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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 107 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 107/ मन्त्र 12
    ऋषिः - बृहद्दिवोऽथर्वा देवता - इन्द्रः छन्दः - भुरिक्परातिजागतात्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-१०७
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    ए॒वा म॒हान्बृ॒हद्दि॑वो॒ अथ॒र्वावो॑च॒त्स्वां त॒न्वमिन्द्र॑मे॒व। स्वसा॑रौ मात॒रिभ्व॑री अरि॒प्रे हि॒न्वन्ति॑ चैने॒ शव॑सा व॒र्धय॑न्ति च ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒व । म॒हान् । बृ॒हत्ऽदि॑व: । अथ॑र्वा । अवो॑चत् । स्वाम् । त॒न्व॑म् । इन्द्र॑म् । ए॒व ॥ स्वसा॑रौ । मा॒त॒रिभ्व॑री॒ इति॑ । अ॒रि॒प्रे इति॑ । हि॒न्वन्ति॑ । च॒ । ए॒ने॒ इति॑ । शव॑सा । व॒र्धय॑न्ति । च॒ ॥१०७.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एवा महान्बृहद्दिवो अथर्वावोचत्स्वां तन्वमिन्द्रमेव। स्वसारौ मातरिभ्वरी अरिप्रे हिन्वन्ति चैने शवसा वर्धयन्ति च ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एव । महान् । बृहत्ऽदिव: । अथर्वा । अवोचत् । स्वाम् । तन्वम् । इन्द्रम् । एव ॥ स्वसारौ । मातरिभ्वरी इति । अरिप्रे इति । हिन्वन्ति । च । एने इति । शवसा । वर्धयन्ति । च ॥१०७.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 107; मन्त्र » 12
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    हिन्दी (1)

    विषय

    १-१२ परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (महान्) महान्, (बृहद्दिवः) बड़े व्यवहारवाले, (अथर्वा) निश्चलस्वभाव पुरुष ने (स्वाम्) अपनी (तन्वम्) विस्तृत स्तुति (इन्द्रम्) परमेश्वर के लिये (एव) ही (एव) इस प्रकार से (अवोचत्) कही है। (मातरिभ्वरी) आकाश में वर्तमान (स्वसारौ) अच्छे प्रकार ग्रहण करनेवाले वा गतिवाले [वा दो बहिनों के समान सहायकारी] दिन और रात (च) और (अरिप्रे) निर्दोष (एने) यह दोनों [सूर्य और पृथिवी] (शवसा) अपने सामर्थ्य से [उसी को] (हिन्वन्ति) प्रसन्न करती (च) और (वर्धयन्ति) सराहती हैं ॥१२॥

    भावार्थ

    हमसे पहिले ऋषियों ने भी उसी परमात्मा की स्तुति की है, और दिन-रात आदि काल और सूर्य पृथिवी आदि सब लोक उसीके आज्ञाकारी हैं ॥१२॥

    टिप्पणी

    ४-१२−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ।२।१-९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Subject

    Agni Devata

    Meaning

    Thus does the sage of boundless light and vision of wisdom with settled mind address his song of adoration to Indra only, and the pure immaculate fluent streams of speech like motherly creations inspire the world and exalt humanity with strength and enthusiasm.

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    Translation

    Thus, the great, highle enlightened man of firm attitude (Atharva) pronounces his comprehnsive prayer and praise to Almighty Divinity alone. In this way the day and night like two sisters present on the earth and these perfect sun and earth with their power please Him and magnify His glory.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४-१२−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ।२।१-९ ॥

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