में दिव्य प्रेरणाओं को (अपश्यम्) = अपने सारे जीवन के लिए देखता हूँ। मुझे इन वेदवाणियों से सुन्दर प्रेरणाएँ प्राप्त होती हैं। ३. इन प्ररेणाएँ को सुननेवाला (ते मर्तः) = आपका यह मनुष्य (यत्) = जब (अनु) = यज्ञ के बाद (भोगम् आनट्) = भोग को व्याप्त करता है, अर्थात् यज्ञशेष का सेवन करता है, ('त्यक्तेन भुञ्जीथा:') इन शब्दों के अनुसार त्यागपूर्वक उपभोग में प्रवृत होता है (आत् इत्) = तभी सचमुच यह (ग्रसिष्ठः) = सर्वोत्तम भक्षण करनेवाला होता है। अकेला खानेवाला तो निकृष्ट भोगी है। ४. यह उत्तम भोक्ता (ओषधीः अजीगः) = ओषधियों का ही निगरण करता है। यह कभी भी मांसमोजन में प्रवृत्त नहीं होता।

    भावार्थ

    भावार्थ - सात्त्विक मार्ग पर चलने से प्रभु का दर्शन होता है, क्रोधादि को हम जीत पाते हैं, वेदवाणी से प्रतिपादित मार्ग पर चलते हैं, यज्ञशेष का सेवन करते हैं, ओषधि-वनस्पतियों को अपनाते हैं।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! जसे सेनेचे उत्तम अंग असलेल्या घोड्यांमुळे विजय प्राप्त होतो तसे शूर वीरांनी विजय प्राप्त करण्यासाठी भूमीवरील भोग प्राप्त करावेत.

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    विषय

    शूरवीर जणांनी काय करावे, यावषियी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे वीर पुरूष, (ते) आपले जे (जिगीषमाणम्) शत्रूंना जिंकणारे (उत्तमम्) उत्तम (रूपम्) रूप आहे (आपली सैनिक वेशभूषा शत्रूला भयभीत करणारी आहे) आणि (गोः) भूमीच्या (पदे) जिंकून घेण्यास योग्य अशा या (अत्र) येथील आक्रमणात वा यत्नात मी (एक नागरिक) आपल्यासाठी भरपूर (इषः) अन्न-धान्य जमा करण्याच्या कामाकडे (अमपश्यम्) पाहीन. (ते) आपले हे (मर्त्तः) मनुष्य (म्हणजे मर्त्य शरीर) (यदा) जेव्हां (भोगम्) भोग्य पदार्थ (आनट्) प्राप्त करतो, तेव्हा (आत्) (इत्) त्यानंतरच (ग्रसिष्ठः) भोजन अतिमात्रात सेवन करणारे आपण (ओषधी) (ते पचविण्यासाठी) (अनु, अजीगः) अनुकूल होईल, त्याप्रमाणात सेवन करता. ॥18॥

    भावार्थ

    भावार्थ - हे मनुष्यांनो, ज्याप्रमाणे एका उत्तम अश्‍वसैन्य आणि सैन्याची इतर अंगे विजय संपादनात समर्थ होतात, तसेच शूरवीर स्वस्थ बलिष्ठ सैनिक भूमीवर राज्यविस्तार करण्यास समर्थ होऊ शकतात ॥18॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O brave person, I behold thy form matchless in beauty, eager to win foes and the food produced here from the Earth. Whenever a man brings thee thy eatables, thou, then, being the most voracious eater, swallowest medicines.

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    Meaning

    Agni, victorious power, here I see your most splendid form eager to win the wealth of food and energy of the earth. Only when your people have received their portion of the food, only then you, most voracious though, take your share of the nourishing foods and herbs.

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    Translation

    l behold your most excellent form as if anxiously looking round for food on this earth, whilst you come up. It appears as if your attendant brings you near your provender, which you start consuming with immense pleasure. (1)

    Notes

    Iṣa jigīşamāṇam, anxious to win food. Ā pade goḥ, on this earth. गो: सूर्यस्य पदे मण्डले, in the disc of the sun (Mahidhara). Cow's station, chief place of the earth, the cow being the altar. (Griffith). Bhogamn änat, brings you near your provender. Or, brings you to your enjoyment. Grasiştha, O most greedy eater. Ajigaḥ, गिरसि , भक्षयसि, you eat; swallow. Oṣadhiḥ, herbs, plants.

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথ শূরবীরাঃ কিং কুর্বন্ত্বিত্যাহ ॥
    এখন শূরবীরগণ কী করিবে, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে বীর পুরুষ ! (তে) আপনার (জিগীষমাণম্) শত্রুদিগকে জিতিয়া (উত্তমম্) উত্তম (রূপম্) রূপ ও (গোঃ) পৃথিবীর (পদে) প্রাপ্ত হওয়ার যোগ্য (অত্র) এই ব্যবহারে (ইষঃ) অন্নগুলির দানগুলিকে (আ, অপশ্যম্) উত্তম প্রকার দেখি । (তে) আপনার (মর্ত্তঃ) মনুষ্য (য়দা) যখন (ভোগম্) ভোগ্য বস্তুতে (আন্ট) ব্যাপ্ত হয় তখন (আৎ) (ইৎ) ইহার অনন্তরই (গ্রসিষ্ঠঃ) অতি ভোজনকারী আপনি (ওষধীঃ) ওষধী সমূহকে (অনু, অজীগঃ) অনুকূলতাপূর্বক ভোগ করুন ॥ ১৮ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যেমন উত্তম অশ্বাদি সেনার অঙ্গ বিজয়ী হউক তদ্রূপ শূরবীর বিজয় হেতু হইয়া ভূমির রাজ্যে ভোগ প্রাপ্ত হউক ॥ ১৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অত্রা॑ তে রূ॒পমু॑ত্ত॒মম॑পশ্যং॒ জিগী॑ষমাণমি॒ষऽআ প॒দে গোঃ ।
    য়॒দা তে॒ মর্ত্তো॒ऽঅনু॒ ভোগ॒মান॒ডাদিদ্ গ্রসি॑ষ্ঠ॒ऽওষ॑ধীরজীগঃ ॥ ১৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অত্রেত্যস্য ভার্গবো জমদগ্নির্ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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