अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 107/ मन्त्र 1
सम॑स्य म॒न्यवे॒ विशो॒ विश्वा॑ नमन्त कृ॒ष्टयः॑। स॑मु॒द्राये॑व॒ सिन्ध॑वः ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । अ॒स्य॒ । म॒न्यवे॑ । विश॑: । विश्वा॑: । न॒म॒न्त॒ । कृ॒ष्टय॑: ॥ स॒मु॒द्राय॑ऽइव । सिन्ध॑व: ॥१०७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
समस्य मन्यवे विशो विश्वा नमन्त कृष्टयः। समुद्रायेव सिन्धवः ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । अस्य । मन्यवे । विश: । विश्वा: । नमन्त । कृष्टय: ॥ समुद्रायऽइव । सिन्धव: ॥१०७.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (2)
विषय
१-१२ परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(विश्वाः) सब (विशः) प्रजाएँ और (कृष्टयः) मनुष्य (अस्य) इस [परमेश्वर] के (मन्यवे) तेज वा क्रोध के आगे (सम्) ठीक-ठीक (नमन्त) नमे हैं, (समुद्राय इव) जैसे समुद्र के लिये (सिन्धवः) नदियाँ [नमती हैं] ॥१॥
भावार्थ
जैसे नदियाँ समुद्र की ओर झुकती हैं, वैसे ही सब सृष्टि के पदार्थ और सब मनुष्य परमात्मा की आज्ञा को अवश्य मानते हैं ॥१॥
टिप्पणी
मन्त्र १-३ ऋग्वेद में हैं-८।६।४-६; सामवेद-उ० ८।१। तृच १३; मन्त्र १ साम० पू० २।।३ ॥ १−(सम्) सम्यक् (अस्य) परमेश्वरस्य (मन्यवे) मन्युर्मन्यतेर्दीप्तिकर्मणः क्रोधकर्मणो वा-निरु० १०।२९। तेजसे। क्रोधाय (विशः) प्रजाः (विश्वाः) (नमन्त) नमतेर्लङ्। नमन्ति स्म (कृष्टयः) मनुष्याः (समुद्राय) (इव) यथा (सिन्धवः) स्यन्दनशीला नद्यः ॥
Vishay
…
Padartha
…
Bhavartha
…
English (1)
Subject
Agni Devata
Meaning
The people, in fact the entire humanity, bow in homage and surrender to this lord of passion, power and splendour just as rivers flow on down and join into the sea.
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