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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 71

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 71/ मन्त्र 9
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७१

    मत्स्वा॑ सुशिप्र म॒न्दिभि॒ स्तोमे॑भिर्विश्वचर्षणे। सचै॒षु सव॑ने॒ष्वा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मत्स्व॑ । सु॒ऽशि॒प्र‍॒ । म॒न्दिऽभि॑: । स्तोमे॑भि: । वि॒श्व॒ऽच॒र्ष॒णे॒ । सचा॑ । ए॒षु । सव॑नेषु । आ ॥७१.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मत्स्वा सुशिप्र मन्दिभि स्तोमेभिर्विश्वचर्षणे। सचैषु सवनेष्वा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मत्स्व । सुऽशिप्र‍ । मन्दिऽभि: । स्तोमेभि: । विश्वऽचर्षणे । सचा । एषु । सवनेषु । आ ॥७१.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 71; मन्त्र » 9

    भाषार्थ -
    (सुशिप्र) हे उत्तम ज्योतियों से सम्पन्न! (विश्वचर्षणे) हे विश्वद्रष्टा! (मन्दिभिः) प्रसन्नतादायक (स्तोमेभिः) सामगानों द्वारा (मत्सवा=मत्स्व) आप प्रसन्न हूजिए, और (एषु) इन (सवनेषु) भक्तिरसयज्ञों में (आ सच) हमारा साथ दीजिए। [सुशिप्र=सु+शिपि (ज्योति)+र (वाला)।]

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