अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 107/ मन्त्र 13
चि॒त्रं दे॒वानां॑ के॒तुरनी॑कं॒ ज्योति॑ष्मान्प्र॒दिशः॒ सूर्य॑ उ॒द्यन्। दि॑वाक॒रोऽति॑ द्यु॒म्नैस्तमां॑सि॒ विश्वा॑तारीद्दुरि॒तानि॑ शु॒क्रः ॥
स्वर सहित पद पाठचि॒त्रम् । दे॒वाना॑म् । के॒तु: । अनी॑कम् । ज्योति॑ष्मान् । प्र॒ऽदिश॑: । सूर्य॑: । उ॒त्ऽवन् ॥ दि॒वा॒ऽक॒र: । अति॑ । द्यु॒म्नै: । तमां॑सि । विश्वा॑ । अ॒ता॒री॒त् । दु॒:ऽइ॒तानि॑ । शु॒क्र: ॥१०७.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
चित्रं देवानां केतुरनीकं ज्योतिष्मान्प्रदिशः सूर्य उद्यन्। दिवाकरोऽति द्युम्नैस्तमांसि विश्वातारीद्दुरितानि शुक्रः ॥
स्वर रहित पद पाठचित्रम् । देवानाम् । केतु: । अनीकम् । ज्योतिष्मान् । प्रऽदिश: । सूर्य: । उत्ऽवन् ॥ दिवाऽकर: । अति । द्युम्नै: । तमांसि । विश्वा । अतारीत् । दु:ऽइतानि । शुक्र: ॥१०७.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मन्त्र १३-१ परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ
(चित्रम्) अद्भुत (अनीकम्) जीवनदाता [ब्रह्म], (देवानाम्) गतिमान् लोकों के (केतुः) जतानेवाले, (ज्योतिष्मान्) तेजोमय (सूर्यः) सर्वप्रेरक [परमात्मा] (प्रदिशः) सब दिशाओं में (उद्यन्) ऊँचे होते हुए (दिवाकरः) दिन को रचनेवाले [सूर्य रूप], (शुक्रः) वीर्यवान् [परमेश्वर] ने (द्युम्नैः) अपने प्रकाशों से (तमांसि) अन्धकारों को (अति) लाँघकर (विश्वा) सब (दुरितानि) कठिनाइयों को (अतारीत्) पार किया है ॥१३॥
भावार्थ
जैसे यह सूर्य अन्धकार नाश करके दिन बनाकर प्रकाशमान है, वैसे ही वह परमेश्वर सूर्य आदि लोकों को रचकर धारण-आकर्षण द्वारा सबकी रक्षा करता है, वैसे ही मनुष्य विद्या से प्रकाशमान होकर विघ्नों को हटावें ॥१३॥
टिप्पणी
मन्त्र १३, १४ आचुके हैं-अथ० १३।२।३४, ३ ॥ १३, १४−मन्त्रौ व्याख्यातौ-अथर्व० १३।२।३४, ३ ॥
विषय
प्रभुरूप सूर्य का उदय
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार अन्त:स्थित प्रभु को देखने पर यह उपासक अनुभव करता है कि वे प्रभु ही (चित्रम्) = सब ज्ञानों के देनेवाले हैं। (देवानां केतुः) = सब देवों के प्रकाशक हैं [brightness]| सूर्य आदि सब प्रभु द्वारा ही प्रकाशित हो रहे हैं। (अनीकम्) = प्रभु ही बल हैं 'बलं बलवताञ्चाई कामरागविर्जितम्। (ज्योतिष्मान्) = प्रकाशमय हैं। (उद्यन् सूर्य:) = उदय होते हुए-हृदय में प्रादुर्भूत होते हुए-सूर्यसम ज्योतिवाले वे प्रभु (प्रदिश:) = उपासक के लिए मार्ग का निर्देश करनेवाले हैं। २. ये उदय होते हुए प्रभुरूप सूर्य (द्युम्नै:) = ज्ञान-ज्योतियों से (तमांसि) = सब अन्धकारों को (दिवा करोति) = दिन के प्रकाश में परिवर्तित कर देते हैं। (शुक्र:) = [शुच्] वे देदीप्यमान प्रभु (विश्वा दुरितानि) = सब दुरितों को (अतारीत्) = तैर जाते हैं-विध्वस्त कर देते हैं। प्रभु के उदय होते ही सब पापों व अज्ञानों का अन्धकार विलीन हो जाता है।
भावार्थ
प्रभु ही प्रकाश व बल के देनेवाले हैं। प्रभु के हृदय में उदय होते ही सब अशुभवृत्तियों विलीन हो जाती हैं।
भाषार्थ
(देवानाम्) दिव्यप्रकाशों के (चित्रम्) अद्भुत (अनीकम्) समूहरूप, (केतुः) यथार्थ वेत्ता, (ज्योतिष्मान्) ज्योतिर्मय, (प्रदिशः) हृदय-प्रवेश से (उद्यन्) उदित होते हुए (सूर्यः) सूर्यों के सूर्य परमेश्वर ने, (दिवाकरः) मुझ उपासक में प्रकाश पैदा कर दिया है, और (शुक्रः) शुचि परमेश्वर ने (द्युम्नैः) निज द्युतियों द्वारा (तमांसि अति) मेरे तमोगुणों को हटा कर, उनके (विश्वा दुरितानि) समग्र दुष्परिणामों से (तारीत्) तुझे तैरा दिया है, बचा दिया है।
टिप्पणी
[अनीकम्=समूह। केतुः=प्रज्ञानम् (निरु০ १२.१.७) सूर्य के सम्बन्ध में मन्त्र स्पष्टार्थक है।]
विषय
परमेश्वर।
भावार्थ
(१३, १४) दोनों मन्त्रों की व्याखया देखो अथर्व० १३। २। ३४,३५॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१-३ वत्सः, ४-१२ बृहद्दिवोऽथर्वा, १३-१४ ब्रह्मा, १५ कुत्सः। देवता—१-१२ इन्द्र, १३-१५ सूर्यः। छन्दः—१-३ गायत्री, ४-१२,१४,१५ त्रिष्टुप, १३ आर्षीपङ्क्ति॥
इंग्लिश (4)
Subject
Agni Devata
Meaning
Wondrous banner of divinities, life giving, self- refulgent, pure, powerful and radiant harbinger of the day, the inspiring sun, rising over quarters of space, has dispelled all darkness and evils of all the world far out with its radiations of light.
Translation
Bright, presence of luminous bodies, and the brillant herald of this sun mounting the celestial regions, makes the day, dispels the darkness and shining in radiance passes over the places hard to traverse.
Translation
Bright, presence of luminous bodies, and the brilliant herald of this sun mounting the celestial regions, makes the day, dispels the darkness and shining in radiance passes over the places hard to traverse.
Translation
See Atharva, 13.2. 35.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
मन्त्र १३, १४ आचुके हैं-अथ० १३।२।३४, ३ ॥ १३, १४−मन्त्रौ व्याख्यातौ-अथर्व० १३।२।३४, ३ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মন্ত্র ১৩-১ অধ্যাত্মোপদেশঃ
भाषार्थ
(চিত্রম্) অদ্ভুত (অনীকম্) জীবনদাতা [ব্রহ্ম], (দেবানাম্) গতিমান্ লোক-সমূহের (কেতুঃ) জ্ঞাতা/জ্ঞাপক/জ্ঞাপনকারী (জ্যোতিষ্মান্) তেজোময় (সূর্যঃ) সর্বপ্রেরক [পরমাত্মা] (প্রদিশঃ) সব দিশায় (উদ্যন্) উচ্চ হয়ে, (দিবাকরঃ) দিন রচনাকারী [সূর্য রূপ], (শুক্রঃ) বীর্যবান্ [পরমেশ্বর] (দ্যুম্নৈঃ) নিজের প্রকাশ দ্বারা (তমাংসি) অন্ধকার (অতি) অতিক্রম করে (বিশ্বা) সব (দুরিতানি) কঠিন পরিস্থিতি/কষ্ট (অতারীৎ) পার/অতিক্রম করেছেন ॥১৩॥
भावार्थ
যেমন এই সূর্য অন্ধকার নাশ করে দিন সৃষ্টি করে প্রকাশমান, তেমনই সেই পরমেশ্বর সূর্য আদি লোক-সমূহ রচনা করে ধারণ-আকর্ষণ দ্বারা সকলের রক্ষা করেন, তেমনই মনুষ্য বিদ্যা দ্বারা প্রকাশমান হয়ে বিঘ্ন-সমূহ দূর করুক ॥১৩॥
भाषार्थ
(দেবানাম্) দিব্যপ্রকাশ-এর (চিত্রম্) অদ্ভুত (অনীকম্) সমূহরূপ, (কেতুঃ) যথার্থ বেত্তা, (জ্যোতিষ্মান্) জ্যোতির্ময়, (প্রদিশঃ) হৃদয়-প্রবেশ দ্বারা (উদ্যন্) উদীয়মান (সূর্যঃ) সূর্য-সমূহের সূর্য পরমেশ্বর, (দিবাকরঃ) আমার [উপাসকের] মধ্যে প্রকাশ উৎপন্ন করেছেন, এবং (শুক্রঃ) শুচি/পবিত্র পরমেশ্বর (দ্যুম্নৈঃ) নিজ দ্যুতি দ্বারা (তমাংসি অতি) আমার তমোগুণ-সমূহ দূর করে, সেগুলোর (বিশ্বা দুরিতানি) সমগ্র দুষ্পরিণাম থেকে (তারীৎ) আমাকে ত্রাণ করেছেন, উদ্ধার করেছেন।
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