अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 71/ मन्त्र 2
स॑मो॒हे वा॒ य आश॑त॒ नर॑स्तो॒कस्य॒ सनि॑तौ। विप्रा॑सो वा धिया॒यवः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठस॒म्ऽओ॒हे । वा॒ । ये । आश॑त । नर॑: । तो॒कस्य॑ । सनि॑तौ ॥ विप्रा॑स: । वा॒ । धि॒या॒ऽयव॑: ॥७१.२॥
स्वर रहित मन्त्र
समोहे वा य आशत नरस्तोकस्य सनितौ। विप्रासो वा धियायवः ॥
स्वर रहित पद पाठसम्ऽओहे । वा । ये । आशत । नर: । तोकस्य । सनितौ ॥ विप्रास: । वा । धियाऽयव: ॥७१.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 71; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(तोकस्य) सन्तान की (सनितौ) प्राप्ति हो जाने पर, (नरः) साधारण नर-नारियाँ, (समोहे) मोहमय गृहस्थ में (आशत) पड़े रहते हैं। (वा) परन्तु (ये) जो (विप्रासः=विप्राः) मेधावी नर-नारियाँ हैं, वे (धियायवः) प्रज्ञा और कर्मों द्वारा प्रगति करते रहते हैं, अर्थात् आश्रम से आश्रमान्तर में जाते रहते हैं।
टिप्पणी -
[धियायवः=धिया+अय् (गतौ)। वा=समुच्चयार्थः।]