अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 71/ मन्त्र 6
ए॒वा ह्य॑स्य॒ काम्या॒ स्तोम॑ उ॒क्थं च॒ शंस्या॑। इन्द्रा॑य॒ सोम॑पीतये ॥
स्वर सहित पद पाठए॒व । हि । अ॒स्य॒ । काम्या॑ । स्तोम॑: । उ॒क्थम् । च॒ । शंस्या॑ ॥ इन्द्रा॑य । सोम॑ऽपीतये ॥७१.६॥
स्वर रहित मन्त्र
एवा ह्यस्य काम्या स्तोम उक्थं च शंस्या। इन्द्राय सोमपीतये ॥
स्वर रहित पद पाठएव । हि । अस्य । काम्या । स्तोम: । उक्थम् । च । शंस्या ॥ इन्द्राय । सोमऽपीतये ॥७१.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 71; मन्त्र » 6
भाषार्थ -
(एवा) इसी प्रकार के अर्थात् विस्तृत [पूर्व मन्त्र ३], (हि) निश्चय से, (अस्य) इस परमेश्वर के (स्तोमः) सामगान (च) और (उक्थम्) ऋचाओं द्वारा प्रोक्त स्तुतियाँ हैं, जो कि (काम्या) उपासक जीवात्मा की कामना के योग्य हैं, और (शंस्या) प्रशंसनीय हैं। तथा (इन्द्राय) जीवात्मा के लिए (सोमपीतये) ज्ञानदुग्ध पीने के लिए हैं।
टिप्पणी -
[सोम=दुग्ध। यथा—“सोमो दुग्धाभिरक्षाः” (ऋ০ ९.१०७.९), अर्थात् दुही गई गौओं से सोम (=दुग्ध) क्षरित हुआ है।]