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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 72
    ऋषिः - कुमारहारित ऋषिः देवता - मित्रादयो लिङ्गोक्ता देवताः छन्दः - आर्ची पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    कामं॑ कामदुघे धुक्ष्व मि॒त्राय॒ वरु॑णाय च। इन्द्रा॑या॒श्विभ्यां॑ पू॒ष्णे प्र॒जाभ्य॒ऽओष॑धीभ्यः॥७२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    काम॑म्। का॒म॒दु॒घ॒ इति॑ कामऽदुघे। धु॒क्ष्व॒। मि॒त्राय॑। वरु॑णाय। च॒। इन्द्रा॑य। अ॒श्विभ्या॒मित्य॒श्विऽभ्या॑म्। पू॒ष्णे। प्र॒जाभ्य॒ इति॑ प्र॒जाऽभ्यः॑। ओष॑धीभ्यः ॥७२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कामङ्कामदुघे धुक्ष्व मित्राय वरुणाय च । इन्द्रायाश्विभ्यां पूष्णे प्रजाभ्यऽओषधीभ्यः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    कामम्। कामदुघ इति कामऽदुघे। धुक्ष्व। मित्राय। वरुणाय। च। इन्द्राय। अश्विभ्यामित्यश्विऽभ्याम्। पूष्णे। प्रजाभ्य इति प्रजाऽभ्यः। ओषधीभ्यः॥७२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 72
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    पदार्थ -
    हे (कामदुघे) इच्छा को पूर्ण करने हारी रसोइया स्त्री! तू पृथिवी के समान सुन्दर संस्कार किये अन्नों से (मित्राय) मित्र (वरुणाय) उत्तम विद्वान् (च) अतिथि अभ्यागत (इन्द्राय) परम ऐश्वर्य्य से युक्त (अश्विभ्याम्) प्राण-अपान (पूष्णे) पुष्टिकारक जन (प्रजाभ्यः) सन्तानों और (ओषधीभ्यः) सोमलता आदि ओषधियों से (कामम्) इच्छा को (धुक्ष्व) पूर्ण कर॥७२॥

    भावार्थ - जो स्त्री वा पुरुष भोजन बनावे, उसको चाहिये कि पकाने की विद्या सीख, प्रिय पदार्थ पका और उनका भोजन करा के सब को रोगरहित रक्खें॥७२॥

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