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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 7
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मधु, अश्विनौ छन्दः - अतिजागतगर्भा यवमध्या महाबृहती सूक्तम् - मधु विद्या सूक्त
    59

    स तौ प्र वे॑द॒ स उ॒ तौ चि॑केत॒ याव॑स्याः॒ स्तनौ॑ स॒हस्र॑धारा॒वक्षि॑तौ। ऊर्जं॑ दुहाते॒ अन॑पस्पुरन्तौ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । तौ । प्र । वे॒द॒ । स: । ऊं॒ इति॑ । तौ । चि॒के॒त॒ । यौ । अ॒स्या॒: । स्तनौ॑ । स॒हस्र॑ऽधारौ । अक्षि॑तौ । ऊर्ज॑म् । दु॒हा॒ते॒ इति॑ । अन॑पऽस्फुरन्तौ ॥१.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स तौ प्र वेद स उ तौ चिकेत यावस्याः स्तनौ सहस्रधारावक्षितौ। ऊर्जं दुहाते अनपस्पुरन्तौ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । तौ । प्र । वेद । स: । ऊं इति । तौ । चिकेत । यौ । अस्या: । स्तनौ । सहस्रऽधारौ । अक्षितौ । ऊर्जम् । दुहाते इति । अनपऽस्फुरन्तौ ॥१.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (सः) वह [विद्वान्] (तौ) उन दोनों को (प्र वेद) अच्छ प्रकार जानता है, (सः उ) उसने ही (तौ) उन दोनों को (चिकेत) समझा है, (यौ) जो दोनों (अस्याः) इस [मधुकशा] के (स्तनौ) स्तनरूप [धारण आकर्षण गुण] (सहस्रधारौ) सहस्रों धारण शक्तिवाले, (अक्षितौ) अक्षय और (अनपस्फुरन्तौ) निश्चल होकर (ऊर्जम्) बल को (दुहाते) परिपूर्ण करते हैं ॥७॥

    भावार्थ

    विद्वान् पुरुष वेद द्वारा धारण आकर्षण गुण प्राप्त करके बल बढ़ाते हैं ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(सः) ब्रह्मा (तौ) स्तनौ (अस्याः) मधुकशायाः (स्तनौ) स्तनरूपौ धारणाकर्षणगुणौ (सहस्रधारौ) बहुधारणसामर्थ्ययुक्तौ (अक्षितौ) अक्षीणौ (ऊर्जम्) बलम् (दुहाते) प्रपूरयतः (अनपस्फुरन्तौ) स्फुर संचलने-शतृ। निश्चलन्तौ ॥

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    विषय

    'सहस्रधारौ अक्षितौ' स्तनौ

    पदार्थ

    १. इस मधुकशा [वेदधेनु] के दो स्तन हैं। एक स्तन प्रकृति का ज्ञानदुग्ध देता है तो दूसरा आत्मतत्व का ज्ञानदुग्ध प्राप्त कराता है। (यौ) = जो (अस्याः) = इस वेदधेनु के (स्तनौ) = ज्ञानदुग्ध देनेवाले स्तन हैं, वे (सहस्त्रधारौ) = हज़ारों प्रकार से हमारा धारण करनेवाले हैं और (अक्षितौ) = हमें क्षीण न होने देनेवाले हैं। ये स्तन हममें (ऊर्जं दुहाते) = बल व प्राणशक्ति का प्रपूरण करते है तथा (अनपस्फुरन्तौ) = [स्फुर सञ्चलने, riot refusing to be milked] सदा ज्ञानदुग्ध देनेवाले हैं। २. (य:) = वह गतमन्त्र का 'सुमेधा ब्रह्मा' ही (तौ प्रवेद) = वेदधेनु के उन स्तनों को प्रकर्षेण जाननेवाला है, (उ) = और (स:) = वह ही (तौ चिकेत) = उनमें निवास करता है अथवा उनसे ज्ञानदुग्ध प्राप्त करता है।

    भावार्थ

    वेदधेन के दोनों स्तन हमें ज्ञान देकर हजारों प्रकार से हमारा धारण करते हैं। वे हमें क्षीण नहीं होने देते, हममें बल व प्राणशक्ति का प्रपूरण करते हैं, सदा ज्ञानदुग्ध देते हैं। सुमेधा ब्रह्मा ही इन्हें जानता है और इनसे ज्ञानदुग्ध प्राप्त करता है।

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    भाषार्थ

    (सः) यह सुमेधाः ब्रह्मा (तौ) इन दो को (प्रवेद) ठीक तरह से जानता है, (स उ) वह ही (तौ) उन दो को (चिकेत) विवेकपूर्वक जानता है (यौ अस्याः स्तनौ) जो दो स्तन इस पारमेश्वरी माता के हैं, जो कि (सहस्रधारौ) हजारों का धारण-पोषण करते, (आक्षितौ) और क्षीण नहीं होते, और जो (अनपस्फुरन्तौ) बिना रुकावट (उर्जम्) बलकारी तथा प्राणप्रद अन्नरूपी दुग्ध (दुहाते) प्रदान करते हैं।

    टिप्पणी

    [स्तनौ= ये दो स्तन हैं संसाररूपी तथा मोक्षरूपी दो स्तन। संसार-रूपी स्तन तो भोगियों के भोगरूप हैं, जिन में कि संसारी मस्त रहते हैं, और मोक्षरूपी स्तन मुक्तात्माओं को आनन्दरसरूपी दुग्ध पिलाते हैं। कहा है "भोगापवर्गार्थम्, वृश्यम्” (योग २।१८)। भोग है सांसारिक भोगियों के लिये, और अपवर्ग हैं मुक्तात्माओं के लिये। ऊर्जम्= ऊर्ज बलप्राणनयोः = (चुरादिः), ऊर्क् अन्ननाम (निघं० २।७)। भोग और अपवर्ग विश्वरूप है, और यह पारमेश्वरी माता का पयः है, दुग्ध है (मन्त्र २)]

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    विषय

    मधुकशा ब्रह्मशक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    (यौ) जो (अस्याः) इस मधुकशा के (सहस्रधारौ) सहस्रधारा वाले, सहस्रों जीवों के धारण, पालन, पोषण में समर्थ, (अक्षितौ) अक्षय (स्तनौ) दो स्तन हैं (तौ) उन दोनों को (सः) वह ब्रह्मवेत्ता (प्र वेद) भली प्रकार से जानता है और (स उ) वह ही (तौ) उन दोनों को (चिकेत) विवेक से निश्चयपूर्वक प्राप्त करता है। वे दोनों (अनपस्फुरन्तौ) निष्प्रकम्प, निश्चल भाव से विद्यमान, अविनाशी होकर (ऊर्जम्) अन्न और बलकारक रस या शक्ति को (दुहाते) प्रदान करते हैं। प्रकृति और विकृति ये ही दो स्तन हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मधुकशा, अश्विनौ च देवताः। मधुसूक्तम्। १, ४, ५ त्रिष्टुभः। २ त्रिष्टुब्गर्भापंक्तिः। ३ पराऽनुष्टुप्। ६ यवमध्या अतिशाक्वरगर्भा महाबृहती। ७ यवमध्या अति जागतगर्भा महाबृहती। ८ बृहतीगर्भा संस्तार पंक्तिः। १० पराउष्णिक् पंक्तिः। ११, १३, १५, १६, १८, १९ अनुष्टुभः। १४ पुर उष्णिक्। १७ उपरिष्टाद् बृहती। २० भुरिग् विस्तारपंक्तिः २१ एकावसाना द्विपदा आर्ची अनुष्टुप्। २२ त्रिपदा ब्राह्मी पुर उष्णिक्। २३ द्विपदा आर्ची पंक्तिः। २४ त्र्यवसाना षट्पदा अष्टिः। ९ पराबृहती प्रस्तारपंक्तिः॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Madhu Vidya

    Meaning

    He, Brahma, would know, perceive and apprehend the two inexhaustible founts of a thousand streams which flow uninterrupted and shower the inexhaustible energy and ecstasy of life for the one that can see.

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    Translation

    He knows those two for sure. He speculates about those two, which are her two breaths, thousands-streamed and everinexhausted. Those two yield vigour without any resistence.

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    Translation

    Only he understands and he perceives those two breast (the word and meaning) of this speech which are full of thousands of knowledge streams, which are inexhaustible and permanent and which yield strength and vigor.

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    Translation

    A learned man alone knows and fully understands the two inexhaustible powers of Vedic knowledge, which nourish thousands of souls, Those immortal powers yield strength and vigor.

    Footnote

    Two powers: Retention and Attraction. These powers have been spoken of as teats. Just as the teats of a cow yield milk, so do these yield strength. Pt. Jaidev interprets these two teats as Prakriti and Vikrati. The Vedas retain knowledge, and attract scholars and sages to study and spread them. (Prakriti and Vikrati).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(सः) ब्रह्मा (तौ) स्तनौ (अस्याः) मधुकशायाः (स्तनौ) स्तनरूपौ धारणाकर्षणगुणौ (सहस्रधारौ) बहुधारणसामर्थ्ययुक्तौ (अक्षितौ) अक्षीणौ (ऊर्जम्) बलम् (दुहाते) प्रपूरयतः (अनपस्फुरन्तौ) स्फुर संचलने-शतृ। निश्चलन्तौ ॥

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