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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 71

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 71/ मन्त्र 3
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७१

    यः कु॒क्षिः सो॑म॒पात॑मः समु॒द्र इ॑व॒ पिन्व॑ते। उ॒र्वीरापो॒ न का॒कुदः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । कु॒क्षि: । सो॒म॒ऽपात॑म: । स॒मु॒द्र:ऽइ॑व । पिन्व॑ते ॥ उ॒र्वी: । आप॑: । न । का॒कुद॑: ॥७१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यः कुक्षिः सोमपातमः समुद्र इव पिन्वते। उर्वीरापो न काकुदः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । कुक्षि: । सोमऽपातम: । समुद्र:ऽइव । पिन्वते ॥ उर्वी: । आप: । न । काकुद: ॥७१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 71; मन्त्र » 3

    भाषार्थ -
    हे परमेश्वर! आपका (यः) जो (कुक्षिः) उदर, अर्थात् अन्तरिक्ष, (सोमपातमः) अभिषुत जल का अत्यधिक पान करता है, और जो (समुद्र इव) समुद्र के सदृश (पिन्वते) सदा प्रीणित रहता है, वे आप (काकुदः) विस्तृत वेदवाणी के भी प्रदाता हैं, (उर्वीः आपः न) जैसे कि आपने समुद्रस्थ महाजल प्रदान किया है।

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