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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 19
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मधु, अश्विनौ छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - मधु विद्या सूक्त
    75

    अश्वि॑ना सार॒घेण॑ मा॒ मधु॑नाङ्क्तं शुभस्पती। यथा॒ वर्च॑स्वतीं॒ वाच॑मा॒वदा॑नि॒ जनाँ॒ अनु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अश्वि॑ना । सा॒र॒घेण॑ । मा॒ । मधु॑ना । अ॒ङ्क्त॒म् । शु॒भ॒: । प॒ती॒ इति॑ । यथा॑ । वर्च॑स्वतीम् । वाच॑म् । आ॒ऽवदा॑नि । जना॑न् । अनु॑ ॥१.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्विना सारघेण मा मधुनाङ्क्तं शुभस्पती। यथा वर्चस्वतीं वाचमावदानि जनाँ अनु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अश्विना । सारघेण । मा । मधुना । अङ्क्तम् । शुभ: । पती इति । यथा । वर्चस्वतीम् । वाचम् । आऽवदानि । जनान् । अनु ॥१.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 19
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (शुभः) शुभ कर्म के (पती) पालन करनेवाले (अश्विना) हे चतुर माता-पिता ! (सारघेण) सार अर्थात् बल वा धन के पहुँचानेवाले (मधुना) ज्ञान से (मा) मुझको (अङ्क्तम्) प्रकाशित करो, (यथा) जिससे (जनान् अनु) मनुष्यों के बीच (वर्चस्वतीम्) तेजोमयी (वाचम्) वाणी को (आवदानि) मैं बोला करूँ ॥१९॥

    भावार्थ

    मनुष्य माता-पिता आदि सज्जनों से सुशिक्षा प्राप्त करके सत्य सार वचन बोलें ॥१९॥ यह मन्त्र भेद से आ चुका है-अ० ६।६९।२ ॥

    टिप्पणी

    १९−(सारघेण) अ० ६।६९।२। सारं घाटयति संग्राहयतीति सारघः। सारस्य बलस्य धनस्य वा संग्राहकेण। (मधुना) ज्ञानेन (अङ्क्तम्) प्रकाशयतम् (वर्चस्वतीम्) तेजोमयीम्। अन्यद् व्याख्यातम् अ० ६।६९।˜२ ॥

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    विषय

    सारण मधुना

    पदार्थ

    १. हे (शुभस्पती) = हमारे जीवनों में शुभ का रक्षण करनेवाले (अश्विना) = प्राणापानो! (मा) = मुझे सारण (मधना) = [सारं धारयति संग्राहयति] सार को प्राप्त करानेवाले मधुर ज्ञान से (अंक्तम) = अलंकृत कीजिए अथवा मधुमक्षिकाओं से संगृहीत [सारघ] मधु से अलंकृत कीजिए। (यथा) = जिससे (जनान् अनु) = लोगों के प्रति (वर्चस्वतीं वाचम् आवदानि) = तेजस्विनी वाणी को बोलूँ। मेरी वाणी में भी वैसा ही माधुर्य हो जैसाकि 'सारष मधु' में है।

    भावार्थ

    प्राणसाधना द्वारा ज्ञानी बनकर मैं मधुर व तेजस्विनी वाणी ही बोलूँ।

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    भाषार्थ

    (शुभस्पती) शुभकर्मों के स्वामी (अश्विना) हे अश्वियों ! (सारघेण) मधुमक्षिका के (मधुना) मधु द्वारा (मा) मुझे (आङ्क्तम्) लीप दो, या कान्तियुक्त कर दो (यथा) ताकि (जनान् अनु) प्रजाजनों को लक्ष्य करके (वर्चस्वतीम् वाचम्) वर्चस् वाली वाणी (आवदानि) सर्वत्र मैं बोला करूं।

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    विषय

    मधुकशा ब्रह्मशक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    (शुभः पती) ज्ञान के स्वामी, परिपालक (अश्विनौ) माता पिता तथा गुरु और परमेश्वर दोनों, (मा) मुझे (सारघेण मधुना) सरघा अर्थात् मधुमक्षिका द्वारा संगृहीत मधु के समान मधुर अथवा सारभूत ज्ञान के निचोड़ परम तत्व से अर्थात् ब्रह्मज्ञान से (अंक्तम्) युक्त करें। (यथा) जिससे मैं (जनान् अनु) मनुष्यों के प्रति (वर्चस्वतीम्) ज्ञान और बल से युक्त ओजस्विनी (वाचम्) वाणी को (आ वदानि) बोला करूं। देखो व्याख्या [ का० ६। ६९। २]।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘यथा भर्गस्वतीं’ इति अथर्व० [ का० ६। ६९। २॥ ]।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मधुकशा, अश्विनौ च देवताः। मधुसूक्तम्। १, ४, ५ त्रिष्टुभः। २ त्रिष्टुब्गर्भापंक्तिः। ३ पराऽनुष्टुप्। ६ यवमध्या अतिशाक्वरगर्भा महाबृहती। ७ यवमध्या अति जागतगर्भा महाबृहती। ८ बृहतीगर्भा संस्तार पंक्तिः। १० पराउष्णिक् पंक्तिः। ११, १३, १५, १६, १८, १९ अनुष्टुभः। १४ पुर उष्णिक्। १७ उपरिष्टाद् बृहती। २० भुरिग् विस्तारपंक्तिः २१ एकावसाना द्विपदा आर्ची अनुष्टुप्। २२ त्रिपदा ब्राह्मी पुर उष्णिक्। २३ द्विपदा आर्ची पंक्तिः। २४ त्र्यवसाना षट्पदा अष्टिः। ९ पराबृहती प्रस्तारपंक्तिः॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Madhu Vidya

    Meaning

    Let the Ashvins, complementary harbingers of auspicious good fortune consecrate me with the sweets of honey bees so that I may speak to people in a language full of sweetness, light and the power of love.

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    Translation

    O twin-divines, lords of beauty, anoint me with the honey of bees, (Saragha) that I may speak -brilliant words among the people. (See also. Av. VI.69.3)

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    Translation

    Let father and mother make us provisioned with honey prepared by bees, so that I may speek the word of splendor and strength amongst the men.

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    Translation

    O God and teacher, Lords of light, equip me with knowledge, the bestower of wealth and strength, that I may speak among the folk words full of splendor and strength.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १९−(सारघेण) अ० ६।६९।२। सारं घाटयति संग्राहयतीति सारघः। सारस्य बलस्य धनस्य वा संग्राहकेण। (मधुना) ज्ञानेन (अङ्क्तम्) प्रकाशयतम् (वर्चस्वतीम्) तेजोमयीम्। अन्यद् व्याख्यातम् अ० ६।६९।˜२ ॥

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