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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 107 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 107/ मन्त्र 4
    ऋषिः - बृहद्दिवोऽथर्वा देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-१०७
    44

    तदिदा॑स॒ भुव॑नेषु॒ ज्येष्ठं॒ यतो॑ ज॒ज्ञ उ॒ग्रस्त्वे॒षनृ॑म्णः। स॒द्यो ज॑ज्ञा॒नो नि रि॑णाति॒ शत्रू॒ननु॒ यदे॑नं॒ मद॑न्ति॒ विश्व॒ ऊमाः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत् । इत् । आ॒स॒ । भुव॑नेषु । ज्येष्ठ॑म् । यत॑: । ज॒ज्ञे । उ॒ग्र: । त्वे॒षऽनृ॑म्ण: ॥ स॒द्य: । ज॒ज्ञा॒न: । नि । रि॒णा॒ति॒ । शत्रू॑न् । अनु॑ । यत् । ए॒न॒म् । मद॑न्ति । विश्वे॑ । ऊमा॑: ॥१०७.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तदिदास भुवनेषु ज्येष्ठं यतो जज्ञ उग्रस्त्वेषनृम्णः। सद्यो जज्ञानो नि रिणाति शत्रूननु यदेनं मदन्ति विश्व ऊमाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तत् । इत् । आस । भुवनेषु । ज्येष्ठम् । यत: । जज्ञे । उग्र: । त्वेषऽनृम्ण: ॥ सद्य: । जज्ञान: । नि । रिणाति । शत्रून् । अनु । यत् । एनम् । मदन्ति । विश्वे । ऊमा: ॥१०७.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 107; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    १-१२ परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (तत्) विस्तीर्ण ब्रह्म (इत्) ही (भुवनेषु) लोकों के भीतर (ज्येष्ठम्) सबमें उत्तम और सबमें बड़ा (आस) प्रकाशमान हुआ। (यतः) जिस [ब्रह्म] से (उग्रः) तेजस्वी (त्वेषनृम्णः) तेजोमय बल वा धनवाला पुरुष (जज्ञे) प्रकट हुआ। (सद्यः) शीघ्र (जज्ञानः) प्रकट होकर (शत्रून्) गिरानेवाले विघ्नों को (नि रिणाति) नाश कर देता है, (यत्) जिससे (एनम् अनु) इस [परमात्मा] के पीछे-पीछे (विश्वे) सब (ऊमाः) परस्पर रक्षक लोग (मदन्ति) हर्षित होते हैं ॥४॥

    भावार्थ

    आदि कारण परमात्मा की उपासना से मनुष्य वीर होकर शत्रुओं को मारता है, जिसके कारण सब लोग प्रसन्न होते हैं, उस जगदीश्वर की उपासना सब लोग किया करें ॥४॥

    टिप्पणी

    मन्त्र ४-१२ आ चुके हैं-अथ० ।२।१-९ ॥ ४-१२−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ।२।१-९ ॥

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    विषय

    ज्येष्ठ ब्रह्म

    पदार्थ

    १. (तत्) = वे ब्रह्म (इत्) = ही (भुवनेषु) = सब भुवनों में सम्पूर्ण ब्राह्माण्ड में (ज्येष्ठं आस) = सर्वश्रेष्ठ हैं। (यत:) = जिस ब्रह्म से (उन:) = तेजस्वी (त्वेषनम्ण:) = दीप्त बलवाला यह आदित्य (जज्ञे) = उत्पन्न हुआ है। प्रभु इस लोक में देदीप्यमान सूर्य को उदित करते हैं। इसी प्रकार हमारे मस्तिष्करूप द्यलोक में भी ज्ञान का सूर्य प्रभु के द्वारा उदित किया जाता है। २. यह सूर्य (जज्ञान:) = प्रादुर्भूत होता हुआ (सद्यः) = शीघ्र ही (शत्रून्) = शत्रुभूत अन्धकारों को (निरिणाति) = नष्ट करता है। मस्तिष्क में उदित होनेवाला ज्ञानसूर्य अज्ञानान्धकार को नष्ट करनेवाला होता है। अज्ञानान्धकार के नाश के द्वारा (विश्वे ऊमा:) = अपना रक्षण करनेवाले सब प्राणी (यम्) = जिसके (अनुमदन्ति) = पीछे उल्लास का अनुभव करते हैं। जितना-जितना प्रभु का उपासन करते हैं, उतना-उतना एक रस का अनुभव लेते है।

    भावार्थ

    प्रभु के उपासन से ज्ञानसूर्य का उदय होता है-वासनान्धकार का विनाश होता है और प्रभु-प्राप्ति के आनन्द का अनुभव होता है।

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    भाषार्थ

    (तत्) वह ब्रह्म (इत्) ही (भुवनेषु) समग्र संसार में (ज्येष्ठम्) सब से बड़ी शक्तिरूप में (आस) सदा रहा है, (यतः) जिस ब्रह्म से कि (उग्रः) तेजस्वी (त्वेषनृम्णः) दीप्ति-धनवाला सूर्य (जज्ञे) उत्पन्न हुआ है। वह ब्रह्म (जज्ञानः) हृदय में प्रकट होकर (सद्यः) तत्काल (शत्रून्) पाप-शत्रुओं की (नि रिणाति) नितरां हिंसा कर देता है, (विश्वे ऊमाः) संसार की सब रक्षक शक्तियाँ (यद् एनम्) चूंकि इसी ब्रह्म की (अनु) निरन्तर (मदन्ति) स्तुतियाँ कर रही हैं। [ऊमाः=अव् रक्षणे।]

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    विषय

    परमेश्वर।

    भावार्थ

    (४-१२) ये ९ मन्त्र देखो अथर्व० का० ५। २। १-९॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१-३ वत्सः, ४-१२ बृहद्दिवोऽथर्वा, १३-१४ ब्रह्मा, १५ कुत्सः। देवता—१-१२ इन्द्र, १३-१५ सूर्यः। छन्दः—१-३ गायत्री, ४-१२,१४,१५ त्रिष्टुप, १३ आर्षीपङ्क्ति॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Agni Devata

    Meaning

    That Indra, Brahma, is the first and highest among all the worlds in existence, of which, as the original cause, is born the blazing, refulgent potent sun which, always rising every moment, destroys the negativities which damage life and by which all positive and protective powers and people of the world rejoice and celebrate life.

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    Translation

    This Supreme Being along is pre-eminent power in all the worlds and from his efficiency springs up powerful sun with splendid valour. As soon as it comes into existence it overcome the forces working contrarily as all the protective forces co-operate it.

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    Translation

    This Supreme Being along is pre-eminent power in all the worlds and from his efficiency springs up powerful sun with splendid valour. As soon as it comes into existence it overcome the forces working contrarily as all the protective forces co-operate it.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र ४-१२ आ चुके हैं-अथ० ।२।१-९ ॥ ४-१२−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ।२।१-९ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ১-১২ পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (তৎ) বিস্তীর্ণ ব্রহ্ম (ইৎ)(ভুবনেষু) লোক সমূহের ভেতর (জ্যেষ্ঠম্) সবথেকে উত্তম ও সবথেকে বড়ো (আস) প্রকাশমান হয়েছেন। (যতঃ) যে ব্রহ্ম থেকে (উগ্রঃ) তেজস্বী (ত্বেষনৃম্ণঃ) তেজোময় বল বা ধনবান পুরুষ (জজ্ঞে) প্রকট হয়েছে। (সদ্যঃ) শীঘ্র (জজ্ঞানঃ) প্রকট হয়ে (শত্রূন্) পতিতকারী বিঘ্ন-সমূহ (নি রিণাতি) নাশ করেন। (যৎ) যার ফলে (এনম্ অনু) এই [পরমাত্মার] পেছনে পেছনে (বিশ্বে) সব (ঊমাঃ) পরস্পর রক্ষক মনুষ্য (মদন্তি) হর্ষিত হয় ॥৪॥

    भावार्थ

    আদি কারণ পরমাত্মার উপাসনার মাধ্যমে মনুষ্য বীর হয়ে শত্রুদের হনন করে যার ফলে সমস্ত মনুষ্য প্রসন্ন হয়। সেই জগদীশ্বরের উপাসনা সব মনুষ্য করুক ॥৪॥

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    भाषार्थ

    (তৎ) সেই ব্রহ্ম (ইৎ)(ভুবনেষু) সমগ্র সংসারে (জ্যেষ্ঠম্) সবথেকে বড়ো শক্তিরূপে (আস) সদা বিদ্যমান/বর্তমান, (যতঃ) যে ব্রহ্ম থেকে/দ্বারা (উগ্রঃ) তেজস্বী (ত্বেষনৃম্ণঃ) দীপ্তি-ধনসম্পন্ন সূর্য (জজ্ঞে) উৎপন্ন হয়েছে। সেই ব্রহ্ম (জজ্ঞানঃ) হৃদয়ে প্রকট হয়ে (সদ্যঃ) তৎকাল (শত্রূন্) পাপ-শত্রুদের (নি রিণাতি) নিরন্তর হিংসা করেন, (বিশ্বে ঊমাঃ) সংসারের সকল রক্ষক শক্তি (যদ্ এনম্) যদ্যপি এই ব্রহ্মের (অনু) নিরন্তর (মদন্তি) স্তুতি করছে। [ঊমাঃ=অব্ রক্ষণে।]

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