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यजुर्वेद अध्याय - 29

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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 46
    ऋषिः - भारद्वाज ऋषिः देवता - वीरा देवताः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    58

    स्वा॒दु॒ष॒ꣳ सदः॑ पि॒तरो॑ वयो॒धाः कृ॑च्छ्रे॒श्रितः॒ शक्तीं॑वन्तो गभी॒राः।चि॒त्रसे॑ना॒ऽइषु॑बला॒ऽअमृ॑ध्राः स॒तोवी॑राऽउ॒रवो॑ व्रातसा॒हाः॥४६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वा॒दु॒ष॒ꣳसदः॑। स्वा॒दु॒स॒ꣳसद इति॑ स्वादुऽस॒ꣳसदः॑। पि॒तरः॑। व॒यो॒धा इति॑ वयः॒ऽधाः। कृ॒च्छ्रे॒श्रित॒ इति॑ कृच्छ्रे॒ऽश्रितः॑। शक्ती॑वन्तः॒। शक्ति॑वन्त॒ इति॒ शक्ति॑ऽवन्तः। ग॒भी॒राः। चि॒त्रसे॑ना॒ इति॑ चि॒त्रऽसे॑नाः। इषु॑बला॒ इतीषु॑ऽबलाः। अमृ॑ध्राः। स॒तोवी॑रा॒ इति॑ स॒तःऽवी॑राः। उ॒रवः॑। व्रा॒त॒सा॒हाः। व्रा॒त॒स॒हा इति॑ व्रातऽस॒हाः ॥४६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वादुषँसदः पितरो वयोधाः कृच्छ्रेश्रितः शक्तीवन्तो गभीराः । चित्रसेनाऽइषुबलाऽअमृध्राः सतोवीराऽउरवो व्रातसाहाः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    स्वादुषꣳसदः। स्वादुसꣳसद इति स्वादुऽसꣳसदः। पितरः। वयोधा इति वयःऽधाः। कृच्छ्रेश्रित इति कृच्छ्रेऽश्रितः। शक्तीवन्तः। शक्तिवन्त इति शक्तिऽवन्तः। गभीराः। चित्रसेना इति चित्रऽसेनाः। इषुबला इतीषुऽबलाः। अमृध्राः। सतोवीरा इति सतःऽवीराः। उरवः। व्रातसाहाः। व्रातसहा इति व्रातऽसहाः॥४६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 46
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे योद्धारो वीरा! यूयं ये स्वादुषंसदो वयोधाः कृच्छ्रेश्रितः शक्तीवन्तो गभीराश्चित्रसेना इषुबला अमृध्रा उरवो व्रातसाहाः सतोवीराः पितरः स्युस्तानाश्रित्य युद्धं कुरुत॥४६॥

    पदार्थः

    (स्वादुषꣳसदः) ये स्वादुषु भोज्याद्यन्नेषु सम्यक् सीदन्ति ते (पितरः) पालनक्षमाः (वयोधाः) ये दीर्घं वयो जीवनं दधति ते (कृच्छ्रेश्रितः) ये कृच्छ्रे कष्टे श्रितः कष्टं सेवमानाः (शक्तीवन्तः) सामर्थ्ययुक्ताः। अत्र छन्दसीरः [अ॰८.२.१५] इति वत्वम्। (गभीराः) अगाधाशयाः (चित्रसेनाः) अद्भुतसैन्याः (इषुबलाः) इषुभिः शस्त्रास्त्रैस्सह बलं सैन्यं येषान्ते (अमृध्राः) अकोमलाङ्गा दृढाङ्गाः (सतोवीराः) सतो विद्यमानस्य सैन्यस्य मध्ये वीराः प्राप्तयुद्धविद्याशिक्षाः (उरवः) विशालजघनोरस्काः (व्रातसाहाः) ये व्रातान् वीराणां समूहान् सहन्ते ते॥४६॥

    भावार्थः

    तेषोमेव सदा विजयो राज्यश्रीः प्रतिष्ठा दीर्घमायुर्बलं विद्याश्च भवन्ति, ये स्वाधिष्ठातॄणामाप्तानां शासने तिष्ठन्ति॥४६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे युद्ध करने हारे वीर पुरुषो! तुम लोग जो (स्वादुषंसदः) भोजन के योग्य अन्नादि पदार्थों को सम्यक् सेवने वाले (वयोधाः) अधिक अवस्था युक्त (कृच्छ्रेश्रितः) उत्तम कार्यों की सिद्धि के लिए कष्ट सेवते हुए (शक्तीवन्तः) सामर्थ्य वाले (गभीराः) महाशय (चित्रसेनाः) आश्चर्य गुण युक्त सेना वाले (इषुबलाः) शस्त्र-अस्त्रों के सहित जिनकी सेना (अमृध्राः) दृढ़ शरीर वाले (उरवः) बड़े-बड़े जिन के जंघा और छाती (व्रातसाहाः) वीरों के समूहों को सहने वाले (सतोवीराः) विद्यमान सेना के बीच युद्धविद्या की शिक्षा को प्राप्त और (पितरः) पालन करनेहारे राजपुरुष हों, उन का आश्रय ले युद्ध करो॥४६॥

    भावार्थ

    उन्हीं का सदा विजय, राज्य, श्री, प्रतिष्ठा, बड़ी अवस्था, बल और विद्या होती है, जो अपने अधिष्ठाता, आप्त, सत्यवादी सज्जनों की शिक्षा में स्थित होते हैं॥४६॥

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    विषय

    शक्तिमान् पालक वीर पुरुषों का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( स्वादु-संसदः ) स्वादु, रसवान्, उत्तम पदार्थों का सब मिलकर आनन्द लाभ करने हारे, अथवा स्वादु, सुख से एक स्थान पर खड़े, ( पितरः) राष्ट्रपालन करने में समर्थ (वयोधाः) बल-वीर्य के धारक (कृच्छ्रेश्रितः) संकट समय में विपत्तियों में रहकर भी ( शक्तिवन्तः) शक्तिमान्, बलवान् या शक्ति नाम अष्टचक्रा तोपों को धारने वाले (गभीराः) गम्भीर स्वभाव, (चित्रसेनाः ) नाना प्रकार की सेनाओं के स्वामी (इपुबलाः) अस्त्रों द्वारा फेंके जाने वाले बाण आदि के बल से सम्पन्न, (अमृध्राः) अहिंसनीय, दृढ़ शरीर, (सतोवीराः) बीच में विद्यमान, अथवा अति वीर पुरुषों से युक्त, (व्रातसाहाः) वीर समूहों को भी पराजय करने में समर्थ (उरवः) विशाल बाहुओं और शरीर वाले हों ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वीराः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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    विषय

    रथ- गोप-रथ-रक्षक सैनिक ( Commanders )

    पदार्थ

    १. सेना के नायकों का 'रथगोप' के नाम से उल्लेख करते हुए कहते हैं कि [क] (स्वादुषंसद:) = [स्वादु सुखं यथा तथा संसीदन्ति ] इनका उठना-बैठना भी माधुर्य को लिये हुए होता है, [ख] (पितरः) = ये रक्षक होते हैं, अपने सैनिकों को पुत्रवत् समझते हैं, [ग] (वयोधाः) = उत्कृष्ट जीवन को धारण करनेवाले होते है। [घ] (कृच्छ्रेश्रितः) = [कृच्छ्रे श्रीयन्ते सेव्यन्ते] कष्ट आने पर इनकी शरण में आया जाता है, [ङ] (शक्तीवन्तः) = सामर्थ्य व आयुधविशेषों से ये सम्पन्न होते है, [च] (गभीराः) = गम्भीरबल व गम्भीर प्रज्ञावाले हैं, [छ] (चित्रसेना:) = नाना प्रकार की सेनावाले हैं, [च] (इषुबला:) = बाणादि अस्त्रों से बलवाले हैं, [झ] (अमृध्राः) = [कठिनाङ्गा अमृदवः] कठिन अङ्गोंवाले हैं अथवा उग्र शासनवाले हैं, [ञ] (सतोवीरा:) = सत्ता व बल से युक्त सेना को विविध दिशाओं में ईरण व प्रेरण करनेवाले हैं। अथवा सज्जन व वीर हैं। (उरवः) = विशाल जघन व उरु प्रदेशवाले हैं। (व्रातसाहा:) = शत्रुओं के समूहों को अभिभूत करनेवाले हैं। २. वस्तुतः ऐसे ही व्यक्ति 'रथगोप' अथवा सेनानायक बनने की योग्यता रखते हैं। वे सेना के पितर कहलाते हैं। वस्तुतः राष्ट्ररक्षक होने से इनका 'पितर' नाम समुचित ही है।

    भावार्थ

    भावार्थ- मन्त्रवर्णित योग्यताओं को धारण करके हम सच्चे 'रथगोप' सेनानायक बनें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जे वीरपुरुष, अधिष्ठाते, आप्त, सत्यवादी सज्जनाकडून शिक्षण घेतात त्यांचा नेहमी विजय होतो व त्यांना राज्य, श्री, प्रतिष्ठा, मानसन्मान, बल आणि विद्या प्राप्त होते.

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    विषय

    पुन्हा, त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे युद्ध करणारे वीर सैनिकहो, (जे महापराक्रमी सैनिक आहेत, त्यांचा तुम्ही अनुकरण करा. ते कसे आहेत? (स्वादुषंसदः) उत्तम अन्न आदी पदार्थांचे सेवन करणारे आणि (वयोधाः) तुमच्यापेक्षा अधिक वयाचे आणि अनुभवी आहेत. (कृच्छ्रेश्रितः) उत्तम कार्यासाठी ते कितीही कष्ट उपसतात, (शक्तीवन्तः) ते सामर्थ्यवान असून (गभीराः) उदारचेता आहेत. (चित्रसेनाः) त्यांच्या जवळ अद्भुत गुणांचा संग्रह असून (इषुबलाः) त्यांची सेना शस्त्र-अस्त्रांनी सुसज्ज आहे. ते (अमृध्राः) दृढ व बलदंड शरीराचे आहेत (उरवः) त्यांची छाती आणि जंघा विशाल असून ते (व्रातसाहाः ) शत्रूच्या आक्रमणाला झेलू शकणारे आहेत. (सतोवीराः) ते विद्यमान सैन्यात सर्वाधिक अनुभवी व प्रशिक्षित आहेत. असे (पितरः) युद्धा प्रसंगी तुमचे रक्षण करणार्‍या राजा वा राजपुरुषांचा तुम्ही आश्रय घ्या. ॥46॥

    भावार्थ

    भावार्थ - ते लोकच सदा विजयी होतात, त्यांचीच श्री, प्रतिष्ठा वाढते, ज्यांच्याजवळ अनुभवी सैन्य आणि आवश्यक युद्ध तंत्रज्ञान असते. तसेच जे लोक (वा सैनिक) आपल्या अधिकार्‍यांच्या आदेशाप्रमाणे, आप्त सत्यवादी लोकांच्या मताप्रमाणे चालतात, तेच विजयी होतात आणि त्यांचेच राज्य वाढते. ॥46॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Let our rulers, be partakers of savoury food, long-lived, patient in adversity, powerful, deep-minded, armed with wondrous army, strong in arrows, robust, possessors of long legs and broad chests, invincible, and conquerors of numerous hosts.

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    Meaning

    Let us honour senior veterans of war, of pleasant company, mature and widely experienced, facing and challenging dangers, strong and brave, serious and wise, commanding wonderful armies, trained in powerful weapons, invincible of body, equally valiant, broad- chested and muscular, and conquering hosts of armies.

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    Translation

    The guards of the chariot, revelling in the savoury spoil, are distributors of food, protectors in calanuly, armed with spears, resolute, beautifully arraved strong in arrows, invincible, of heroic valour, robust and conquerors of numerous hosts. (1)

    Notes

    This verse has no verb. The word pitaraḥ, has been translated as palayitāraḥ; Uvata and Mahidhara both have sug gested that 'ईदृशा नरा अस्माकं रथगोप्तारो भवन्तु' will have to be added to make the meaning complete. Rathagoptāraḥ, defenders of the chariot. Svādu sansadah, स्वादुषु भोज्येषु सीदन्ति ये ते, those who revel in delicious foods. (Dayā. ). Also, those who relish the as semblies. Revelling in savoury spoils. Krcchresriiah, कृच्छ्रे कष्टे श्रीयन्ते सेव्यन्ते ये ते, those who are called upon at the time of difficulties; protectors in calami ties. Saktīvantah, शक्तिः सामर्थ्य आयुधं वा येषां, full of strength, or armed with spears. Gabhīrāḥ, unruffled by reverses; resolute. Amrdhrāḥ,न मृध्रा: मृदव: , hardened (in body and disci pline also). Satovirāḥ, ofheroic valour. Also, fighters in favour ofgood as against evil. Uravah, विशाला:, huge; robust. Vrātasāhāh, व्रातान् शूरसमूहान् सहन्ते अभिभवन्ति ये ते, those who take on and defeat numerous hordes of enemies.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে যুদ্ধরত বীর পুরুষগণ! তোমরা যাহারা (স্বাদুষংসদঃ) ভোজন যোগ্য অন্নাদি পদার্থের সম্যক্ সেবনকারী (বয়োধাঃ) দীর্ঘ আয়ুসম্পন্ন (কৃচ্ছ্রেশ্রিতঃ) উত্তম কার্য্যের সিদ্ধি হেতু কষ্ট সেবন করিয়া (শক্তীবন্তঃ) সামর্থ্যযুক্ত (গভীরাঃ) মহাশয় (চিত্রসেনাঃ) আশ্চর্য্য গুণযুক্ত সেনাসম্পন্ন (ইষুবলাঃ) অস্ত্র-শস্ত্র সহিত যাহার সেনা (অমৃধাঃ) দৃঢ় শরীর সম্পন্ন (উবরঃ) বৃহৎ যাহাদের জঙ্ঘা ও বক্ষ (ব্রাতসাহাঃ) বীরদের সমূহকে সহ্যকারী (সতোবীরাঃ) বিদ্যমান সেনার মধ্যে যুদ্ধবিদ্যার শিক্ষা প্রাপ্ত বীর (পিতরঃ) পালনকারী রাজপুরুষ হয়, তাহাদের আশ্রয় লইয়া যুদ্ধ কর ॥ ৪৬ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–তাহারাই সর্বদা বিজয় রাজ্যশ্রী প্রতিষ্ঠা দীর্ঘায়ু, বল ও বিদ্যা প্রাপ্ত করিয়া থাকে যাহারা স্বীয় অধিষ্ঠাতা আপ্ত সত্যবাদী সজ্জনদিগের শিক্ষায় স্থিত হয় ॥ ৪৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    স্বা॒দু॒ষ॒ꣳ সদঃ॑ পি॒তরো॑ বয়ো॒ধাঃ কৃ॑চ্ছ্রে॒শ্রিতঃ॒ শক্তীং॑বন্তো গভী॒রাঃ ।
    চি॒ত্রসে॑না॒ऽইষু॑বলা॒ऽঅমৃ॑ধ্রাঃ স॒তোবী॑রাऽউ॒রবো॑ ব্রাতসা॒হাঃ ॥ ৪৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    স্বাদুষꣳসদ ইত্যস্য ভারদ্বাজ ঋষিঃ । বীরা দেবতাঃ । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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