अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 9/ मन्त्र 7
सूक्त - काङ्कायनः
देवता - अर्बुदिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
प्र॑तिघ्ना॒नाश्रु॑मु॒खी कृ॑धुक॒र्णी च॑ क्रोशतु। वि॑के॒शी पुरु॑षे ह॒ते र॑दि॒ते अ॑र्बुदे॒ तव॑ ॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒ति॒ऽघ्ना॒ना । अ॒श्रु॒ऽमु॒खी । कृ॒धु॒ऽक॒र्णी । च॒ । क्रो॒श॒तु॒ । वि॒ऽके॒शी । पुरु॑षे । ह॒ते । र॒दि॒ते । अ॒र्बु॒दे॒ । तव॑ ॥११.७॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रतिघ्नानाश्रुमुखी कृधुकर्णी च क्रोशतु। विकेशी पुरुषे हते रदिते अर्बुदे तव ॥
स्वर रहित पद पाठप्रतिऽघ्नाना । अश्रुऽमुखी । कृधुऽकर्णी । च । क्रोशतु । विऽकेशी । पुरुषे । हते । रदिते । अर्बुदे । तव ॥११.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 9; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
(अर्बुदे) हे हिंसा करने वाले सेनापति! (तव रदिते) तेरे काटने पर (पुरुष हते) पुरुष के मर जाने पर [उस की पत्नी] (प्रतिघ्नाना) छाती पीटती हुई, (अश्रुमुखी) मुख पर आसुओं वाली, (कृधुकर्णी) हलके कानों वाली, (विकेशी) और बिखरे केशों वाली होकर (क्रोशतु) चिल्लाएं।
टिप्पणी -
[कृधु= ह्रस्वनाम (निरुक्त ६।१।३), दुःख के कारण कर्णाभूषण उतार लेने पर हलके कानों वाली। रदित = काटना, तलवार, कुल्हाड़े, बाण द्वारा (मन्त्र १)। रदिते= रद्= To split, rend (आप्टे)]