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यजुर्वेद अध्याय - 29

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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 51
    ऋषिः - भारद्वाज ऋषिः देवता - महावीरः सेनापतिर्देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    88

    अहि॑रिव भो॒गैः पर्ये॑ति बा॒हुं ज्याया॑ हे॒तिं प॑रि॒बाध॑मानः।ह॒स्त॒घ्नो विश्वा॑ व॒युना॑नि वि॒द्वान् पुमा॒न् पुमा॑सं॒ परि॑ पातु वि॒श्वतः॑॥५१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अहि॑रि॒वेत्यहिः॑ऽइव। भो॒गैः। परि॑। ए॒ति॒। बा॒हुम्। ज्यायाः॑। हे॒तिम्। प॒रि॒बाध॑मान॒ इति॑ परि॒ऽबाध॑मानः। ह॒स्त॒घ्न इति॑ हस्त॒ऽघ्नः। विश्वा॑। व॒युना॑नि। वि॒द्वान्। पुमा॑न्। पुमां॑सम्। परि॑। पा॒तु॒। वि॒श्वतः॑ ॥५१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुञ्ज्याया हेतिम्परिबाधमानः । हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान्पुमान्पुमाँसम्परिपातु विश्वतः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अहिरिवेत्यहिःऽइव। भोगैः। परि। एति। बाहुम्। ज्यायाः। हेतिम्। परिबाधमान इति परिऽबाधमानः। हस्तघ्न इति हस्तऽघ्नः। विश्वा। वयुनानि। विद्वान्। पुमान्। पुमांसम्। परि। पातु। विश्वतः॥५१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 51
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्य! यो हस्तघ्नो विद्वान् पुमान् भवान् ज्याया हेतिं प्रक्षिप्य बाहुं परिबाधमानः पुमांसं विश्वतः परि पातु, सोऽहिरिव भोगैर्विश्वा वयुनानि पर्येति॥५१॥

    पदार्थः

    (अहिरिव) मेघ इव गर्जन्। अहिरित मेघनामसु पठितम्॥ (निघ॰१।१०) (भोगैः) (परि) सर्वतः (एति) प्राप्नोति (बाहुम्) बाधकं शत्रुम् (ज्यायाः) प्रत्यञ्चायाः (हेतिम्) बाणम् (परिबाधमानः) सर्वतो निवारयन् (हस्तघ्नः) यो हस्ताभ्यां हन्ति सः (विश्वा) सर्वाणि (वयुनानि) विज्ञानानि (विद्वान्) (पुमान्) पुरुषार्थी (पुमांसम्) पुरुषार्थिनम् (परि) सर्वथा (पातु) रक्षतु (विश्वतः) संसारे भवाद्विघ्नात्॥५१॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यो विद्वान् बाहुबलः शस्त्रास्त्रप्रक्षेपणविच्छत्रून् निवारयन् पुरुषार्थेन सर्वान् सर्वस्माद् रक्षन् मेघवत्सुखभोगवर्द्धकः स्यात्, स सर्वान् मनुष्यान् विद्याः प्रापयितुं समर्थो भवेत्॥५१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्य! जो (हस्तघ्नः) हाथों से मारने वाले (विद्वान्) विद्वान् (पुमान्) पुरुषार्थी आप (ज्यायाः) प्रत्यञ्चा से (हेतिम्) बाण को चला के (बाहुम्) बाधा देनेवाले शत्रु को (परिबाधमानः) सब ओर से निवृत्त करते हुए (पुमांसम्) पुरुषार्थी जन की (विश्वतः) सब प्रकार से (परि, पातु) चारों ओर से रक्षा कीजिए सो (अहिरिव) मेघ के तुल्य गर्जते हुए आप (भोगैः) उत्तम भोगों के सहित (विश्वा) सब (वयुनानि) विज्ञानों को (परि, एति) सब ओर से प्राप्त होते हो॥५१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो विद्वान् भुजबल वाला शस्त्र-अस्त्र के चलाने का ज्ञाता, शत्रुओं को निवृत्त करता, पुरुषार्थ से सब की रक्षा करता हुआ, मेघ के तुल्य सुख और भोगों को बढ़ाने वाला हो, वह सब मनुष्यों को विद्या प्राप्त कराने को समर्थ होवे॥५१॥

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    विषय

    हाथबन्द कवच और कुशल वीर का श्लेष से वर्णन ।

    भावार्थ

    (हस्तघ्नः) हाथ में बंधी डोरी के आघातों से बार-बार ताड़ित होने वाला हाथबन्द नामक कवच जिस प्रकार ( बाहुम् ) बाहु को (अहि: ईव भौगैः) सांप के समान अपने अंगों से (परि एति) बाहु पर चारों ओर से लिपट जाता है और (ज्यायाः) डोरी के ( हेतिम् ) आघात को ( परिबाधमानः) बचाता हुआ मनुष्य की रक्षा करता है उसी प्रकार (हस्तघ्नः) अपने हाथों से ही शस्त्रास्त्र चलाने में कुशल वीर पुरुष (भोगैः) अपने पालन करने वाले साधनों से (अहि: इव) मेघ के समान (परि एति) नगर को घेरता है ( बाहुम् ) पीड़ा देने वाले शत्रु को और (ज्याया व्हेतिम् ) डोरियों से फेंके गये बाण (परि बाधमानः) दूर से ही नष्ट करता हुआ (विश्वा वयुनानि) सब प्रकार के ज्ञानों और युद्ध कौशलों को जानने हारा (विद्वान् पुमान्) ज्ञानी पुरुष ( पुमांसम् ) नगरवासी जन को (विश्वतः ) सब प्रकारों से (परि पातु) रक्षा करे ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    महावीरः सेनापतिः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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    विषय

    पुमान् पुमांसं पातु

    पदार्थ

    १. 'हस्तघ्न' की व्युत्पत्ति है 'हस्ते स्थितो हन्ति' अथवा 'हस्तं हन्ति प्राप्नोति' - हाथ में स्थित होता हुआ ज्या के अघात को रोकता है अथवा (ज्या) = के अघात से बचाव के लिए हाथ को प्राप्त होता है। इस प्रकार यह (हस्तघ्नः) = प्रकोष्ठ त्राण [भुजरक्षक] (ज्यायाः) = धनुष की डोरी के (हेतिम्) = आघात को (परिबाधमानः) = रोकता हुआ बाहुम् बाहु को (भोगैः) = अपने विस्तार से [आभोग से] (पर्येति) = इस प्रकार परिवेष्टित कर लेता है (इव) = जैसे (अहि:) = साँप (भोगैः) = अपने शरीरावयवों से। २. इसी प्रकार राजा भी हस्तघ्न हो, हाथ में लिये हुए शस्त्रों से शत्रुओं का हनन करनेवाला हो। यह राजा विश्वा (वयुनानि) = सब कर्मों व प्रज्ञानों को (विद्वान्) = जानता हुआ, अर्थात् अपने कर्त्तव्यों व ज्ञेय विषयों को समझता हुआ (पुमान्) = वीर होता हुआ अथवा [पू] पवित्र जीवनवाला होता हुआ (पुमांसम्) = अपने राष्ट्र के पवित्राचरण लोगों को (विश्वतः) = सब दृष्टिकोणों से (परिपातु) = रक्षित करे।

    भावार्थ

    भावार्थ- 'हस्तघ्न'ज्या के आघात से बाहु की रक्षा करता है। इसी प्रकार राजा भी हस्तघ्न बनता है और अपने कर्त्तव्यों को समझता हुआ प्रजा का रक्षण करता है।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो विद्वान मजबूत बाहू असलेला, अस्र-शस्र चालविणारा, शत्रूंना नष्ट करणारा, पुरुषार्थाने सर्वांचे रक्षण करणारा, मेघाप्रमाणे सुख देणारा व भोग पदार्थ वाढविणारा असेल तर तो सर्व लोकांना विद्या देण्यास समर्थ ठरू शकेल.

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    विषय

    पुन्हा, त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे वीर युद्धनिपुण महोदय, आपण (हस्तघ्नः) (प्रसंग पडल्यास शत्रूला हाताने वा हातात धरलेल्या तलवार, कृपाण, गदा आदी शस्त्रांद्वारे) मारणारे (विद्वान) युद्ध कलानिपुण योद्धा आहात. आपण (पुमान्) पुरूषार्थी असून (ज्यायाः) धनुष्याच्या प्रत्यंचेने (हेतिम्) बाण चालवून (बाहुम्) बाधक शत्रूला (परिबाधमानः) सर्वतः निवारित करीत (पुमांसम्) आपल्या दलातील माणसाचे (विश्‍वतः) सर्व दिशांतून (परि, पातु) रक्षण करा. आपण (अहिरिव) मेघाप्रमाणे गर्जना करीत आपण उत्तम भोगासह (विश्‍वा) सर्व (वयुनानि) युद्ध कला विज्ञानाला (परि, एति) सर्वप्रकारे जाणता. (आमचेही आपण रक्षण करा) ॥51॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. जो विद्वान भुजवली, अस्त्र-शस्त्र संचालन- कुशल, शत्रुनिवारक आरि आपल्या पुरूषार्थ-पराक्रमाने सर्वांची रक्षा करतो, तो मेघाप्रमाणे सुख व ऐश्‍वर्याचा उपभोग घेतो आणि तोच सर्व लोकांना विद्या, युद्धविद्या आदी शिकविण्यास पात्र असतो. ॥51॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    May the energetic learned person, discharging arrow from the bow-string, and extirpating the opposing foe from all sides, protect the virile person, in every way, and thundering like a cloud with his armies, acquire all sorts of worldly knowledge.

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    Meaning

    Like the hand-guard warding off the strikes of the bow-string with its coils and protecting the hand of the archer, the expert commander of the army and the man of laws and ways of the world, by the blows of his arms and himself facing the challenges, protects the people from all round and, like the cloud, showers all the peace and comfort on them.

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    Translation

    The hand glove, imparting protection from the abrasion of the bow-string, surrounds the forearm like a snake with its convolutions; may the brave man, experienced in the arts of war, defend a combatant on every side. (1)

    Notes

    Hastagnaḥ, प्रष्ठादित्राणं, a brace, the armour for forearms. Bāhum pari eti, sorrounds the arm. Jyāyāḥ hetim pari bädhamanaḥ, giving protection from the abrasions of the bow-string. Pumān pumāmsam pari pātu, let a man (worthy of the name) protect his combatant companion on every side or at all costs. Bhogaiḥ, देहै:, with its convolutions.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে মনুষ্য! (হসঘ্নঃ) হস্ত দ্বারা মারেন যে বিদ্বান্ (পুমান্) পুরুষকার সম্পন্ন আপনি (জ্যায়াঃ) জ্যা দ্বারা (হেতিম্) বাণ চালাইয়া (বাহূম্) বাধা প্রদানকারী শত্রুকে (পরিবাধমানঃ) সব দিক দিয়া নিবৃত্ত করিয়া (পুমাংসম্) পুরুষকার সম্পন্ন ব্যক্তির (বিশ্বতঃ) সর্ব প্রকারে (পরি, পাতু) চারি দিক দিয়া রক্ষা করুন । সুতরাং (অহিরিব) মেঘতুল্য গর্জন করিয়া আপনি (ভোগৈঃ) উত্তম ভোগের সহিত (বিশ্বা) সকল (বয়ুনানি) বিজ্ঞানসকলকে (পরি, এতু) সব দিক দিয়া প্রাপ্ত হউন ॥ ৫১ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । যে বিদ্বান্ বাহুবল যুক্ত অস্ত্র-শস্ত্র চালাইবার জ্ঞাতা শত্রুদিগকে নিবৃত্ত করে, পুরুষকার বলে সকলকে রক্ষা করিয়া মেঘতুল্য সুখ ও ভোগকে বৃদ্ধিকারী হয়, সে সব মনুষ্যদিগকে বিদ্যা প্রাপ্ত করাইতে সক্ষম হইবে ॥ ৫১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অহি॑রিব ভো॒গৈঃ পর্য়ে॑তি বা॒হুং জ্যায়া॑ হে॒তিং প॑রি॒বাধ॑মানঃ ।
    হ॒স্ত॒ঘ্নো বিশ্বা॑ ব॒য়ুনা॑নি বি॒দ্বান্ পুমা॒ন্ পুমা॑ᳬंসং॒ পরি॑ পাতু বি॒শ্বতঃ॑ ॥ ৫১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অহিরিবেত্যস্য ভারদ্বাজ ঋষিঃ । মহাবীরঃ সেনাপতির্দেবতা । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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