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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 23
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मधु, अश्विनौ छन्दः - द्विपदार्ची पङ्क्तिः सूक्तम् - मधु विद्या सूक्त
    58

    मधु॑मान्भवति॒ मधु॑मदस्याहा॒र्यं भवति। मधु॑मतो लो॒काञ्ज॑यति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मधु॑ऽमान् । भ॒व॒ति॒ । मधु॑ऽमत् । अ॒स्य॒ । आ॒ऽहा॒र्य᳡म् । भ॒व॒ति॒ । मधु॑ऽमत: । लो॒कान् । ज॒य॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥१.२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मधुमान्भवति मधुमदस्याहार्यं भवति। मधुमतो लोकाञ्जयति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मधुऽमान् । भवति । मधुऽमत् । अस्य । आऽहार्यम् । भवति । मधुऽमत: । लोकान् । जयति । य: । एवम् । वेद ॥१.२३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 23
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    [वह पुरुष] (मधुमान्) ज्ञानवान् (भवति) होता है, (अस्य) उसका (आहार्यम्) ग्राह्य कर्म (मधुमत्) ज्ञानयुक्त (भवति) होता है, [वह] (मधुमतः) ज्ञानवाले (लोकान्) लोकों [स्थानों] को (जयति) जीत लेता है, (यः एवम् वेद) जो ऐसा जानता है ॥२३॥

    भावार्थ

    ब्रह्मनिष्ठ पुरुष ब्रह्म को सब में साक्षात् करके आनन्दित होता है ॥२३॥

    टिप्पणी

    २३−(मधुमान्) ज्ञानवान् (मधुमत्) ज्ञानमयम् (अस्य) ज्ञानिनः (आहार्यम्) आ+हृञ् स्वीकारे−ण्यत्। ग्राह्यं कर्म (मधुमतः) ज्ञानवतः (लोकान्) समाजान् (जयति) उत्कर्षेण प्राप्नोति। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    मधुमान्

    पदार्थ

    १. (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार वेदवाणी के सप्त मधुओं को जान लेता है वह (मधुमान भवति) = प्रशस्त माधुर्यवाला होता है। (अस्य आहार्यं मधुमत् भवति) = इसका भोजन भी अत्यन्त मधुरता को लिये हुए होता है। यह कट-तिक्त वस्तुओं का प्रयोग नहीं करता रहता। यह (मधुमतः लोकान् जयति) = माधुर्यवाले लोकों को जीतता है-आनन्दप्रद लोकों को प्राप्त करता है।

    भावार्थ

    वेदवाणी के सात मधुओं को जानकर उनका ठीक प्रयोग व व्यवहार करता हुआ साधक मधुर जीवनवाला, मधुर आहारवाला व मधुमान् लोकों का विजेता होता है।

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    भाषार्थ

    (यः) जो [मुख्याधिकारी] (एवम् वेद) इस प्रकार [राष्ट्रशासन के तत्त्वों को] (वेद) जानता है वह (मधुमान् भवति) इन मधुओं का स्वामी हो जाता है। (अस्य) इसके [राष्ट्र का] (आहार्यम्] खान-पान (मधुमत् भवति) मधुबाला हो जाता है। वह मुख्याधिकारी (मधुमतः लोकान्) इन मधुओं से सम्पन्न हुए माण्डलिक राष्ट्रों पर (जयति) विजय पा लेता है

    टिप्पणी

    [मन्त्र में इन्द्र सम्राट्], और वरुण [माण्डलिक राजाओं] के साम्राज्य और माण्डलिक राष्ट्रों का वर्णन हुआ है]

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    विषय

    मधुकशा ब्रह्मशक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    (य एवं वेद) जो इस प्रकार के रहस्य को जान लेता है वह (मधुमान् भवति) मधुमानू, मधुमय, मधुर प्रकृति का हो जाता है। (अस्य) इस पुरुष का (आहार्यम्) भोजन भी (मधुमत्) मधुर पदार्थों से युक्त (भवति) होता है। वह (मधुमतः) मधु के समान आनन्दप्रद, सुखमय (लोकान्) लोकों पर (जयति) वश कर लेता है, उन में यथेच्छ निवास करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मधुकशा, अश्विनौ च देवताः। मधुसूक्तम्। १, ४, ५ त्रिष्टुभः। २ त्रिष्टुब्गर्भापंक्तिः। ३ पराऽनुष्टुप्। ६ यवमध्या अतिशाक्वरगर्भा महाबृहती। ७ यवमध्या अति जागतगर्भा महाबृहती। ८ बृहतीगर्भा संस्तार पंक्तिः। १० पराउष्णिक् पंक्तिः। ११, १३, १५, १६, १८, १९ अनुष्टुभः। १४ पुर उष्णिक्। १७ उपरिष्टाद् बृहती। २० भुरिग् विस्तारपंक्तिः २१ एकावसाना द्विपदा आर्ची अनुष्टुप्। २२ त्रिपदा ब्राह्मी पुर उष्णिक्। २३ द्विपदा आर्ची पंक्तिः। २४ त्र्यवसाना षट्पदा अष्टिः। ९ पराबृहती प्रस्तारपंक्तिः॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Madhu Vidya

    Meaning

    Whoever knows the seven honey sweets of life becomes master of honey. Whatever he gets becomes honey sweet. Such a man of honey, who knows the secret of honey, wins over all regions and stages of life.

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    Translation

    He becomes rich in sweetness; his possessions becomes full of sweetness; he wins the worlds of sweetness, he who knows this.

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    Translation

    He who knows this becomes the man. of sweet nature, his food etc are also rich with sweetness and he conquers to attain the worlds which are filled with sweetness and bliss. i..e. the state of salvation.

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    Translation

    Who knows the secret of God’s power, becomes wise. His food becomes sweet and delicious. He masters comfortable places and lives conveniently in them.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २३−(मधुमान्) ज्ञानवान् (मधुमत्) ज्ञानमयम् (अस्य) ज्ञानिनः (आहार्यम्) आ+हृञ् स्वीकारे−ण्यत्। ग्राह्यं कर्म (मधुमतः) ज्ञानवतः (लोकान्) समाजान् (जयति) उत्कर्षेण प्राप्नोति। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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