यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 9
ऋषिः - बृहदुक्थो वामदेव्य ऋषिः
देवता - त्वष्टा देवता
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
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त्वष्टा॑ वी॒रं दे॒वका॑मं जजान॒ त्वष्टु॒रर्वा॑ जायतऽआ॒शुरश्वः॑।त्वष्टे॒दं विश्वं॒ भुव॑नं जजान ब॒होः क॒र्त्तार॑मि॒ह य॑क्षि होतः॥९॥
स्वर सहित पद पाठत्वष्टा॑। वी॒रम्। दे॒वका॑म॒मिति॑ दे॒वऽका॑मम्। ज॒जा॒न॒। त्वष्टुः॑। अर्वा॑। जा॒य॒ते॒। आ॒शुः। अश्वः॑। त्वष्टा॑। इ॒दम्। विश्व॑म्। भुव॑नम्। ज॒जा॒न॒। ब॒होः। क॒र्त्तार॑म्। इ॒ह। य॒क्षि॒। हो॒त॒रिति॑ होतः ॥९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वष्टा वीरन्देवकामञ्जजान त्वष्टुरर्वा जायत आशुरश्वः । त्वष्टेदँविश्वम्भुवनञ्जजान बहोः कर्तारमिह यक्षि होतः ॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वष्टा। वीरम्। देवकाममिति देवऽकामम्। जजान। त्वष्टुः। अर्वा। जायते। आशुः। अश्वः। त्वष्टा। इदम्। विश्वम्। भुवनम्। जजान। बहोः। कर्त्तारम्। इह। यक्षि। होतरिति होतः॥९॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे होतस्त्वं यथा त्वष्टा विद्वान् देवकामं वीरं जजान यथा त्वष्टुराशुरर्वाश्वो जायते, यथा त्वष्टेदं विश्वं भुवनं जजान, तं बहोः कर्त्तारमिह यक्षि तथा वयमपि कुर्याम॥९॥
पदार्थः
(त्वष्टा) विद्यादिसद्गुणैः प्रकाशमानः (वीरम्) (देवकामम्) यो देवान् विदुषः कामयते तम् (जजान) जनयति (त्वष्टुः) प्रदीप्ताच्छिक्षणात् (अर्वा) शीघ्रं गन्ता (जायते) (आशुः) तीव्रवेगः (अश्वः) तुरङ्गः (त्वष्टा) स्वात्मप्रकाशितः (इदम्) (विश्वम्) सर्वम् (भुवनम्) लोकजातम् (जजान) जनयति (बहोः) बहुविधस्य संसारस्य (कर्त्तारम्) (इह) अस्मिन् संसारे (यक्षि) यजसि सङ्गच्छसे (होतः) आदातः॥९॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये विद्याकामान् मनुष्यान् विदुषः कुर्य्युर्ये सद्योजातशिक्षोऽश्व इव तीव्रवेगेन विद्याः प्राप्नोति, यथा बहुविधस्य संसारस्य स्रष्टेश्वरः सर्वान् व्यवस्थापयति, तथाऽध्यापकाऽध्येतारो भवन्तु॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (होतः) ग्रहण करनेहारे जन! तू जैसे (त्वष्टा) विद्या आदि उत्तम गुणों से शोभित विद्वान् (देवकामम्) विद्वानों की कामना करनेहारे (वीरम्) वीर पुरुष को (जजान) उत्पन्न करता है, जैसे (त्वष्टुः) प्रकाशरूप शिक्षा से (आशुः) शीघ्रगामी (अर्वा) वेगवान् (अश्वः) घोड़ा (जायते) होता है। जैसे (त्वष्टा) अपने स्वरूप से प्रकाशित ईश्वर (इदम्) इस (विश्वम्) सब (भुवनम्) लोकमात्र को (जजान) उत्पन्न करता है, उस (बहोः) बहुविध संसार के (कर्त्तारम्) रचनेवाले परमात्मा का (इह) इस जगत् में (यक्षि) पूजन कीजिए, वैसे हम लोग भी करें॥९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विद्वान् लोग विद्या चाहने वाले मनुष्यों को विद्वान् करें, शीघ्र जिसको शिक्षा हुई हो उस घोड़े के समान तीक्ष्णता से विद्या को प्राप्त होता है, जैसे बहुत प्रकार के संसार का स्रष्टा ईश्वर सब की व्यवस्था करता है, वैसे अध्यापक और अध्येता होवें॥९॥
विषय
गृहस्थ में, राष्ट्र में और उपासना में क्रम से योग्य पुरुष, शिल्पी और उपासकों की नियुक्ति ।
भावार्थ
( त्वष्टा) कान्तिमान्, वीर्यवान् पुरुष ( देवकामम् ) विद्वानों के प्रिय (वीरम् ) वीर पुत्र को (जजान ) उत्पन्न करता है । (त्वष्टुः) त्वष्टा के शिल्पों से ही (अर्वा) गतिशील यन्त्र भी ( आशुः ) वेगवान् (अश्व:) अश्व के समान मार्ग तय करने वाला (जायते) उत्पन्न होता है । (त्वष्टा ) समस्त विश्व का रचयिता, विश्वकर्मा परमेश्वर ( विश्वं भुवनम् जजान ) समस्त भुवन, जगत् को पैदा करता है । इस कारण हे (होतः) होता ! तू (बहोः कर्त्तारम्) बहुत से वीर कार्यों और वीर पुरुष उत्पन्न करनेवाले, बहुत से पदार्थों को रखनेवाले और बहुत बड़े विश्व के रचने वाले, उत्तम गृहस्थ और राजा, शिल्पी और परमेश्वर को ( इह ) इस महान्, यज्ञ अश्वमेध या राष्ट्रकार्य और उपासना में ( यक्षि ) अधिकार प्रदान कर, नियुक्त कर उपासना कर । अर्थात् वीर्यवान् गृहस्थ को गृहस्थ यज्ञ, पुत्रप्रजनन कार्य में नियुक्त कर, शिल्पवान् पुरुष को राष्ट्र में नियुक्त कर देवोपासना में उपासक को नियुक्त कर ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
स्वष्टा । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥
विषय
त्वष्टा
पदार्थ
१. 'त्वष्टा' शब्द ' त्विषेर्वा स्याद् दीप्तिकर्मणः' त्विष धातु से बनकर ज्ञान से दीप्त आचार्य का वाचक है। 'त्वक्षेतेर्वा स्यात् करोति कर्मणः' त्वक्ष धातु से बनकर यह उत्तम विद्यार्थी का निर्माण करनेवाले आचार्य का वाचक है। यह (त्वष्टा) = ज्ञानदीप्त आचार्य (वीरम्) = वीरता से युक्त, वीर भावनावाले (देवकामम्) = देवताओं की कामनावाले शिष्य को (जजान) = द्वितीय जन्म देता है। माता-पिता से पैदा हुए हुए इस विद्यार्थी को आचार्य वीर व दिव्यगुणों की कामनावाला बनाकर एक नया जन्म दे देता है। २. (त्वष्टुः) = इस विद्यार्थी के उत्तम जीवन का निर्माण करनेवाले आचार्य से अर्वा काम, क्रोधादि वासनाओं का संहार करनेवाला, (आशुः) = शीघ्रता से कार्य करनेवाला (अश्वः) = सदा कर्मों में व्याप्त व्यक्ति (जायते) = उत्पन्न होता है, अर्थात् आचार्य विद्यार्थी को इस प्रकार की शिक्षा देता है कि वह वासनाओं को जीतनेवाला, कर्मव्याप्त जीवनवाला, आलस्यशून्य बनता है। ३. (त्वष्टा) = यह विद्यार्थी के जीवन का निर्माता आचार्य (इदं भुवनम्) = इस भूतग्राम को (विश्वम्) = [सर्व] पूर्ण (जजान) = बनाता है, अर्थात् यह उसके शरीर को स्वस्थ व नीरोग, मन को निर्मल, वासनाशून्य तथा मस्तिष्क को ज्ञानदीप्त बनाता है। शरीर से इसे 'वसु' उत्तम निवासवाला, मन से 'रुद्र' = [रोरूयमाणो द्रवति] प्रभु नामोच्चारणपूर्वक वासनाओं पर आक्रमण करनेवाला तथा मस्तिष्क से 'आदित्य' सब ज्ञानों का आदान करनेवाला बनाता है। इसके मस्तिष्क में 'भारती' का निवास कराता है, मन में 'सरस्वती' का तथा शरीर में 'इडा' का। इस प्रकार आचार्य अपने विद्यार्थियों के जीवन को पूर्ण बनाने का प्रयत्न करता है। ४. इस प्रकार (बहोः कर्त्तारम्) = [ बह् to strengthen, to make firm ] दृढ़ व सबल जीवन का निर्माण करनेवाले इस आचार्य को इह इस ब्रह्मर्चाश्रम में हे (होत:) = आचार्य के प्रति अपना अर्पण करनेवाले विद्यार्थी ! तू (यक्षि) = आदर देनेवाला बन ।
भावार्थ
भावार्थ- आचार्य विद्यार्थी को 'वीर, देवकाम, अर्वा, आशु, अश्व, विश्वं [पूर्ण] व बहु [दृढ़]' बनाये। विद्यार्थी आचार्य के प्रति सदा सन्मान की भावनावाला हो ।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्वान लोक विद्या शिकणाऱ्या जिज्ञासूंना विद्वान करतात त्यांना गतिमान अश्वाप्रमाणे विद्या प्राप्त होते. जगाचा निर्माता ईश्वर ज्याप्रमाणे सर्वांची अनेक प्रकारे व्यवस्था करतो, तसेच अध्यापक व अध्येता यांचे संबंध असावेत.
विषय
पुनश्च, त्याच विषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (होतः) ग्रहण करणार्या मनुष्या, ज्याप्रमाणे (त्वष्टा) विद्यादीगुणांनी सुशोभित एक विद्वान (देवकामम्) विद्वानांची कामना करणार्या (वीरम्) वीर पुरूषाला (जजान) उत्पन्न करतो (ज्ञान, सुशिक्षण आदीने वीरमनुष्याचा निर्माण करतो) (तसे तुम्हीही करा) तसेच जसा (त्वष्टुः) प्रकाश वा प्रशिक्षणाने एक (आशुः) शीघ्रगामी (अर्वा) वेगवान (अश्वः) घोडा तयार होतो, तसेच जसा (त्वष्टा) आपल्या स्वरूपाने प्रकाशित ईश्वर (इदम्) वा (विशतवम्) सर्व (भुवनम्) लोक-लोकांतराला (जजान) उत्पन्न करतो (निर्माण करतो) त्या (बहोः) बहुविध जणाच्या (कर्वारम्) निर्माण कर्त्या परमेश्वराचा (इह) या जगात, हे विद्वान, जसे आपण (यक्षि) पूजन वा उपासना कराल, तसे आम्ही (सर्वजनांनीही) केले पाहिजे. ॥9॥
भावार्थ
भावार्थ -या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. विद्वज्जनांनी विद्याप्राप्तीच्या इच्छुकजनांना विद्यादान करून विद्यावान केले पाहिजे. तसा शिष्य प्रशिक्षित अश्वाप्रमाणे लवकरच विद्या शिकून घेतो. तसेच ज्याप्रमाणे जगनिर्माता परमेश्वर जगाची सर्व व्यवस्था पाहतो वा करतो, तसे अध्यापक आणि अध्येता यांनी व्हावे ॥9॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Just as a learned person, produces a brave son devoted to scholars ; just as a horse learns through instruction how to run fast and remain active ; just as Self-Effulgent God brings to life this universe ; so shouldst thou Priest worship God, the Creator of the world.
Meaning
Tvashta, lord creator, creates and shapes the brave hero, lover and loved of the divines. The bright sun as the windy horse is born of Tvashta. Tvashta it is who creates the entire worlds of the universe. Man of yajna, honour and serve the great creator by yajna — through worship, charity and good fellowship.
Translation
The universal Architect (tvastr) creates the hero devoted to the enlightened ones; from the universal Architect is born the moving, quick-running courser (i. e. the sun); the universal Architect has created all this world; O priest, may you worship Him at this sacrifice, who has created this vast universe. (1)
Notes
Devakāmam, devoted to the enlightened ones;देवान् कामयते यः सः । ऋणत्रयापाकरणसमर्थं, one who is capable of pay ing back the three debts, those of the mother, the father and the preceptor; मातृ, पितृ, आचार्य ऋण । Bahoh, of the multitude; of the vast universe.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥ পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে (হোতঃ) গ্রহণকারী ব্যক্তি ! তুমি যেমন (ত্বষ্টা) বিদ্যা আদি উত্তমগুণ দ্বারা শোভিত বিদ্বান্ (দেবকামম্) বিদ্বান্দিগের কামনাকারী (বীরম্) বীর পুরুষকে (জজান) উৎপন্ন কর যেমন (ত্বষ্টুঃ) প্রকাশরূপ শিক্ষা দ্বারা (আশুঃ) শীঘ্রগামী (অর্বা) বেগবান্ (অশ্বঃ) অশ্ব (জায়তে) হয় । যেমন (ত্বষ্টা) স্বীয় স্বরূপে প্রকাশিত ঈশ্বর (ইদম্) এই (বিশ্বম্) সমস্ত (ভূবনম্) ভুবনমাত্রকে (জজান) উৎপন্ন করে, সেই (বহোঃ) বহুবিধ সংসারের (কর্ত্তারম্) রচনাকারী পরমাত্মার (ইহ) এই জগতে (য়ক্ষি) পূজন কর সেইরূপ আমরাও করি ॥ ঌ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যে সকল বিদ্বান্গণ বিদ্যাকামী মনুষ্যদিগকে বিদ্বান্ করিবে, শীঘ্র যাহার শিক্ষা হইয়াছে সেই অশ্বতুল্য তীব্রবেগে বিদ্যা প্রাপ্ত হয় । যেমন বহু প্রকারের সংসারের স্রষ্টা ঈশ্বর সকলের ব্যবস্থা করেন, সেইরূপ অধ্যাপক ও অধ্যেতা হইবে ॥ ঌ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ত্বষ্টা॑ বী॒রং দে॒বকা॑মং জজান॒ ত্বষ্টু॒রর্বা॑ জায়তऽআ॒শুরশ্বঃ॑ ।
ত্বষ্টে॒দং বিশ্বং॒ ভুব॑নং জজান ব॒হোঃ ক॒র্ত্তার॑মি॒হ য়॑ক্ষি হোতঃ ॥ ঌ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ত্বষ্টেত্যস্য বৃহদুক্থো বামদেব্য ঋষিঃ । ত্বষ্টা দেবতা । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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